________________ समकित-प्रवेश, भाग-5 131 मूल-परिभाषा' सभी प्रकार के निमित्त कारणों पर समान-रूपसे लागू होती है। इच्छावान या क्रियावान निमित्तों को प्रेरक कहना व्यवहार है, लेकिन यथार्थ में प्रेरक मानना मिथ्यात्व है। प्रवेश : और उदासीन निमित्त ? समकित : 4. उदासीन निमित्त- जो द्रव्य इच्छावान या क्रियावान नहीं होते उन्हें उदासीन निमित्त कहते हैं। यानि कि जीव और पुद्गल को छोड़कर बाकी चार द्रव्य (धर्म, अधर्म, आकाश व काल) पर किसी कार्य में उदासीन निमित्त होने का ही आरोप आ सकता है। जैसे घड़े की उत्पति में धर्म, अधर्म आदि द्रव्य। प्रवेश : आपने पहले छह द्रव्यों में से जीव और पुद्गल द्रव्य के बारे में तो विस्तार से समझा दिया। अब कृपया धर्म, अधर्म, आकाश और काल द्रव्य के बारे में भी समझा दीजिये। समकित : वह मैं तुमको कल समझाता हूँ। लेकिन अभी पहले इन सभी प्रकार के कारणों को जीव के कार्य (पर्याय) पर तो घटा करके देख लो। प्रवेश : जी बिल्कुल। असली-प्रयोजन तो वही है। समकित : अब हम जीव के सम्यकदर्शन रूपी कार्य के कारण खोजते हैं। त्रिकाली उपादान कारण- चूँकि सम्यकदर्शन, भव्य-जीव को ही हो सकता है इसलिये भव्य-जीव सम्यकदर्शन रूपी कार्य का त्रिकाली उपादान कारण (स्वभाव) है। अनंतर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय के व्यय रूप क्षणिक उपादान कारण- चूंकि सम्यदर्शन की पर्याय प्रगट होने के पूर्व करण-परिणाम होते हैं इसलिये करण-परिणाम अनंतर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय के व्यय रूप क्षणिक उपादान कारण (पुरुषार्थ ) है। तत्समय की पर्यायगत योग्यता रूप क्षणिक उपादान कारण- चूँकि जब तक सम्यकदर्शन की योग्यता वाली पर्याय के प्रगट होने का समय 1.basic-defination 2.equally 3.motivator 4.apply 5.actual-purpose 6.occur