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________________ तं लक्खण पाउन्तं आगमसुत्तेसु जिणदेहं / / विदेह क्षेत्रस्थ तीर्थङ्करों के गर्भ जन्म कल्याणक नहीं होते (प्रायः अन्तिम तीन कल्याणक - तप, ज्ञान और मोक्ष होते) हैं। अत: उनके जन्म कल्याणक के अभाव में इस पौराणिक हेतु का खण्डन नहीं किया जा सकता है। एक पक्ष यह भी है कि तीर्थङ्करों के चिह्न के पीछे उनके पूर्व भव या वर्तमान भव की कोई घटना कारण है। जैसे प्रथम तीर्थङ्कर आदिनाथ (ऋषभदेव) ने प्रथमतया कृषि की शिक्षा दी थी और कृषि में बैलों की सहायता ली जाती थी। अत: खेती के लिये बैलों की सुरक्षा सूचित करने लिए उनका चिह्न बैल मान लिया गया। धरणेन्द्र और पद्मावती पूर्व भव में सर्प-सपणी थे उनकी प्राण रक्षार्थ भगवान पार्श्वनाथ ने प्रयत्न किया तथा मृत्यु समय उन्हें धर्मोपदेश दिया जिसके फलस्वरूप वे दोनों स्वर्ग में धरणेन्द्र तथा पद्मावती हुए। जब पार्श्वनाथ पर कमठ के जीव ने उपसर्ग किया तो धरणेन्द्र-पद्मावती ने सर्पफणावलि बनाकर उनकी सुरक्षा की। इसलिए इनका चिह्न सर्प मान लिया गया। भगवान महावीर अपने पूर्व भव में सिंह के रूप में थे। अत: उनको चिह्न सिंह स्वीकार कर लिया गया। इसी तरह अन्य तीर्थङ्करों के चिह्नों के सम्बन्ध में भी खोज की जा सकती है। परन्तु यह विचारधारा प्रामाणिक नहीं लगती। तीर्थङ्कर चिह्नों के हेतु के रूप में आज दो अन्य हेतुओं को भी प्रस्तुत किया जाता है-(1) इन चिह्नों के द्वारा जीव-दया, शान्ति,वीत रागता आदि का सन्देश दिया गया है। (2) प्रकृति के साथ मानव जीवन को जोड़कर पर्यावरणसंरक्षण का सन्देश दिया गया है। इस तरह तीर्थङ्कर चिह्नों के इन पाँच कारणों में से पौराणिक कारण का हम न तो खण्डन कर सकते हैं और न मण्डन क्योंकि यह श्रद्धा का विषय है। सुखपूर्वक पहचान तथा अचेतन में संव्यवहार सिद्धि के रूप में जो हेतु वसुविन्दु ने प्रस्तुत किया है वह युक्तिसङ्गत लगता है। सम्भव है, इसमें अन्य तीन प्रयोजनों को भी दृष्टि में रखा गया हो। तीर्थङ्करचिह्नों के निर्धारणार्थ कोई समिति हुई हो ऐसा कोई उल्लेख नहीं मिलता है। पौराणिक कारण से भिन्न यदि कोई कारण रहा होगा तो निश्चय ही कोई समिति का आयोजन हुआ होगा, अन्यथा सर्वत्र चिह्न निर्धारण में एकरूपता कैसे आती। चिह्न निर्धारण करते समय इस बात का ध्यान रखा गया होगा कि जन साधारण तीर्थङ्करों और चिह्नों को आसानी से समझ सके तथा उनसे कोई सन्देश प्राप्त कर सके। आजकल के राजनैतिक पार्टियों के चुनाव चिह्नों में भी कुछ इसी प्रकार का उपक्रम देखा जाता है। तीर्थङ्कर चिह्न तालिकातिलोयपण्णत्ति आदि ग्रन्थों में दिगम्बर और श्वेताम्बर मान्यतानुसार जो तीर्थङ्कर चिह्न मिलते हैं, उनकी तालिका निम्न हैक्रम तीर्थङ्कर दिगम्बर परम्परा श्वेताम्बर परम्परा विवरण 1. आदिनाथ (ऋषभदेव) वृषभ (बैल) वृषभ (आदिनाथ के मस्तक और कन्धों पर जटाएँ भी कहींकहीं मिलती हैं) खेती के साधन का प्रतिनिधि / गोइन्द्रियकुल स्वामी वृषभ (गोपति) जो जितेन्द्रियता, भद्रता, सरलता और अप्रमत्तता का प्रतीक है। 2. अजितनाथ गज (हाथी) हाथी मृत्यु को महोत्सव की तरह वरण करता है। ऐसी मृत्यु (सल्लेखना) भाग्यशालियों को प्राप्त होती हैं। यह विवेक, पराक्रम, साहस, सहिष्णुता, संवेदनशीलता का प्रतीक है। संभवनाथ अश्व (घोड़ा) अश्व मनरूपी घोड़े का संयम / स्वामिभक्ति = आत्मदर्शन तथा शक्ति का प्रतीक। अभिनन्दननाथ वानर (बन्दर) वानर डार्विन के मत से बन्दर मनुष्यों का पूर्वज है। वानर जैसी चंचलता को छोड़कर स्थितिप्रज्ञ बनने का सन्देश। सुमतिनाथ चक्रवाक (चकवा) क्रौञ्च (कुरर) चकवा एक जलीय पक्षी है, जो रात्रि में अपने जोड़े से बिछुड़ जाता (चकबा-कुरर) है। यह स्वानुभूति का प्रतीक है तथा अज्ञान से प्रकाश का द्योतक है। कुरर पक्षी अकिञ्चनता और करुणा का प्रतीक है। 6. पद्मप्रभ कोकनद (लालकमल) लालकमल ताम्र वर्ण का कमल। अनासक्ति, निर्लिप्तता, करुणा, गौरव, महत्ता तथा सौभाग्य का प्रतीक है। 3. 3. संभवनाथ 228
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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