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________________ सिद्ध-सारस्वत गया था तो वहां पर सम्मान किया गया था। इसके अलावा मैं जहां जहां पर्युषण, महावीरजयन्ती, सङ्गोष्ठी आदि में गया वहां सम्मान प्राप्त किया, जिसकी लिस्ट अलग से संलग्न है। कलकत्ता जैन महासङ्घ (जुलाई 1989), रांची दि0 जैन पंचायत (10 जून 1992), सुरभिग्राम डगमगपुर (25 दिसंबर 2005), भगवान् पार्श्वनाथ जन्म कल्याणक तृतीय सहस्त्राब्दि महोत्सव समिति गणिनी प्रमुख ज्ञानमति जी के सान्निध्य में (7 जनवरी2005), सारनाथ सान्निध्य गणिनी प्रमुख ज्ञानमति जी (नवम्बर 2002), अहमदनगर पाथर्ड जैन धार्मिक शिक्षाबोर्ड (15 जनवरी 2017), भोपाल सान्निध्य आचार्यश्री 108 विद्यासागर जी (16 अक्टूबर 2016), वाराणसी श्वेताम्बर मुनि श्री विजयसूरि जी, जयपुर मुनि श्री उर्जयन्त सागर जी सान्निध्य, जयपुर चौमासा मुनि श्री विरागसागर जी ,उदयपुर जैनधर्म प्रभावना समिति, सांगानेर उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी सांनिध्य, वाराणसी बीएचयू विडला छात्रावास, संस्कृत विभाग बी0ए0; एम0ए0 छात्रों द्वारा। (ग) अध्ययनकाल में छात्रवृत्ति - 1.पार्वतीबाई छात्रवृत्ति बी ए में (1960-1962); 2. शंकरगणेश कर्नाटक छात्रवृत्ति एम ए में (1962-1964), 3. पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध छात्रवृत्ति (1964-1965)4. साहू जैन ट्रष्ट (1963) जो मैने नेशनल डिफेन्स (प्रधानमंत्री फंड) को दे दी। प्रकाशित ग्रन्थ 1. उत्तराध्ययन सूत्र - एक परिशीलन -यह ग्रन्थ उत्तरप्रदेश संस्कृत अकादमी से 1970-1971 वर्ष में पुरस्कृत किया गया। यही मेरा पी-एच0डी0 का विषय था। इसका प्रकाशन 1970 में पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी से हुआ था। इसका द्वितीय संस्करण 2012 में पार्श्वनाथ विद्यापीठ तथा प्राकृत भारती एकेडमी जयपुर के संयुक्त रूप से हुआ है। इसका गुजराती अनुवाद प्रोफेसर अरुण एस जोशी संस्कृत विभागाध्यक्ष गुजरात विश्वविद्यालय भावनगर ने किया जो पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी से 2001 में प्रकाशित हुआ। 2. संस्कृत प्रवेशिका - इसके पांच संस्करण निकल चुके हैं (1974; 1981; 1983; 1989; 2003) इसके प्रथम चार संस्करण सिद्ध सरस्वती प्रकाशन से तथा पंचम संस्करण तारा बुक एजेंसी वाराणसी से छपे हैं। इस ग्रन्थ की विशेषता है कि प्रत्येक पेज को प्रायः तीन भागों में विभाजित किया गया है- ऊपर का भाग सामान्य नियम बतलाता है, मध्य का भाग विशेष नियम तथा नीचे का भाग मूल प्राचीन ग्रन्थों के प्रमाण से संबन्धित है। पूरे ग्रन्थ को पांच खंडों में विभक्त किया गया है-व्याकरण, अनुवाद, निबन्ध, अपठित तथा परिशिष्ट / संस्कृत व्याकरण से संबन्धित समस्त सामग्री एक साथ व्यवस्थित उपलब्ध होने से कक्षा 10 से एम0ए0 तक के छात्रों और अध्यापकों को लोकप्रिय हो गयी है। इसके प्रकाशन का उत्तरदायित्व अब तारा बुक एजेन्सी वाराणसी ने ले लिया है। 3. प्राकृत-दीपिका - इसका प्रथम संस्करण 1983 में तथा द्वितीय संस्करण 2005 में पार्श्वनाथ विद्यापीठ से प्रकाशित हुए हैं। इसमें प्राचीन व्याकरण ग्रन्थों के सूत्रों के साथ आधुनिक भाषाविज्ञान का समावेश है। इसके चार खंड हैं - व्याकरण, अनुवाद, अपठित (संस्कृत छाया व हिन्दी अनुवाद के साथ विभिन्न प्राकृत भाषाओं के उद्धरण) तथा परिशिष्ट (शब्दकोश आदि)। 4. देव, शास्त्र और गुरु - उत्तरप्रदेश संस्कृत संस्थान से इसे ई0 1994 में पुरस्कृत किया गया है। इसके चार संस्करण निकल चुके हैं (जुलाई 1994; सितम्बर 1994; फरवरी 1995) / इसमें दिगम्बर जैन परम्परानुसार देव (ईश्वर या तीर्थकर), शास्त्र (आगम या जिनवाणी) और गुरु (मुनि या वीतरागी साधु) का प्रामाणिक विवेचन है तथा मूलग्रन्थों के उद्धरण दिये गये हैं। दिगम्बर जैन ग्रन्थ और ग्रन्थकारों की विस्तृत सूची दी गई है। इसका प्रकाशन अ०भा० दि०जैन विद्वत् परिषद् ने किया है। जैन समाज में बहुत लोकप्रिय है। 5. मुनिसुव्रत काव्य-यह महाकाव्य स्वोपज्ञ संस्कृत टीका के साथ महाकवि अर्हद्दास द्वार रचित है जिसका मैंने हिन्दी अनुवाद तथा प्रस्तावना के 62 पृष्ठों में जैन काव्य साहित्य का ऐतिहासिक परिचय दिया है। इसका प्रकाशन सिङ्कई टोडरमल जैन कटनी वालों ने ई0 1997 में किया है। उत्तरप्रदेश संस्कृत एकेडमी ने ई0 1997 में पुरस्कृत किया है। तर्कसंग्रह - यह न्याय दर्शन का तर्क ग्रन्थ पं० श्री अन्नंभट्ट द्वारा लिखा गया है। इस पर मैने हिन्दी अनुवाद तथा स्वोपज्ञ हिन्दी मनीषा व्याख्या लिखी है। छात्रों में बहुत लोकप्रिय हुई है। सिद्ध सरस्वती प्रकाशन से इसके दो संस्करण ( 1982; 2004) निकले हैं। इसके बाद दूसरे प्रकाशक ने इसके प्रकाशन का अधिकार ले लिया। 152
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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