________________ समकित-प्रवेश, भाग-5 127 प्रवेश : जैसे? समकित : जैसे चक्र,दण्ड, कुम्हार, मिट्टी आदि सब कुछ हो तो भी घड़ा बनने की गारंटी नहीं रहती। लेकिन घड़ा बनने का समय आने पर घड़ा बनने की व योग्य निमित्त आदि मिलने की पूरी गारंटी रहती है। इसलिये तत्समय की पर्यायगत योग्यता रूप क्षणिक उपादन कारण ही कार्य का नियामक कारण है। प्रवेश : यदि ऐसा है तो आगम में मोक्षमार्ग के प्रबल निमित्त सच्चे देव शास्त्र-गुरु की संगति बुद्धिपूर्वक करने का उपदेश क्यों दिया है? जब तत्समय की पर्यायगत योग्यता रूप क्षणिक उपादन कारण आयेगा तब इन (निमित्तों) की संगति सहज हो जायेगी? समकित : यह जानते हुये भी कि निमित्तों से कार्य नहीं होता, ज्ञानी मोक्षमार्गी जीवों को भी पूर्ण वीतरागता न होने के कारण मोक्षमार्ग में अनुकूल प्रतीत होने वाले सद्-निमित्तों यानि कि सच्चे देव-शास्त्र-गुरु की संगति करने का और प्रतिकूल प्रतीत होने वाले असद्-निमित्तों यानि कि कुदेव-कुशास्त्र-कुगुरु की संगति बुद्धिपूर्वक छोड़ने का शुभ राग आये बिना नहीं रहता। हालांकि निमित्त तो हमारे मोक्ष या संसार रूपी कार्य (पर्याय) के कर्ता नहीं हैं। न ही निमित्त हमें प्रभावित करते हैं लेकिन रागी-जीव अपने राग के कारण स्वयं ही निमित्तों से प्रभावित हुये बिना नहीं रहता इसलिये आगम में अनेक जगहों पर सनिमित्तों की संगति करने का और असद-निमित्तों की संगति छोड़ने का उपदेश व्यवहार से दिया गया है और उसकी भी अपनी एक उपयोगिता है। लेकिन जो बात जहाँ जिस अपेक्षा से कही गयी हो उसी अपेक्षा से ग्रहण करनी चाहिये वरना एकांत हो जायेगा। मोक्षार्थी को तो अनेकांत की ही शरण है। इसीतरह जो जीव निश्चय सम्यकदर्शन-ज्ञान-चारित्र के लिये पुरुषार्थ करते हैं। उनको सच्चे देव-शास्त्र-गुरु के प्रति बहुमान आदि का शुभ राग सहज रूप से आये बिना नहीं रहता। सच्चे देव-शास्त्र-गुरु हमारे सम्यकदर्शन-ज्ञान-चारित्र (कार्य) रूप परिणमित नहीं होते इसलिये 1.guarantee 2.strong 3.usefulness 4.gratitude