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________________ अगुरुलघुत्व गुण और परस्परोपग्रहो जीवानाम समकित : हम सभी तत्वार्थ सूत्र के सूत्र परस्परोपग्रहो जीवानाम् से अच्छी तरह से परिचित' हैं। जिसका मतलब होता है सभी जीव एक दूसरे पर परस्पर-उपकार करने वाले हैं। वास्तव में यह व्यवस्था मात्र जीव द्रव्य पर लागू न होकर सभी द्रव्यों पर लागू होती है। प्रवेश : कैसे? समकित : सभी द्रव्यों में पाये जाने वाले अगुरुलघुत्व गुण के कारण। प्रवेश : अगुरुलघुत्व का क्या अर्थ है ? समकित : अगुरुलघुत्व शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है अगुरु और अलघु यानि कि न तो द्रव्य में कुछ बढ़ता है और न ही द्रव्य में कुछ कम होता है। द्रव्य हमेशा जैसा है वैसे का वैसा ही रहता है। प्रवेश : वैसे का वैसा रहता है, मतलब ? समकित : मतलब हर द्रव्य में पाये जाने वाली अगुरुलघुत्व शक्ति के कारण एक द्रव्य दूसरे द्रव्य रूप नहीं होता। एक द्रव्य के गुण-पर्याय दूसरे द्रव्य के गुण-पर्याय रूप नहीं होते। दो द्रव्य मिलकर एक नहीं होते यानि कि जैसे हैं वैसे ही रहते हैं। प्रवेश : लेकिन इस बात का परस्परोपग्रहो जीवानाम् से क्या संबंध है ? समकित : बहुत गहरा संबंध है। सोचो यदि अगुरुलघुत्व गुण न होता तो दो द्रव्य मिलकर एक हो जाते या एक द्रव्य दूसरे द्रव्य रूप हो जाता। दोनों ही परिस्थितियों में एक द्रव्य कम हो जाता और अनंत द्रव्यों का समूह टूट जाता और द्रव्यों का समूह टूटने से विश्व का नाश हो जाता क्योंकि अनंत द्रव्यों का समूह ही तो विश्व है और यह विश्व नष्ट हो ऐसा हम कभी भी नहीं चाहेंगे और हम चाहें या न चाहें ऐसा होना। 1. familiar 2.mutual-compassion 3.concept 4.apply 5.situations 6.group
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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