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________________ 94 समकित-प्रवेश, भाग-4 नामुमकिन है क्योंकि हम पहले ही देख चुके हैं कि द्रव्य का लक्षण सत् होने से विश्व का लक्षण भी सत् यानि कि अनादि-अनंत है। प्रवेश : भाईश्री ! लेकिन अभी भी यह समझ में नहीं आया कि इस बात का परस्परोपग्रहो जीवानाम् से क्या संबंध हैं ? समकित : अरे भाई ! अगुरुलघुत्व गुण के ही कारण एक द्रव्य दूसरे द्रव्यरूप नहीं होता, दो द्रव्य मिलकर एक नहीं होते और एक द्रव्य के गण-पर्याय दूसरे द्रव्य के गुण-पर्याय रूप नहीं होते। इसी कारण एक के बाद एक होने वाली अनंत पर्यायों का समूह गुण, अनंत गुणों का समूह द्रव्य और अनंत द्रव्यों का समूह विश्व नष्ट होने से बच जाता है या कहो सभी द्रव्य नष्ट होने से बच जाते हैं। यही सभी द्रव्यों का एक दूसरे पर परस्पर-उपकार है। प्रवेश : अच्छा ! अब समझ में आया कि अगुरुलघुत्व गुण के कारण एक द्रव्य दूसरे द्रव्य की सीमा (द्रव्य, गुण, पर्याय, प्रदेश) में प्रवेश नहीं करता और इस प्रकार एक दूसरे को नष्ट होने से बचाकर एक दूसरे पर अनंत उपकार करता है। समकित : हाँ, बिल्कुल सही समझे। प्रवेश : लेकिन हमने तो सुना था कि एक जीव (द्रव्य) द्वारा दूसरे जीव (द्रव्य) की भलाई करना परस्परोपग्रहो जीवानाम् है ? समकित : हाँ भाई ! लौकिक-दृष्टि से यह बात भी सही है। उसका भी अपना एक महत्व है लेकिन यहाँ तो पारमार्थिक दृष्टि से बात की जा रही है। समझदार को तो अनेकांतवाद और स्याद्वाद की ही शरण है। वह तो हर बात को अपेक्षा सहित ही ग्रहण" करता है। प्रवेश : भाईश्री ! प्रदेशत्व और प्रमेयत्व सामान्य गुण ? समकित : प्रदेशत्व गुण का मतलब है कि हर द्रव्य में एक ऐसी शक्ति पायी जाती है जिस शक्ति के कारण द्रव्य का कुछ न कुछ आकार" जरुर रहता है। 1.impossible 2.nature 3.mutual-compassion 4.boundary 5.entry 6.welfare 7.worldly-perspective 8.significance 9.spiritual-perspective 10.perspective 11.accept 12.shape
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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