________________ 168 समकित-प्रवेश, भाग-6 भी लीनता न होना ही वास्तविक मिथ्यात्व है ऐसा न जानता है, न मानता है। इसलिये उसे छोड़ने का प्रयास भी नहीं करता जबकि गृहीत मिथ्यात्व का त्याग तो यह जीव पिछले भवों (जन्मों) में भी अनेक बार कर चुका है। लेकिन अगृहीत मिथ्यात्व को न छोड़ पाने के कारण आज तक संसार में भटक-भटक कर दुःख सह रहा है। प्रवेश : ओह ! समकित : 2. अविरति- उसी प्रकार यह जीव बाह्य-हिंसा' और इन्द्रिय-मन के विषयों में प्रवृत्ति को किंचित (जरा) भी त्याग न कर पाने रूप बाह्य अविरति को तो अविरति जानता व मानता है, लेकिन अंतरंग अविरति यानि कि शुद्धात्मा में लीनता की वृद्धि न हो पाना ही वास्तविक अविरति है ऐसा न जानता है, न मानता है। इसी कारण बाह्य अविरति का त्याग कर मात्र बाह्य-श्रावक आदि पद तो इस जीव ने पूर्व भवों (जन्मों) में भी अनेक बार धारण किये हैं, लेकिन अंतरंग अविरति का त्याग न करने के कारण संसार में भटक रहा है। 3. प्रमाद- यह जीव, बाह्यहिंसा व इंद्रिय-मन के विषयों में प्रवृत्ति को सर्वथा त्याग न कर पाने रूप बाह्य प्रमाद को तो प्रमाद जानता व मानता है लेकिन अंतरंग प्रमाद यानि कि शुद्धात्मा में प्रचुर लीनता न हो पाना ही वास्तविक प्रमाद है, ऐसा न जानता है, न मानता है। इसी कारण अनंत बार बाह्यहिंसा व इंद्रिय-मन के विषयों का सर्वथा त्याग कर मात्र बाह्य-मुनि पद धारण करने के बाद भी शुद्धात्मा के ज्ञान-श्रद्धान-लीनता बिना आज तक संसार में भटक रहा है। 4. कषाय- उसी प्रकार यह जीव, बाह्य क्रोध आदि को ही कषाय जानता व मानता है लेकिन इनके उत्पन्न होने के जो मूल कारण अंतरंग कषाय यानि कि शुद्धात्मा में पूर्ण लीनता न हो पाना ही वास्तविक कषाय है, ऐसा न जानता है, न मानता है। 1.external-violence 2.indulgence 3.external 4.internal