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________________ सिद्ध-सारस्वत विद्याव्यसनी प्राच्यभाषाविद् जैन धर्म-दर्शन, संस्कृत एवं प्राकृत भाषा के विशेषज्ञ मनीषी प्रो. सुदर्शनलाल जैन से लगभग 25 वर्षों से सुपरिचित हूँ। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष तथा कला सङ्काय के अधिष्ठाता पद को अलंकृत कर आपने जैन समाज को गौरवान्वित किया है। प्राकृत भाषा के अध्ययन की दृष्टि से आपके द्वारा रचित 'प्राकृत-दीपिका' पुस्तक जिज्ञासुओं के लिए उपयोगी है। प्रो. जैन सुखद दाम्पत्य जीवन के धनी होने के साथ विद्या व्यसनी हैं। आदरणीया भाभीजी का आपकी विद्योपासना में निरन्तर सहयोग रहता है। वर्ष 2005 में आप मेरी शोधछात्रा डॉ. श्वेता जैन के शोध प्रबन्ध 'जैनदर्शन में कारणवाद के संदर्भ में पंचसमवाय : एक समीक्षा' की मौखिकी परीक्षा हेतु जोधपुर पधारे थे, तब आपने सेवा मन्दिर में प्रतिमाह आयोजित व्याख्यानमाला के अन्तर्गत 'भारतीय दर्शन में अनेकान्तवाद' विषय पर विश्लेषणात्मक एवं बोधपरक व्याख्यान दिया था। आपसे अनेक संगोष्ठियों में मधुर मिलन हुआ है तथा आपके वैदुष्यपूर्ण व्याख्यानों और वक्तव्यों से बहुत कुछ सीखने को मिला है। मैं आपके दीर्घायुष्य, उत्तम स्वास्थ्य एवं सुखद भविष्य की शुभकामना करता हूँ। प्रो. धर्मचन्द जैन अधिष्ठाता, कला, शिक्षा एवं समाज-विज्ञान सङ्काय, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर सुदर्शनाष्टकम् बुन्देलखण्डे जनि लब्ध्वा, पूज्य: जैनमण्डले। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।। 1 / / शुद्धाचार: सुप्रतिष्ठित-शुचि दक्षः सुबुद्धिमान् / मनोरमा-युतः सुदर्शनः प्राकृतभाषा-विशारदः / / 2 / / सितसौम्य-स्वभावस्य, विद्याविपिनचारिणः / शास्त्राध्ययनलग्नस्य के न वाञ्छन्ति दर्शनम्।। 3 / / विद्याविनय-सम्पन्नः, राष्ट्राध्यक्ष-पुरस्कृतः / काशीविद्वत्सभा-मान्य: जयतु नित्यं सुदर्शनः / / 4 / / दीर्घायुः धीरः साहसी वीरः, सुसमृद्धः प्राकृतविद्याधरः। शान्तः, दान्तः सुकान्तः सारस्वत-सुदर्शन-युतः / / 5 / / सरस्वती-सिद्धयोः सूनु, श्री-धी-विद्या-संयुतः। काशीपीठे कलासङ्कायाध्यक्षः जिनविद्यासमलंकृतः।। 6 / / शास्त्राकाशदिवाकरम् अभिनवमाचार्यचूडामणिम्। दीपो ज्ञानमयो येन गुरुणा प्रज्वालितो भास्वरः।।7।। तं वन्दे सुर-भारती-सुतनयं दर्शनशं सुदर्शनम्। आचार्यं सुदर्शनवरं गुरुवरं प्राकृतसंस्कृतविद्यावरम्।। 8 / / डॉ. श्रीमती राका जैन धर्मपत्नी, प्रो. विजय कुमार जैन, लखनऊ 39
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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