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________________ 2. ऋग्वेद 7, 33,2, 5, 83, 8,आप्टे, संस्कृत हिन्दी कोश, विश्वामित्र शब्द। 3. हिन्दू धर्मसमीक्षा, हिन्दी ग्रन्थ इत्नाकर, बम्बई; जैन साहित्य का इतिहास, पूर्वपीठिका पृ0 78,82; गीता रहस्य (लोकमान्य तिलक) संन्यास और कर्मयोग प्रकरण। शतपथ ब्राह्मण 13 : 4:1:1; बौधायन धर्मसूत्र 2 : 6 : 11 : 33-34;. आपस्तम्बसूत्र 9 : 24 : 8. ऋग्वेद- 10 : 136 : 1-4; भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, पृ0 13-14. 5. भागवतपुराण 5: 3:20. 6. भागयत 5:5. 7. अनेकान्त वर्ष 1, पृ0 539-540 8. भागवत 5 : 5. 9. बृहदारण्यक 4:3:22. 10. वाल्मीकि, सर्ग 18. 11. अशोक स्तम्भ लेख नं0 7. 12. भगवती आराधना 70 विजयोदया टीका 13. भगवती आराधना 60 विजयोदया टीका 14. बौ0 सू0 16 : 30; पाणिनिकालीन भारत, वासुदेवशरण अग्रवाल, पृ0 377. 15. ऋषभ सौरभ; डॉ. गोकुल प्रसाद जैन संस्कृति प्रसार / कामता प्रसाद जैन, दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि। हिन्दू धर्म और दिगम्बरत्व। यज्ञ : एक अनुचिन्तन जैन, बौद्ध एवं ब्राह्मण ग्रन्थों के परिशीलन से ज्ञात होता है कि जिस समय भगवान् महावीर और बुद्ध ने जन्म लिया था उस समय वेदविहित हिंसा प्रधान यज्ञों का प्रचलन धर्म के रूप में इतनी अधिक मात्रा में था कि प्रत्येक आवश्यक क्रियाओं की सफलता के लिये इन यज्ञों को करना आवश्यक समझा जाता था। जैसे पुत्रप्राप्ति के लिए, धन की प्राप्ति के लिए युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए आदि। इस युग को कर्मकाण्डी ब्राह्मण युग कहा जाता हैं जिसमें पौरोहित्यवाद ने जोर पकड़ा तथा पुरोहित (पुजारी) देवों के तुल्य समझे जाने लगे। वेदों को नित्य अपौरुषेय एवं ईश्वरप्रदत्त मानने की प्रवृत्ति का भी उदय इस काल में हुआ। परम पुरुष के निश्वास के रूप में भी इनकी प्रसिद्धि हुई। जो इनका ज्ञाता होता था वही पण्डित कहलाता था तथा समाज में आदर की दृष्टि से देखा जाता था। यज्ञान प्राप्त करने का भी अधिकारी वेदविद् ब्राह्मण ही समझा जाता था। बाह्मण लोग यज्ञों में निरपराध एवं मूक पशुओं का हनन व हवन यह कह कर किया करते थे कि वेदविहित हिंसा हिंसा नहीं कहलाती है। वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति' तथा इसके सन्दर्भ में औषधि, पशु, वृक्ष, तिर्यञ्च और पक्षी यज्ञ में होम की विधा से मृत्यु को प्राप्त होकर स्वर्ग को प्राप्त करते हैं। पशु वगैरह की सृष्टि यज्ञ में हवन करने के लिए ही हुई है। एक तरफ गाय में 33 करोड़ देवताओं का निवास मानते थे और दूसरी तरफ धर्म के नाम पर यज्ञमण्डप में उसके, करुणक्रन्दन करते रहने पर भी हिंसा किया करते थे। ज्ञान-पुञ्जरूप ऋग्वेद में यज्ञ के यथार्थ रूप का दर्शन देवों की आराधना के रूप में होता है परन्तु कालान्तर में ब्राह्मण ग्रन्थों में यज्ञ को एक जादू-टोना का रूप प्राप्त हुआ जो यज्ञ प्रक्रिया की एक अवनति थी' तथा वेदविहित धर्म को कलुषित करना था। किस तरह वेदविहित धर्म को इन धूर्त माँस-लोलुप वेद के व्याख्याकारों ने अश्वमेध, राजसूय आदि यज्ञों में धर्म के नाम पर अगणित निरपराध प्राणियों की हिंसा करके, कलुषित किया तथा स्वयं पतित होकर दूसरों को भी पतिताचार में प्रवृत्त कराया, इसका वर्णन हम आगे करेंगे। सर्वप्रथम हम यह जान लें कि इन ब्राह्मण ग्रन्थों में जिनमें यज्ञ-याग का ही सविस्तार वर्णन है, किस तरह यज्ञ करने की प्रथा थी तथा यज्ञ में कौन-कौन से उपकरण होते थे ? यज्ञ के अवसर पर एक यज्ञमण्डप बनवाया जाता था जिसके बीच में यज्ञ वेदिका होती थी जहाँ प्रज्ज्वलित अग्नि में आहुतियां दी जाती थीं। इन यज्ञों का सम्पादन चार विशिष्ट व्यक्ति ऋत्विज् मिलकर करते थे जो चारों वेदों के विशिष्ट ज्ञाता कहलाते थे। उनके नाम और कार्य निम्न प्रकार से थे - (1) होता ऋत्विज् - यह यज्ञ के समय विशिष्ट मन्त्रों द्वारा देवता का आह्वान करता था। उन विशिष्ट मन्त्रों का सङ्कलन ऋग्वेद में होने से यह ऋग्वेद का पूर्णज्ञाता होता था। 195
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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