________________ समकित-प्रवेश, भाग-3 समकित : बिल्कुल ठीक समझे। प्रवेश : और मन ? समकित : मन को नोइंद्रिय भी कहते हैं। जीव का जो ज्ञान, विचार करता है उसे भाव मन कहते हैं और उसमें निमित्त शरीर के अंदर हृदय-स्थान पर बहुत ही सूक्ष्म पुद्गल का बना हुआ आठ पंखुड़ी के कमल के आकार जैसा अंग द्रव्य-मन कहलाता है। प्रवेश : क्या हम आँख, नाक की तरह द्रव्य-मन को देख सकते हैं ? समकित : अरे बताया न, वह बहुत सूक्ष्म पुद्गल का बना हुआ है, इसलिये हम उसे देख नहीं सकते। प्रवेश : अरे हाँ, मैंने ध्यान से नहीं सुना। भाईश्री अब पाँच इंद्रियों के विषयों को और समझा दीजिये। समकित : इंद्रियाँ जिनको जानती हैं वह स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, शब्द ही तो इंद्रियों के विषय हैं। प्रवेश : अरे हाँ सही तो है। भाईश्री भगवान ने इन विषयों को भोगने की इच्छा को कैसे जीता? समकित : भगवान ने उसे अपने अतींद्रिय ज्ञान से जीता। प्रवेश : अतींद्रिय ज्ञान ? समकित : सिर्फ स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, शब्द यानि कि सिर्फ पुद्गल को जानने वाला हमारा ज्ञान इंद्रिय-ज्ञान कहलाता है और स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, शब्द आदि से रहित अपने आत्मा को जानने वाला ज्ञान अतींद्रिय ज्ञान कहलाता है। हमारा इंद्रिय ज्ञान इच्छाओं यानि कि दुःख का कारण है। क्योंकि हम उससे पुद्गल (दूसरों) को जानकर, उनमें राग-द्वेष/कषाय/इच्छायें करके दुःखी होते रहते हैं। 1.heart-place 2.minute 3.body-part 4.sense-dependent 5.devoided 6.sense-independent