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________________ 7 समकित-प्रवेश, भाग-4 प्रवेश : भाईश्री ! यह तो बात रही, दुःख के असली स्वरूप की। अब असली सुख क्या है यह भी बता दीजिए? समकित : तो जैसे कि हमने देखा कि असल में दुःख नाम है-आकुलता का और आकुलता नाम है- इच्छा का। उसी प्रकार असली सुख नाम हैनिराकुलता का और निराकुलता नाम है-इच्छा के अभाव का। ध्यान रहे यहाँ इच्छा के अभाव' का नाम सुख कहा गया है न कि इच्छाओं को दबाने या इच्छाओं को पूरा करने का। यह दोनों उपाय तो आकुलता रूप होने से दुःख ही हैं क्योंकि दोनों ही केस में इच्छा (दुःख) तो उत्पन्न (पैदा) हो ही चुकी होती है। इच्छा उत्पन्न हुये बिना न तो इच्छा को दबाना संभव है और न ही इच्छा को पूरा करना। प्रवेश : भाईश्री ! फिर इच्छाओं के अभाव का अर्थ क्या है ? समकित : इच्छा के अभाव का अर्थ है इच्छा का उत्पन्न (पैदा) ही न होना / वही निराकुलता है, वही सच्चा सुख है। यही कारण है कि सुख पाने का उपाय करने से पहले सुख का असली स्वरुप समझना बहुत ही जरुरी है। सुख का असली स्वरुप समझे बिना सुखी होने का उपाय करना एक बड़ी भूल है और उससे भी बड़ी भूल है ऐसे व्यक्तियों से सुख पाने के उपाय पूछना जो खुद इच्छा रूपी दुःख से दुःखी हैं, जिन्होंने खुद सच्चे सुख को नहीं पाया है। यदि हमें सच्चा सुख पाना है तो ऐसे व्यक्तियों को खोजना होगा जो सच्चे सुख को पा चुके हैं। ऐसे व्यक्तियों की सलाह/उपदेश से ही हमें सच्चा सुख प्राप्त हो सकेगा। प्रवेश : आपने पिछले पाठ में सच्चा सुख पाने के लिये वीतराग और सर्वज्ञ व्यक्तियों की सलाह की बात की थी और इस पाठ में सुखी व्यक्तियों की सलाह की बात की है। ऐसे वीतरागी, सर्वज्ञ और सुखी व्यक्ति कौन हैं ? समकित : हमारा अगला विषय यही है। mm 1.abolishment 2.suppression 3.fulfilment 4.case 5.possible
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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