________________ सुख का स्वरूप समकित : पिछला पाठ पढ़कर यह प्रश्न उठना स्वभाविक है कि रागी-द्वेषी, अज्ञानी व्यक्तियों की सलाह के मुताबिक उपाय करने पर भी तो लोग सुखी होते हुये देखे जाते हैं। इस प्रश्न के समाधान के लिये हमें सुख का वास्तविक (असली) स्वरूप समझना होगा और उससे भी पहले हमें दुःख के असली स्वरूप को समझ लेना चाहिये क्योंकि असली सुख से हम परिचित भले ही न हो लेकिन दुःख तो हम सभी हमेंशा से पा ही रहे हैं। दुःख कहते हैं आकुलता को और आकुलता का मूल कारण है-इच्छा, इसलिये वास्तव में इच्छा ही दुःख है और जब हम कहते हैं कि इच्छा ही दुःख है तो इसका अर्थ होता है कि इच्छा के मूल में भी दुःख है, इच्छा पूर्ति के उपाय में भी दुःख है और उसके फल में भी दुःख ही प्रवेश : भाईश्री ! कोई उदाहरण ? समकित : जैसे किसी व्यक्ति को पानी पीने की इच्छा हुई और पानी पीने की इच्छा जब होती है कि जब प्यास लगे, प्यास यानि कि तृषा-वेदना। प्यास के नाम में ही वेदना यानि आकुलता (दुःख) शब्द जुड़ा हुआ है। कहने का मतलब यह है कि जब पानी पीने की इच्छा हुई तब दुःख हुआ, इसप्रकार इच्छा के मूल में ही दुःख है। फिर अपनी इस इच्छा को पूरी करने के लिये वह व्यक्ति अपने आरामदायक बिस्तर से उठा और किचिन तक पानी लेने गया, गिलास उठाया, पानी भरा और पानी पीकर अपनी इच्छा की पूर्ति का उपाय किया जो कि आकुलता (दुःख) रूप था। यदि ऐसा न हो तो क्यों लोग पानी आदि लाने के लिये नौकरों को रखते ? इसप्रकार इच्छा की पूर्ति के उपाय में भी दुःख है। 1.natural 2.solution 3.nature 4.familiar 5.uneasiness 6.desires 7.root 8.fulfilment 9.result 10.serving