SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिद्ध-सारस्वत अभिभूत किया है। उनका वैदुष्य जितना गहन है उनका हृदय उतना ही सरल है। उनका चिन्तन सभी प्रकार की संकीर्णताओं से परे अत्यन्त व्यापक है। आप अपने इसी व्यापक चिन्तन और उदारवादी दृष्टिकोण के कारण दिगम्बर जैन विद्वानों के साथ-साथ श्वेताम्बर जैन विद्वानों में भी समाहत हैं। आपने 'उत्तराध्ययन सूत्र' जैसे श्वेताम्बर आगम ग्रन्थ पर शोधकार्य करके अपने विशाल उदारवादी दृष्टिकोण का परिचय दिया है। वर्तमान विद्वत्परम्परा में आप प्रायः सभी विद्वानों में वरिष्ठ हैं। आपने अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् के मन्त्री और उपाध्यक्ष जैसे महत्त्वपूर्ण पदों पर रहकर अपने उत्तरदायित्व का कुशलतापूर्वक निर्वहन करके विद्वानों की प्रतिष्ठा वृद्धिंगत की है। इन महत्त्वपूर्ण पदों पर रहकर आपने अपनी महत्त्वपूर्ण समन्वय दृष्टि का परिचय दिया है। पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी के निदेशक रहते हुए भी आपने जैन आगम के संरक्षण-संवर्धन एवं शोधकार्य के विकास के लिए अथक प्रयास किया है। आपके व्यक्तित्व में देव-शास्त्र-गुरु के प्रति असीम श्रद्धा झलकती है। जिनवाणी माँ के प्रति अपार श्रद्धा होने के कारण आप सदैव शास्त्र-सपर्या में संलग्न रहते हैं। इसी श्रुतसेवा के भाव से ही आपने अनेक शास्त्रों का सम्पादन एवं लेखन कार्य किया है। आपके कृतित्व में जहाँ एक ओर आपका अगाध वैदुष्य झलकता है वहीं आपके मौलिक चिन्तन से शास्त्रों के गूढ़ रहस्य भी सहज ही प्रकट हो जाते हैं। आपके विराट् व्यक्तित्व का एक पक्ष यह भी है कि आपने समाज के साथ-साथ अपने पुत्र और पुत्रियों को भी उच्च शिक्षित करके साथ-साथ श्रेष्ठ संस्कार भी प्रदान किये हैं। समाज और परिवार के प्रति समानरूप से उत्तरदायित्व का निवर्हन करने वाला आपके जैसा व्यक्तित्व दुर्लभ है। आपके इस आदर्श व्यक्तित्व के विकास में आपकी सहधर्मिणी डॉ. मनोरमा जी का भी अविस्मरणीय अवदान है। डॉ. मनोरमा जी सरलता और वात्सल्य की साक्षात् प्रतिमूर्ति हैं। अतिथ्य सत्कार के लिए वे सदैव आतुर रहती हैं। घर-गृहस्थी के कठिन से कठिन कार्य भी वे सहजता से कर लेती है। मुनियों को आहार दान देने और त्यागी व्रतियों की सेवा में आपकी गहरी रुचि है। प्रो. सुदर्शनलाल जी के सङ्घर्षशील जीवन में उनकी धर्मपत्नी डॉ. मनोरमा जी ने पग-पग पर साथ दिया है। आदरणीय गुरु श्री सुदर्शन लाल जी ने अपने सतत सङ्घर्ष से सफलता का आसमान छुआ है। भारत के महामहिम भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रणवमुखर्जी ने अपने कर कमलों से आपको सम्मानित करके आपके प्रति राष्ट्र की कृतज्ञता व्यक्त की है। इस के साथ ही देश की विभिन्न संस्थाओं और समाज ने भी आपको अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया है। इसी श्रृंखला में आपके सम्मानार्थ वीतराग वाणी ट्रस्ट द्वारा आपके अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन किया जा रहा है। आपके अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन वस्तुतः समाज और राष्ट्र का आपके विराट् व्यक्तित्व के प्रति एक आभार प्रदर्शन है। एक कृतज्ञता ज्ञापन है। आपका अभिनन्दन करके समाज अपने लिए एक ऐसा आदर्श स्थापित कर रहा है जिसके अनुकरण की अपेक्षा समाज को अपनी वर्तमान और भावी पीढ़ियों से है। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे इस अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रकाशन में प्रबन्ध-सम्पादक का उत्तरदायित्व मिला है। इस उत्तरदायित्व के निर्वहन करने में मुझे प्रो. साहब के विराट् व्यक्तित्व को निकटता से समझने का अवसर प्राप्त हुआ है। उनसे मिलकर ही मैं यह जान पाया हूँ कि श्रद्धेय गुरु जी प्रो. सुदर्शन लाल जी का वैदुष्य जहाँ हिमालय सा ऊँचा है वहीं उनके हृदय में स्वाभाविक सरलता और सहजता का सागर भी लहराता है। उनका यह अद्वितीय व्यक्तित्व ही उन्हें महान् बनाता है। मैं गुरुजी प्रो. सुदर्शनलाल जी के अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन के अवसर पर जिनेन्द्र प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि गुरुजी सदैव स्वस्थ और सानन्द रहें एवं दीर्घायु रहकर हम सभी को सदैव आशीर्वाद प्रदान करते रहें। डॉ. पंकज कुमार जैन 'ललित' प्राध्यापक- जैनदर्शन विभाग, राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, भोपाल, म.प्र.
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy