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________________ समकित-प्रवेश, भाग-7 231 आप अठारह दोषों से रहित हो और अनंत चतुष्टय युक्त विराजमान हो। केवलज्ञानादि नौ प्रकार के क्षायिक-भावों को धारण करने वाले होने से महान मुनि और गणधर देवादि आपकी सेवा करते हैं / / 6 / / आपके बताये मार्ग पर चलकर अंनत जीव मुक्त' हो गये हैं, हो रहे हैं और सदाकाल होते रहेंगे। इस संसार रूपी समुद्र में दुःख रूपी अथाह खारा-पानी भरा हुआ है। आपको छोड़कर और कोई भी इससे पार नहीं उतार सकता है / / 7 / / इस भयंकर दुःख को दूर करने में निमित्त कारण आप ही हो, ऐसा जानकर मैं आपकी शरण में आया हूँ और अनंत काल से जो दुःख पाया है, उसे आपसे कह रहा हूँ / / 8 / / मैं भ्रम्यो अपनपो विसरि आप। अपनाये विधि फल पूण्य-पाप / / निज को पर का करता पिछान / पर में अनिष्टता इष्ट ठान / / 9 / / आकुलित भयो अज्ञान धारि। ज्यों मग मगतष्णा जानि वारि / / तन-परिणति में आपो चितार / कबहुँ न अनुभवो स्वपदसार / / 10 / / तमको बिन जाने जो क्लेश / पाये सो तुम जान जिनेश / / पशु, नारक, नर, सुरगति मँझार / भवे धर-धर मर्यो अनंत बार / / 11 / / अब काललब्धि बलतें दयाल / तुम दर्शन पाय भयो खुशाल / / मॅन शांत भयो मिटि सँकल द्वंद्व। चाख्यो स्वातम-रस दुख-निकंद / / 12 / / 1.liberate 2.forever 3.immeasurable 4.hard-water 5.shelter
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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