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________________ सिद्ध-सारस्वत तपस्या और धार्मिक व सामाजिक सेवाओं का प्रतिफल है, जिसके वे हकदार हैं। प्रो. सुदर्शन लाल जी का ग्रहस्थ जीवन - सुखद एवं समृद्धि से भरा हुआ है। आपकी सहधर्मिणी (मेरी भाभी सा.) डॉ. मनोरमा जैन एक विदुषी और धार्मिक महिलारत्न हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। पारिवारिक जिम्मेदारियों को कुशलता और बुद्धि-विवेक से अपने पुत्रों/पुत्री को उच्च शिक्षा से दीक्षित करवाया। आपके सभी बच्चे संस्कारों की महक से दीपित माता-पिता के गौरव को प्रवर्तमान किये हैं। मैं प्रो. साहब के दीर्घायु की मङ्गल कामना करता हूँ। सत् -पुरुषों को दीर्घ आयु मिलती है तो वे उसे आत्मोन्नति के साथ, राष्ट्र, समाज और निजधर्म के उत्थान के लिए समर्पित करते हैं। अस्तु प्रो. सुदर्शनलाल जी स्वस्थ रहें और धर्मसेवा के संकल्प से जुड़े रहें, यही कामना करता हूँ। पं. निहालचंद जैन पूर्व प्राचार्य, बीना, म.प्र. श्रीगुरवे नमः अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन-शलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष, कला सङ्काय प्रमुख, प्राकृत, जैनदर्शन तथा संस्कृत साहित्य में विशेषाधिकार प्राप्त, अनेक ग्रन्थों के प्रणयन कर्ता, अनुवाद एवं सम्पादन कर्ता, केवल भारतवर्ष में ही नहीं अपितु विदेशों में भी अपने वैदुष्य से सम्मानित, अनेक शैक्षणिक एवं सामाजिक कार्यों के फलस्वरूप महामहिम राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित, आपके निर्देशन में मुझे शोधकार्य करने का जो सुअवसर प्राप्त हुआ एतदर्थ मैं गौरवान्वित हूँ। पठन-पाठन के क्रम में मुझे गुरु-पत्नी द्वारा भी अत्यधिक स्नेह प्राप्त हुआ, मैं उनके प्रति भी आभार व्यक्त करती हूँ। सेवा निवृत्ति के पश्चात् भी आप अनवरत रूप से शैक्षणिक कार्यों में संलग्न हैं, जिसे दृष्टिगत करते हुए मुझे एक पंक्ति स्मरण हो आयी 'काव्यशास्त्र-विनोदेन कालो गच्छति धीमताम्' आपके दीर्घायु की कामना पूर्वक आपकी शिष्या श्रीमती डॉ. उषा वर्मा एसोसियट प्रोफेसर, संस्कृत, वसन्त महिला म. वि. राजघाट, वाराणसी विराट् व्यक्तित्व के धनी प्रो. सुदर्शनलाल जी विद्वद्वरेण्य प्रो. सुदर्शनलाल जी असाधारण व्यक्तित्व के धनी हैं। विलक्षण मेधा के धनी प्रो. साहब के विराट व्यक्तित्व का निर्माण सतत सङ्घर्ष के जिस पथ पर चलकर हुआ है उस पथ पर चलने वाले लोग अत्यन्त विरल हैं। प्रो. साहब ने बचपन से ही जिस कठिन सङ्घर्ष का समाना किया है उसके आगे बड़े से बड़े धैर्यशाली लोग भी बिखर जाते हैं। दस माह की अल्प अवस्था में मातृ-वियोग सहकर भी अपने सङ्घर्षशील व्यक्तित्व के कारण ही प्रो. साहब ने जीवन के चरमोत्कर्ष को प्राप्त किया है। अपने गाँव की छोटी सी पाठशाला में प्राथमिक अध्ययन प्रारम्भ करके डॉ. साहब ने विभिन्न जैन गुरुकुलों में अध्ययन किया। डॉ. साहब का अध्ययन केवल किताबों तक सीमित नहीं रहा है। आपने धर्म-दर्शन और संस्कृति एवं प्राकृत जैसी भाषाओं के शास्त्रों के गहन अध्ययन के साथ-साथ मानव जीवन और समाज के विविध पक्षों को भी गहराई से समझने का भरसक प्रयास किया है। यही कारण रहा है कि आपने देश के सर्वोच्च विश्वविद्यालय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सबसे बड़े सङ्काय के अध्यक्ष पद का निवर्हन कुशलतापूर्वक किया है। यह मेरा परम सौभाग्य है कि मुझे परमादरणीय प्रो. सुदर्शन लाल जैन जी का सान्निध्य तब से प्राप्त हो रहा है जब मैं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रो. कमलेश कुमार जी के निर्देशन में शोधकार्य कर रहा था। प्रो. सुदर्शन लाल जी से मैंने अपने शोधकार्य के दौरान अनेक बार मार्गदर्शन प्राप्त किया है। उनके अगाध शास्त्र वैदुष्य ने मुझे अनेक बार 63
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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