________________ 130 समकित-प्रवेश, भाग-5 प्रवेश : यह निमित्त-नैमित्तक संबंध क्या होता है ? समकित : निमित्त कारण की अपेक्षा कार्य को नैमित्तिक कहते हैं और उपादान कारण की अपेक्षा कार्य को उपादेय कहते हैं। जैसे कुम्हार की अपेक्षा घड़ा नैमित्तिक कहलायेगा और मिट्टी आदि की अपेक्षा उपादेय। 2. बहिरंग निमित्त- तत्समय की पर्याय गत योग्यता रूप क्षणिक उपादन कारण मौजूद होने पर जिस निमित्त का नियम-रूपसे मौजूद रहने का नियम नहीं है उसे बहिरंग निमित्त कहते हैं। जैसे समझने के लिए हम कह सकते हैं कि घड़ा बनने की तत्समय की पर्यायगत योग्यता रूप क्षणिक उपादान कारण मौजूद होने पर बहिरंग निमित्त चक्र, दण्ड आदि की मौजूदगी का नियम नहीं है। चक्र, दण्ड आदि के अलावा कोई और उपकरण अथवा मशीनरी भी बहिरंग निमित्त हो सकती है। 3.प्रेरक निमित्त- जो निमित्त (अंतरंग या बहिरंग) इच्छावान (जीव) या क्रियावान (जीव और पुद्गल दोनों) होते हैं उन्हें प्रेरक निमित्त कहते हैं। जैसे- घड़े की उत्पत्ति में अंतरंग निमित्त कुम्हार जीव द्रव्य होने इच्छावान और क्रियावान दोनों है और बहिरंग निमित्त चक्र, दण्ड आदि पुद्गल द्रव्य होने से क्रियावान हैं। अतः कुम्हार, चक्र, दण्ड आदि सभी घड़े की उत्पत्ति में प्रेरक निमित्त कहलाते हैं। प्रवेश : इसका मतलब यह हुआ कि भले ही निमित्त कार्य रूप परिणमित नहीं होते, लेकिन कार्य में प्रेरक तो होते ही हैं ? समकित : नहीं। प्रेरक नहीं होते, उन पर प्रेरक होने का आरोप भर आता है क्योंकि उनका स्वरूप ही कुछ ऐसा है, यानि कि वे इच्छावान या क्रियावान हैं। प्रेरक शब्द यह नहीं दर्शाता कि यह निमित्त कार्य के प्रेरक हैं, बल्कि यह दर्शाता है कि यह निमित्त इच्छावान या क्रियावान है। यानि कि जीव या पुद्गल द्रव्य है। धर्म, अधर्म, आकाश व काल द्रव्य नहीं। कार्य की उत्पत्ति में तो प्रेरक निमित्त भी वास्तव में धर्म, अधर्म आदि के समान उदासीन ही हैं। ध्यान रखना निमित्त कारण की 1.rule 2.presence 3.willfull 4.dynamic