________________ समकित-प्रवेश, भाग-3 65 समकित : हाँ, हमारा-तुम्हारा माता के गर्भ में आना, जन्म लेना कोई अच्छी बात नहीं है, न ही हमारे खुद के लिए कल्याणकारी है और न ही दूसरों के लिये। लेकिन तीर्थंकर का यह अंतिम गर्भ और जन्म है इसलिये उनके स्वयं के लिये तो कल्याणकारी है ही व अपने इस जन्म में वह दूसरों को भी जन्म-मरण के चक्कर' से छूटने का उपाय बतायेंगे, इसलिये दूसरों के लिए भी कल्याणकारी है। प्रवेश : राजकुमार पार्श्वनाथ को वैराग्य कैसे हुआ ? समकित : दीक्षा (तप) कल्याणक- एक बार जंगल में पार्श्वकुमार अपने दोस्तों के साथ हाथी पर बैठकर घूमने निकले। जंगल में उन्होंने देखा कि एक तपसी आग जलाकर पंचाग्नि तप कर रहा है। पावकुमार ने अपने अवधिज्ञान से जान लिया कि जलती हुई लकड़ी मे नाग-नागिन का जोड़ा भी जल रहा है तो उन्होंने दया वश तपसी को ऐसा पाप कार्य करने से मना किया जिसमें धर्म के नाम पर तीव्र हिंसा होती हो, क्योंकि हिंसा में कभी भी धर्म नहीं हो सकता। तपसी क्रोध से आग-बबूला हो गया। जब उस लकड़ी को काट कर देखा गया तो सच में उसमें नाग-नागिन का जोड़ा तड़प रहा था। प्रवेश : फिर पार्श्वकुमार ने उनको मरने से बचा लिया ? समकित : नहीं, जिसकी आयु पूरी हो गयी हो उसे मरने से भगवान भी नहीं बचा सकते। प्रवेश : फिर? समकित : पार्श्वकुमार को उन पर दया आ गयी और उन्होंने नाग-नागिन के जोड़े को णमोकार मंत्र सुनाया व संबोधित किया जिससे उन दोनों की कषाय मंद हुई और वे मरकर भवनवासी देवों में धरणेंद्र और उसकी देवी के रूप में जन्मे। प्रवेश : चलो उनकी अच्छी गति हो गयी। 1.cycle 2.ascetic 3.couple 4.address 5.low