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________________ 270 समकित-प्रवेश, भाग-8 समकित : चिंता मत करो। अभी सरल हो जायेगा। जरा पिछले चार्ट को देखोः प्रवेश : यह व्यवहार और निश्चय कारक क्या होते हैं ? समकित : जब छहों कारक अलग-अलग (भिन्न-भिन्न') होते हैं तब उन्हें व्यवहार या भिन्न कारक कहते हैं। जब छहों कारक समान (अभिन्न) होते हैं उन्हें निश्चय या अभिन्न कारक कहते हैं। प्रवेश : जैसे? समकित : जैसे चार्ट में हमने घड़े बनने की क्रिया के व्यवहार कारक में देखा कि कुम्हार ने घड़े को, चक्र से, पनिहारिन के लिये, टोकरी में से मिट्टी लेकर, पृथ्वी (धरती) के आधार से बनाया। यहाँ कर्ता-कुम्हार, कर्म-घड़ा, करण-चक्र (चाक), सम्प्रदानपनिहारिन (पानी भरने वाली), अपादान-टोकरी, अधिकरण-पृथ्वी (धरती) है। यानि कि छहों कारक अलग-अलग हैं। इसलिये ये भिन्न यानि कि व्यवहार कारक हैं। प्रवेश : हमने पहले देखा था कि जिस वस्तु का स्वरूप जैसा है वैसा ही कहना निश्चय नय और जिस वस्तु का स्वरूप जैसा नहीं है वैसा कहना यानि किसी का स्वरूप किसी में मिलाकर कहना या कहो कि निमित्त आदि की अपेक्षा कहना व्यवहार नय है। समकित : हाँ, इसीलिये निश्चय नय का कथन' यथार्थ और व्यवहार नय का कथन उपचरित (आरोपित) होता है। इसीलिये व्यवहार कारक यथार्थ यानि कि सच्चे कारक नहीं हैं, उपचरित कारक हैं। यानि कि निमित्त होने के कारण उनके ऊपर कारक होने का आरोप" भर आता है, क्योंकि उनका स्वरूप कुछ ऐसा है। 1. different 2.same 3.process 4.basket 5. potter 6.potters-wheel 7. narration 8.actual 9. formal 10.blamed 11.blame
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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