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________________ सिद्ध-सारस्वत चुका है। पार्श्वनाथ विद्याश्रम, गणेश वर्णी संस्थान जैसे उच्च प्रतिष्ठानों में आपने निदेशक और मंत्री के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान कर उन संस्थानों का गौरव बढ़ाया है। सम्प्रति वयोवृद्ध होते हुए भी आप निरन्तर लेखन कार्य करते हुए समाज का मार्गदर्शन करते रहते हैं। मुझे स्मरण है कि श्री स्याद्वाद संस्कृत महाविद्यालय भदैनी, वाराणसी में सन् 1967 में प्रथमवार मेरा आपसे परिचय हुआ था। उस समय आप सम्भवतः वर्धमान कालेज बिजनौर में संस्कृत के प्राध्यापक पद पर नियुक्त हो चुके थे। एक वर्ष पश्चात् ही आपकी नियुक्ति काशी हिन्दु विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में प्राध्यापक के पद पर हो गई थी। प्रारम्भ में आप सपरिवार स्याद्वाद महाविद्यालय के पास में स्थित, विद्यालय के ही एक भवन में रहते थे। इसलिए प्रायः प्रतिदिन आपके दर्शन हो जाया करते थे। विनम्रता, सहजता, शालीनता आदि गुणों से विभूषित सम्मान्नीया भाभी जी सहित आपके सहज स्नेह के आकर्षण के कारण हम सभी छात्रों का आपसे विशेष लगाव था। सन् 1973 से सन् 1979 तक काशी हिन्दु विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान आपसे विशेष सम्पर्क रहा। विना किसी संकोच के हम लोग गुरुदेव से शैक्षणिक परामर्श लेते रहते थे। साथ ही एम0ए0 में मुझे आपसे साक्षात् अध्ययन करने का सुअवसर भी प्राप्त हुआ। इस तरह आप मेरे साक्षात् विद्यागुरु भी रहे हैं, यह मेरे लिए अत्यन्त गौरव की बात है। ___ अत्यन्त प्रसन्नता का विषय है कि जिनवाणी के अनन्य उपासक, श्रमण संस्कृति के सम्वर्द्धक एव समाज के सम्मानार्थ अभिनन्दन ग्रन्थ 'सिद्ध सारस्वत' का प्रकाशन करने जा रहा है। ग्रन्थ के प्रकाशन के लिए हमारी अनन्त शुभकामनाएं हैं और सम्माननीय गुरुदेव का लाभ समाज और हम सभी शिष्य समुदाय को प्राप्त होता रहे, एतदर्थ हम सभी उनके स्वस्थ रहते हुए शतायु होने की कामना करते हैं। डॉ. नरेन्द्रकुमार जैन पूर्व प्राध्यापक, डिग्री कालेज, गाजियाबाद (उ0प्र0) जैनजगत के गणमान्य बहुश्रुत व्यक्तिः प्रो. जैन प्रो. सुदर्शन लाल जी के लिए अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन हो रहा है। इससे अधिक खुशी की बात क्या हो सकती है। ऐसे गणमान्य बहुश्रुत व्यक्ति का सम्मान होना ही चाहिए। जिसने भी इस योजना को बनाया है वे बहुत साधुवाद के पात्र हैं। आपके बारे में जितना कुछ लिखें या गुणगानों का बखान करें उतना ही कम है। आपने देश-विदेश की यात्राएँ की। अपने व्याख्यानों के माध्यम से जैनजगत में जैन सिद्धान्तों का प्रचार-प्रसार किया। आपने अनेक छात्रों को पीएच. डी. करवायी। आपके छात्र आपके प्रति नतमस्तक हैं। आप एक पॉजिटिव विचारधारा के व्यक्ति हैं। आपने कभी किसी का अहित नहीं किया है, इसी कारणवश जैन जगत में आप प्रसिद्ध हैं। आपने अनेक ग्रन्थों का प्रकाशन किया है। आपका शोध प्रबन्ध भी पार्श्वनाथ विद्याश्रम से प्रकाशित है, जो अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है। अनेक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में इसे रखा गया है। जिसका लाभ शोधछात्रों को प्राप्त हो रहा है। आपने राष्ट्रपति पुरस्कार के साथ ही अन्य अनेक पुरस्कार भी प्राप्त किये हैं। आप न केवल प्राकृत अपितु संस्कृत, पालि एवं अन्य भाषाओं के विद्वान हैं। आपके बारे में जितना लिखा जाये या गुणगान किया जाये वह कम है। आप एक सरल मृदु स्वभाव वाले पुरुष हैं। मैं ऐसे प्रो. सुदर्शन लाल जी जैन के दीर्घायु की कामना करता हूँ। आपकी मुझ पर भी बहुत कृपा रही है। अतः मैं आपका जितना भी गुणगान करूं उतना ही कम है। वास्तव में प्रो. सुदर्शन लाल जी जैन गुणों का अथाह समुद्र हैं। आपमें जीवन-मूल्य एवं नैतिकआदर्शरूपी रत्न भरे पड़े हैं। वास्तव में आप एक प्रस्फुटित गुलाब की तरह हैं जिसकी भीनी-भीनी खुशबु रूपी यश जैनजगत में व्याप्त है। ऐसे प्रो. साहब को मेरा कोटि-कोटि प्रणाम। प्रो. हुकमचन्द जैन सेवानिवृत्त आचार्य एवं पूर्व विभागाध्यक्ष जैनविद्या एवं प्राकृत विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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