SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 132 समकित-प्रवेश, भाग-5 नहीं आ जाता तब तक सम्यकदर्शन नहीं हो सकता इसलिये सम्यक दर्शन ही कार्य है और सम्यकदर्शन ही तत्समय की पर्यायगत योग्यता रूप क्षणिक उपादान कारण (काललब्धि) है। यानि कि वास्तव में सम्यकदर्शन की पर्याय ही कार्य है और सम्यकदर्शन की पर्याय ही नियामक' (समर्थ) कारण है। अंतरंग निमित्त कारण- सम्यकदर्शन रूपी कार्य की तत्समय की पर्यायगत योग्यता रूप क्षणिक उपादान कारण (समर्थ-कारण) मौजूद होने पर नियम से दर्शन-मोहनीय कर्म का क्षय/उपशम/क्षयोपशम होता है। इसलिये दर्शन-मोहनीय कर्म का क्षय/उपशम/क्षयोपशम (अनुदय) अंतरंग निमित्त कारण कहलाता है। बहिरंग निमित्त कारण- सम्यकदर्शन रूपी कार्य होते समय जिनके मौजूद होने का नियम नहीं है ऐसे सच्चे देव-शास्त्र-गुरु व उनका उपदेश आदि बहिरंग निमित्त कारण कहलाते हैं। प्रेरक निमित्त कारण- देव क्रियावान होने से व गुरु इच्छावान व क्रियावान दोनों होने से उनका उपदेश प्रेरक निमित्त कहलाता है। उदासीन निमित्त कारण- काल द्रव्य न तो इच्छावान है और न ही क्रियावान इसलिये वह सम्यकदर्शन रूपी कार्य में उदासीन निमित्त कहलाता है। देव-गुरु की वाणी और देव-शास्त्र-गुरु की महिमा चैतन्यदेव की महिमा जागृत करने में, उसके गहरे संस्कार दृढ़ करने में तथा स्वरूपप्राप्ति करने में निमित्त हैं। -बहिनश्री के वचनामृत निमित्त की प्रधानता से कथन तो होता है, परन्तु कार्य कभी भी निमित्त से नहीं होता। यदि निमित्त ही उपादान का कार्य करने लगे तो निमित्त ही स्वयं उपादान बन जाये, अर्थात् निमित्त, निमित्त-रूप से नहीं रहेगा और उपादान का स्थान निमित्त ने ले लिया इसलिये निमित्त से भिन्न उपादान भी नहीं रहेगा। इस प्रकार निमित्त से उपादान का कार्य मानने पर उपादान और निमित्त दोनों कारणों का लोप हो जायेगा। -गुरुदेवश्री के वचनामृत 1.regulatory
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy