________________ आश्रव-बंध तत्व संबंधी भल समकित : पिछले पाठ में हमने हमारी जीव-अजीव तत्व संबंधी भूल की चर्चा की। अब हमको आश्रव-बंध तत्व संबधी भूल की चर्चा करनी है। आश्रव-तत्व संबंधी भूलः अशुद्धि यानि कि मिथ्यादर्शन-ज्ञान- चरित्र (मोह, राग-द्वेष) की उत्पत्ति आश्रव है। मिथ्यादर्शन यानि मिथ्यात्व और मिथ्याचारित्र यानि कि कषाय के तीन भेद-अविरति, प्रमाद, कषाय में एक योग को जोड़ देने पर आश्रव के कुल पाँच भेद हो जाते हैं। शास्त्र से यह जान लेने पर भी कि मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग के भेद से आश्रव पाँच प्रकार का है। यह जीव आश्रव के वास्तविक (असली) स्वरूप से अनजान रहता है यानि कि आश्रव के बाह्य स्वरूप को तो जानता व मानता है, लेकिन आश्रव के अंतरंग स्वरूप को न जानता है, न मानता है। यही इस जीव की आश्रव-तत्व संबंधी भूल है। प्रवेश : भाईश्री ! आश्रव भी दो प्रकार के होते हैं ? समकित : आश्रव दो प्रकार के नहीं होते, आश्रव का कथन दो प्रकार से होता है। एक यथार्थ कथन और दूसरा उपचरित कथन। प्रवेश : कृपया विस्तार से समझाईये। समकित : हम एक-एक करके पाँचों प्रकार के आश्रवों के वास्तविक (असली) स्वरूप के संबंध में जीव की भूलों की चर्चा करेंगे। 1. मिथ्यात्वः यह जीव गृहीत मिथ्यात्व यानि कि कुदेव, कुशास्त्र, कुगुरू आदि के श्रद्धान को तो मिथ्यात्व जानता व मानता है, लेकिन अगृहीत-मिथ्यात्व यानि कि शुद्धात्मा में अपनापन व किंचित (जरा) 1.occurance