________________ समकित-प्रवेश, भाग-3 समकित : शायद तुमने गति वाला पाठ ध्यान से नहीं पढ़ा। चारों ही गतियाँ द:ख रूप हैं। एक पंचम गति यानि कि मोक्ष ही सच्चे सुख रूप है। इसलिये मात्र वही अच्छी गति है। प्रवेश : तपसी का क्या हुआ ? समकित : तपसी मरकर संवर नाम का देव हुआ। प्रवेश : और पार्श्वकुमार ? समकित : इस दुःखद-घटना' को देख पार्श्वकुमार को वैराग्य आ गया। वैराग्य की अनुमोदना लोकांतिक देवों द्वारा की गयी। इंद्र और देवता लोग पार्श्वकुमार को पालकी में बैठाकर वन में ले गये जहाँ उन्होंने सिद्धों को नमस्कार करके जिन दीक्षा धारण कर ली व आत्म-ध्यान में मग्न हो गये व आत्मलीनता का बढ़ाने का पुरुषार्थ करने लगे। एक बार मुनिराज पार्श्वनाथ आत्म-ध्यान में मग्न थे उसी समय वो संवर देव वहाँ से निकला। मुनिराज को देख उसका पिछले जन्म का बैर जाग गया और उसने मनिराज पार्श्वनाथ पर ओले-शोले, पत्थर-पानी बरसाकर घोर उपसर्ग किया। प्रवेश : फिर मुनिराज पार्श्वनाथ की रक्षा कैसे हुई ? समकित : मुनिराज पार्श्वनाथ का आत्मा तो आत्म-ध्यान से सुरक्षित ही था। जिस कारण उनको जरा सा भी विकल्प नहीं हुआ बल्कि वे तो आत्म-ध्यान में और गहरे उतरकर पहले से भी अधिक निर्विकल्प अतींद्रिय आनंद का वेदन करने लगे। प्रवेश : लेकिन शरीर ..? समकित : बज्रवृषभ नाराज संहनन होने के कारण उनका शरीर भी सुरक्षित था। हाँ, यह जरूर है कि धरणेन्द्र और उनकी देवी को पिछले जन्म का उपकार' याद आ गया और उनको भगवान की रक्षा करने का भाव हुआ और वे तुरन्त ही अपनी भावना को पूरा करने चले आये और आना भी चाहिये क्योंकि उपकारी का उपकार भूलना महापाप है। 1.sadly-incident 2.praising 3.sedan 4.self-meditation 5.protected 6.uneasiness 7.bliss 8.bodily-habitus 9.compassion