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________________ जैनाचार (अष्टमूल गुण) समकित : जिस प्रकार हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई, आदि सभी धर्म वाले अपने-अपने कुलाचार' को पालते हैं। उसी प्रकार जैनियों को भी अपने कुलाचार का पालन करना चाहिए। लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि एक ओर जहाँ सभी धर्म वाले अपने-अपने कुलाचार को पालने में पक्के होते जा रहे हैं वही जैनी अपने कुलाचार को भूलते जा है और इसीकारण उनकी पहचान भी मिटती जा रही है। प्रवेश : अरे ! कुलाचार न पालने का इतना नुकसान है ? समकित : यह तो साधारण नुकसान है। कुलाचार न पालने का फल तो नरक प्रवेश : क्या ? मुझे तो नरक में नहीं जाना। अब तो मैं बराबर कुलाचार का पालन करूँगा। कृपया बताईये कुलाचार किसे कहते हैं जिसको न पालने से जीव को नरक जाना पड़ता हैं ? समकित : तीन मकारः मद्य (शराब), माँस व मधु और पाँच उदम्बर फल : बड़, पीपर, ऊमर, कठूमर व पाकर (अंजीर) इनका सेवन नहीं करना ही हमारा कुलाचार है। जो इनका सेवन करता है वो नरक में जाता है। प्रवेश : क्यों? समकित : क्योंकि इन सब चीजों का सेवन करने से त्रस जीवों की हिंसा का पाप लगता है। प्रवेश : ऐसा क्यों ? समकित : मैं एक-एक करके समझाता हूँ। 1.custom 2.follow 3. strict 4.identity 5.harm 6.result 7.honey 8.five type of figs 9.consumption
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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