________________ 7. सुपार्श्वनाथ 7. सुपार्श्वनाथ 8. चन्द्रप्रभ चन्द्रप्रभ अर्द्ध चन्द्र चन्द्र पुष्पदन्त (सुविधिनाथ) शीतलनाथ 11. श्रेयांसनाथ 12. वासुपूज्य महिष 13. विमलनाथ 14. अनन्तनाथ नन्द्यावर्त या साथिया स्वस्तिक(साथिया) नन्द्यावर्त वह भवन जिसमें पश्चिम की ओर द्वार न हो। यह परम आनन्द की उपलब्धि का मार्ग है तथा उदय का प्रतीक है। स्वस्तिक (सु-अस्ति-भला होना) एक दूसरे को काटती हुई दो रेखायें जन्म-मरण की तथा उसके चारों सिरों से प्रारम्भ होकर घूमती रेखायें चतुर्गति की प्रतीक हैं। भवभ्रमण के साथ यह मङ्गलकामना का भी प्रतीक है। हिन्दुओं के विघ्न-विनाशक गणेश देवता का लिप्यात्मक रूप स्वस्तिक ही है। सुपार्श्वनाथ के शिरोभाग पर 5 फणों की पंक्ति भी मिलती है। अर्द्ध चन्द्र अर्धचन्द्र विकासोन्मुखता का तथा चन्द्रमा शीतलता का प्रतीक है। मकर (मगर) मकर श्वेताम्बर परम्परा में सुविधिनाथ नाम अधिक प्रचलित है। मकर से मकरध्वज (कामदेव) का भी बोध होता है। यह विषय वासना का प्रतीक है जिससे वचना चाहिए। स्वस्तिक (साथिया) श्रीवत्स श्रीवत्स वक्षस्थल पर उत्कीर्ण कमलाकार चिह्न है। यह परमज्योति का प्रतीक है। खङ्गी (गैंडा) गैंडा गैंडा एक शाकाहारी एकदन्त पशु है जिसकी थूथन पर करीब एक फुट लम्बी खाग होती है। घासपात खाकर भी बड़ा बलिष्ठ होता है। एकाग्रता से आत्मरक्षा करता है। चित्त की एकाग्रता का प्रतीक है। महिष (भैंसा) दलदल में डूबा तथा संसार से बेखवर पशु है। एकाग्रता तथा संसार की दलदलता का प्रतीक है। शूकर (सुअर) वराह (सुअर) शूकर और वराह एक ही पशु के दो नाम हैं जो समल और विमल का बोधक है। घृणा मतकर वीतरागी बन। खगी (सेही) श्येन (बाज) सेही के शरीर पर नुकीले काँटे होते हैं जिनसे यह आत्मरक्षा करता है। यह शाकाहारी रात्रिचर पशु है, अन्दर काँटे नहीं हैं। अत: आत्म उपलब्धि का प्रतीक है। श्येन शिकार के उपयोग का पक्षी है। पर का मुहरा न बनकर स्व-पर भेदविज्ञानी बनने का सन्देश। वज वज्र भाले के फलक जैसा इन्द्र का एक कठोर अस्त्र। दृढ़ता एवं रत्नत्रय की शक्ति का प्रतीक। हरिण हरिण शाकाहारी सुन्दर पशु। सरलता, सुन्दरता और शान्ति का प्रतीक। छाग (बकरा) छाग शाकाहारी, घासपास भोगी एक सीधा पशु। सरलता का प्रतीक तथा विश्वासघात न करने का उपदेशक। तगरकुसुम या मत्स्य नद्यावर्त तगर-नदी तटों पर पाया जाने वाला एक सुगन्धित लकड़ी का वृक्ष जिससे सुगन्धित तेल निकाला जाता है। वीतरागता की सुगन्धि का प्रतीक। तगरकुसुम का अर्थ मछली (मत्स्य) भी किया जाता है जो रसना इन्द्रिय को जीतने का सन्देश देती है। कलश कलश कलश (घड़ा) जो पानी से भरा होछ। ज्ञान जल से शरीररूपी कलश को भरने का सन्देश। कलश का अर्थ शिखर भी है जो उन्नति का प्रतीक है। कूर्म (कच्छप) कच्छप (कछुआ) कछुआ अपने अङ्गों को समेट लेता है तथा जल कल्मष को धोती रहता है। यह संयम, आत्ममग्नता और स्वच्छता का प्रतीक है। नीलोत्पल (नीलकमल) नीलोत्पल यह अनासक्ति और निष्कामवृत्ति का प्रतीक है। पुष्कर और इन्दीवर भी इसे कहते हैं। पुण्डरीक श्वेत कमल को कहते हैं 229 15. धर्मनाथ शान्तिनाथ कुन्थुनाथ 18. अरहनाथ (अरनाथ) 19. मल्लिनाथ 20. मुनिसुव्रतनाथ 21. नमिनाथ