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________________ सिद्ध-सारस्वत अनुपम प्रेरणास्पद व्यक्तित्व श्रद्धेय गुरु जी जैनदर्शन, प्राकृत एवं संस्कृत विद्या के मनीषी विद्वान् हैं। विषम परिस्थितियों में अध्ययन करते हुए भाग्य और पुरुषार्थ के बल पर ऊँचाइयों के शिखर पर पहुँचने वाले विद्वानों में से एक विशेष हैं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में मुझे भी एम. ए. (संस्कृत) करते समय पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैं गुरुचरणों में नत मस्तक हूँ। सागर जिले के मंजला ग्राम को अपने जन्म से गौरवान्वित करने वाले परम आदरणीय गुरुजी प्रो. सुदर्शनलाल जी ने विद्वत्ता के क्षेत्र में एक विशेष कीर्तिमान स्थापित किया है। सन् 2006 में सेवानिवृत्त होने के बाद गुरुजी ने अपना सारा जीवन धर्म प्रचार एवं प्रसार में समाज को समर्पित कर दिया है। आदरणीय गुरुजी समाज की अनुपम निधि हैं, उनका सम्मान समाज का सम्मान है, जिनवाणी का सम्मान है। गुरुजी की सहृदयता, सहजता, सरलता सभी के लिए अनुकरणीय है। आपका व्यक्तित्व अत्यधिक स्पृहणीय, अनुकरणीय और प्रेरणास्पद है। आप वास्तव में बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं। आपने जैनधर्म के सिद्धान्त ग्रन्थों का न केवल सूक्ष्म अध्ययन कर ज्ञानार्जन किया है अपितु ज्ञान को अपने जीवन में उतारकर स्व-पर कल्याणार्थ अत्यधिक सदुपयोग भी किया है। आपके मुख में सरस्वती का वास है। जैनधर्म के गूढ़ विषयों को सरल उदाहरणों के माध्यम से समझाना आपकी स्वाभाविक विशेषता है। प्रो. सुदर्शनलाल जी जैन समाज के यशस्वी विद्वान् हैं। आपके द्वारा की गई अविरल सेवाओं के परिणामस्वरूप अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन हो रहा है। यह भारतवर्ष की समाज के लिए गौरव की बात है। आदरणीय गुरुजी जैनदर्शन और जैनसिद्धान्त के अधिकारी विद्वान् तो हैं ही, लेखक, ग्रन्थकार, सफल सम्पादक भी हैं। आपने जैन जगत् की महनीय सेवा की है। अत: आपको महामहिम राष्ट्रपति पुरस्कर, उत्तरप्रदेश संस्कृत संस्थान लखनऊ द्वारा स्वलिखित ग्रन्थों पर चार पुरस्कार, मुनिपुङ्गव सुधासागर पुरस्कार, आचार्य सुमतिसागर स्मृति श्रुत संवर्धन पुरस्कार, शिक्षक सम्मान आदि अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। आपने अखिल भारतवर्षीय विद्वत्परिषद् आर्ष मार्गी विद्वानों की संस्था के यशस्वी मन्त्री और उपाध्यक्ष के रूप में जिनवाणी की अतुलनीय सेवा की है। विद्यार्थी जीवन से ही मुझे समय-समय पर आशीर्वाद मिलता रहा है। यह मेरा सौभाग्य है। जैनदर्शन के अधिकारी विद्वान् के रूप में आपका जीवन अविरल प्रेरणास्रोत है। आपने ज्ञान, ध्यान, चिन्तन, मनन के द्वारा समाज को अमृत-रसपान कराया है। गुरुजी चिरायु-स्वस्थ रहें, यही गुरु चरणों में मेरा निवेदन है। श्री गुरुपद नख गन जोती। सुमिरत दिव्य दृष्टि हिय होती।। गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।। डॉ. सन्तोष कुमार जैन सीकर (राजस्थान) प्रशासनिक उच्चपद पर कार्यरत लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत भागीरथी के तट पर स्थित मनीषी तथा कर्मयोगी महामना पं. मदनमोहन मालवीय जी की तपोभूमि काशीहिन्दूविश्वविद्यालय में अध्ययन-अध्यापन पूर्वजन्मों के पुण्य कर्मों के फलस्वरूप प्राप्त होते हैं। काशी में निवास करते हुए यह सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ। विद्वानों से समृद्ध संस्कृत विभाग में अध्ययन काल में मुझे अनेक गुरुजनों का सानिध्य प्राप्त हुआ। ऐसे ही आचार्य सुदर्शन लाल जैन जी से एम.ए. (संस्कृत) की कक्षा में 'सर्वदर्शनसंग्रह' तथा 'न्यायसिद्धान्तमुक्तावली' पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। न्यायसिद्धान्तमुक्तावली जैसे क्लिष्ट ग्रन्थ की विवेचना आसान नहीं होती है किन्तु गुरुवर्य ने सरलीकरण करते हुए न्यायदर्शन के सिद्धान्तों की प्रस्तुति की, जिससे विषय के साथ ही साथ 65
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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