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________________ 67 समकित-प्रवेश, भाग-3 प्रवेश : फिर संवर देव का उपसर्ग दूर हुआ ? समकित : ज्ञान कल्याणक- उपसर्ग तो दूर होना ही था क्योंकि मुनिराज पार्श्वनाथ आत्मलीनता की पूर्णता कर चार घातिया कर्मों का नाश कर भगवान (अरिहंत) पार्श्वनाथ जो बन गये थे। प्रवेश : मतलब उन्होंने अरिहंत दशा को प्रगट कर लिया ? फिर तो उनका समवसरण भी लगा होगा ? समकित : हाँ, सौधर्म इंद्र की आज्ञा' से कुवेर ने भव्य समवसरण की रचना की। भगवान का दिव्य-उपदेश लगभग पूरे भारत में हुआ। प्रवेश : फिर? समकित : मोक्ष (निर्वाण) कल्याणक- सौ वर्ष की आयु पूरी होने पर आज से लगभग 2800 साल पहले श्रावण शुक्ल सप्तमी (मोक्ष-सप्तमी) के दिन बाकी रहे चार अघातिया कमों का नाश कर सम्मेद-शिखर के स्वर्णभद्र कूट से भगवान सिद्ध हो गये यानि कि मोक्ष चले गये। प्रवेश : फिर ....? समकित : फिर क्या ? अब अनंत काल तक पूर्ण और अतींद्रिय आनंद का वेदन करेंगे और इस दुःखदायक संसार में कभी-भी लौटकर नहीं आयेंगे। प्रवेश : यह तो उन्होंने बहुत अच्छा किया। समकित : ये तो हुई उनकी बात। अब कल तुम सोचकर आना कि तुमको क्या करना है और क्या बनना है। itna ज्ञान और वैराग्य एक-दूसरे को प्रोत्साहन देने वाले हैं। ज्ञान रहित वैराग्य वह सचमुच वैराग्य नहीं है किन्तु रुंधा हुआ कषाय है। परन्तु ज्ञान न होने से जीव कषाय को पहिचान नहीं पाता है। ज्ञान स्वयं मार्ग को जानता है, और वैराग्य है वह ज्ञान को कहीं फँसने नहीं देता किन्तु सबसे निस्पृह एवं स्वकी मौज में ज्ञान को टिका रखता है। ज्ञान सहित जीवन नियम से वैराग्यमय ही होता है। -बहिनश्री के वचनामृत 1.order 2.grand 3.divine-preachings 4.hill-top 5.miserable
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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