________________ 271 समकित-प्रवेश, भाग-8 प्रवेश : कैसे? समकित : जैसे व्यवहार कारकों में पहले कर्ता कारक को ही देखो। कर्ता की परिभाषा है-जो स्वाधीनता-से अपने कार्य को करे उसे कर्ता कहते हैं। लेकिन कुम्हार तो घड़ा बनाने के कार्य को करने में स्वाधीन नहीं है उसे मिट्टी, चक्र आदि चाहिये। दूसरा, जो स्वयं कार्य रूप परिणमित होता है उसे कर्ता कहते हैं। लेकिन यदि हम घड़े बनने कि क्रिया के व्यवहार कारक देखें तो कुम्हार (कर्ता) तो घड़े (कार्य) रूप परिणमित नहीं होता इसलिये वह घड़े रूपी कार्य का वास्तविक (सच्चा) कर्ता नहीं हो सकता। वह तो मात्र उपचरित (आरोपित) कर्ता है। कार्य में निमित्त होने की अपेक्षा उस पर कर्ता होने का आरोप भर आता है क्योंकि उसके योग (मन-वचन-काय की चेष्टायें) व उपयोग (विकल्प) घड़ा बनाने के हैं। प्रवेश : तो फिर घड़े (कार्य) का यथार्थ (सच्चा) कर्ता कौन है ? समकित : जो घड़े (कार्य) रूप परिणमित होता है वही घड़े का यथार्थ (सच्चा) कर्ता है। तुम बताओ कौन घड़े रूप परिणमित हुआ है ? प्रवेश : घड़े रूप तो मिट्टी पिरणमित हुई है। समकित : हाँ, तो बस मिट्टी ही घड़े की यथार्थ (सच्ची) कर्ता है। यथार्थ कर्ता को ही निश्चय कर्ता कहते हैं। इसी तरह बाकी चार कारकों को भी समझना? प्रवेश : हाँ, जैसे चक्र घड़े रूपी कार्य का उत्कृष्ट-साधन है यानि कि उसके बिना घड़ा बन ही नहीं सकता। समकित : क्यों, हाथ से भी तो घड़ा बन सकता है या किसी नयी मशीन से। प्रवेश : फिर? 1. independently 2.independent 3.transformed 4.process 5.blame 6.thoughts 7.clay 8.remainig 9. supreme-mean