________________ 95 समकित-प्रवेश, भाग-4 प्रवेश : जैसे? समकित : जैसे कभी जीव का आकार हाथी के शरीर जैसा हो जाता है तो कभी चींटी के शरीर जैसा। यानि कि जिस गति में जीव जाता हैं उस गति के शरीर जैसा जीव (आत्मा) का भी आकार हो जाता है। ठीक वैसे ही जैसे गिलास में रखे हुये पानी का आकार गिलास के आकार जैसा हो जाता है और वही पानी जब कटोरे में रखा जाता है तो उसका आकार कटोरे जैसा हो जाता है। प्रवेश : ओह ! और प्रमेयत्व गुण ? समकित : प्रमेयत्व गुण का मतलब है कि हर द्रव्य में एक ऐसी शक्ति पायी जाती है जिस शक्ति के कारण द्रव्य किसी न किसी के ज्ञान का विषय जरूर बनता है यानि कि किसी न किसी के जानने में जरूर आता है। प्रवेश : लेकिन बहुत सी सूक्ष्म' चीजें तो ऐसी भी हैं जो किसी के भी जानने में नहीं आती? समकित : नहीं. वे चीजें भी किसी के जानने में आये या न आये लेकिन अनंत सिद्धों और अरिहंतों (केवलियों) के जानने में तो आती ही हैं। प्रवेश : अरे वाह ! यह तो सोचा ही नहीं था। समकित : हाँ ! कितने ही लोग इस बात के लिये रोते रहते हैं कि हमे कोई नहीं जानता लेकिन प्रमेयत्व गुण कहता है कि अनंत सिद्ध उनको जानते प्रवेश : कई लोग तो दान आदि भी सिर्फ इसीलिये करते हैं कि सभी लोग उनको जाने। समकित : हाँ, सही कहा। लेकिन प्रमेयत्व गुण उनको कहता है कि भाई कई नहीं, अनंत लोग (सिद्ध भगवान) तुमको आज से नहीं अनादि से जान रहे हैं लेकिन इससे तुम्हारा क्या फायदा हुआ और होने वाला है ? परमात्मा तो कहते हैं कि तुम्हारा फायदा तो इसमें है कि तुम खुद 1.minute