________________ 36 समकित-प्रवेश, भाग-2 शराब तो एक प्रकार से त्रस जीवों का ही रस है क्योंकि शराब बनाने के लिये पहले अनाज/फलों को सड़ाया-गलाया जाता है। फिर उनका रस निकालकर डिस्टीलेशन किया जाता है। इसलिये शराब बनाने में उन सभी त्रस जीवों की हिंसा हो जाती है। शराब पीने वालों को उन सभी जीवों की हिंसा का महापाप तो लगता ही है, साथ में शराब पीकर वह अपने होश खो बैठता हैं। साथ में उसका पैसा, शरीर और इज्जत सब मिट्टी में मिल जाती है। प्रवेश : हाँ और शराब पीने वालों पर कोई भरोसा भी नहीं करता, चाहे वह उसके परिवार का व्यक्ति ही क्यों न हो। समकित : सही कहा ! शराब की तरह माँस भी बिना त्रस जीवों की हिंसा के नहीं मिल सकता। माँस के लिए पशुओं को जान से मारना पड़ता है। प्रवेश : यदि कोई खुद से मरे हुए पशु का माँस खाये तो? समकित : खुद से मरे हुए पशु के माँस में लगातार अनेक त्रस जीव पैदा होते रहते हैं। इसलिये किसी भी प्रकार का माँस या बाजार की जिन पैकेट-बंद चीजों में माँस या पशु के शरीर का कोई अंश होने की संभावना हो उसको खाना या छूना भी महापाप है। वैसे भी शाकाहारी लोग जितने स्वस्थ्य रहते हैं उतने माँसाहारी नहीं। प्रवेश : और शहद ? उसमें तो किसी को नहीं मारना पड़ता ? समकित : शहद तो मधुमक्खी की उल्टी है। वह फूलों का रस चूसकर अपने छत्ते में जाकर उस रस की उल्टी कर देती है। उल्टी गंदगी है। उसमें बहुत सारे त्रस जीव होते हैं। इतना ही नहीं छत्ते में से शहद निकालते समय भी बहुत सी मधुमक्खियों की हिंसा हो जाती है। और यदि न भी हो तो मधुमक्खियों को अपनी कड़ी मेहनत से इकठे किये गये शहद से बहुत राग होता है और हम अपने स्वार्थ के लिये उनसे उनकी प्रिय वस्तु छीन लेते हैं। जिससे उनको बहुत दुःख (कष्ट) 1.consciousness 2.trust 3.packaged food items 4.part 5.possibility 6.vegetarians 7.healthy 8.non-vegetarians 9.vomit 10.attachment 11.interest