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________________ 166 समकित-प्रवेश, भाग-6 समकित : अरे भाई ! आत्मा वचन-गोचर (शब्दों से कहा जा सके) नहीं, अनुभव-गोचर' वस्तु है। आत्मा का कथन तो वचनों से हो सकता है, लेकिन आत्मा में अपनापन (प्रतीति), आत्मा-के-अनुभव होने पर ही संभव है। प्रवेश : शुद्ध आत्मा के अनुभव के लिये हमें क्या करना होगा? गुरू : शुद्ध आत्मा के अनुभव के लिये हमें निम्न कार्य करने होंगेः 1. सच्चे देव-शास्त्र-गुरु का निर्णय (शास्त्र-अभ्यास) 2. प्रयोजनभूत-तत्वों का निर्णय 3. स्व-पर भेद-विज्ञान का अभ्यास इसमें से सच्चे देव-शास्त्र-गुरु के स्वरूप की चर्चा तो हम पहले ही कर चुके हैं और प्रयोजनभूत-तत्वों के यथार्थ निर्णय में हमारी क्या भूल रह जाती हैं हम देख ही रहे हैं। इसके बाद स्व-पर भेद विज्ञान के अभ्यास और आत्मानुभव के बारे में भी कभी विस्तार से चर्चा करेंगे। प्रवेश : भाईश्री ! अब आश्रव-बंध तत्व संबंधी भूल और समझा दीजिये। समकित : आज नहीं कल !! आत्मा को प्राप्त करने के लिये (गुरुगम से) शास्त्रों का अभ्यास करना, विचार-मनन करके तत्व का निर्णय करना और शरीरादि से तथा राग से भेद ज्ञान करने का अभ्याय करना। रागादि से भिन्नता का अभ्याय करते-करते आत्मा का अनुभव होता है। -गुरुदेवश्री के वचनामृत शास्त्रों में मार्ग कहा है, मर्म नहीं कहा। मर्म तो सत्पुरुष के अन्तरात्मा में रहा है। -श्रीमद् राजचन्द्र वचनामृत 1.experienciable 2.words 3.experience of self
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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