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________________ सिद्ध-सारस्वत 7. कर्पूरमञ्जरी - प्राकृत भाषा में रचित यह सट्टक नामक नाट्यविधा का काव्य महाकवि श्री राजशेखर द्वारा लिखा गया है। इसमें महाराष्ट्री और शौरसेनी प्राकृतों का समावेश है। कई विश्वविद्यालयों में इसे पाठ्यग्रन्थ के रूप में पढाया किया हा प्राकृत भाषा सम्बन्धी विस्तृत विवेचना की गई है। इसका प्रकाशन ई0 1983 में भारतीय विद्या प्रकाशन वाराणसी ने किया। 8. द्रव्यसंग्रह-सिद्धान्तिदेव श्री नेमिचन्द्राचार्य द्वारा लिखित जैनदर्शन का यह ग्रन्थ बहुत प्रामाणिक और प्रचलित है। यह प्राकृत भाषा में निबद्ध है। इसके हिन्दी अनुवादक हैं मुनि श्री सुन्दरसागर जी। गागर में सागर की तरह इस ग्रन्थ का मैंने सम्पादन किया है तथा विस्तृत भूमिका भी लिखी है। इसका प्रकाशन ई02000 में सिद्ध सरस्वती प्रकाशन वाराणसी से हुआ। उत्तरप्रदेश संस्कृत एकेडमी ने ई02000-2001 में पुरस्कृत करके इसका सम्मान बढाया। 9. सम्यग्दर्शन-आचार्य विरागसागर की इस कृति का मैंने सम्पादन किया तथा विस्तृत भूमिका लिखी। इसका प्रकाशन ई0 2002 में श्री सम्यग् दिगम्बर जैन विराग विद्यापीठ भिंड से हुआ। इसके बाद इसके कई संस्करण निकले। 10. जैन कुमारसम्भव - महाकवि कालिदास के कुमारसम्भव को माध्यम बनाकर यह महाकाव्य श्री जयशेखर सूरि ने लिखा है। इस पर श्रीमती डा0 नीलमरानी श्रीवास्तव ने पीएच0डी0 की उपाधि प्राप्त की है। इसका सम्यक् सम्पादन करके विस्तृत प्रस्तावना मैंने लिखी है। इसका प्रकाशन ई0 2011में पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी तथा प्राकृत भारती एकेडमी जयपुर ने संयुक्त रूप से किया है। 11. पूजन का वैज्ञानिक अनुशीलन-उपाध्याय मुनिश्री निर्भयसागर (आज आचार्य हैं) जी द्वारा लिखित इस ग्रन्थ का मैंने संदर्भ ग्रन्थों से उद्धरण देकर सम्पादन किया है तथा विस्तृत प्रस्तावना लिखी है। इसमें जैन पूजा क्या है, उसका साध्य क्या है ,उसका साधन क्या है, पूज्य कौन है, पूजक कौन है, पूजा कितने प्रकार की है, पूजा का फल क्या है, आदि का विस्तृत वैज्ञानिक विवेचन है। देवदर्शन, मंत्र, तंत्र, वास्तु आदि का भी विवेचन है। इसका प्रकाशन ई० 2009 में निर्भय निर्ग्रन्थ वाणी प्रकाशन नागलोई दिल्ली से किया गया है। 12. धरती के देवता - यह ग्रन्थ मुनि सुनीलसागर द्वारा लिखित है। इसका मैंने सम्पादन किया है। पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन पुस्तकालय भेलूपुर वाराणसी से ई0 1999 में प्रकाशन हुआ है। 13. कषायपाहुड (भाग 16)-यह दिगम्बर जैन आगम का प्रथम सैद्धान्तिक सूत्र ग्रन्थ है जो आचार्य गुणधर द्वारा ईसा से प्रथम शताब्दी पूर्व लिखा गया था। इस पर आचार्य वीरसेनस्वामी द्वारा रचित जयधवला टीका (संस्कृतप्राकृत मिश्रित) तथा हिन्दी अनुवाद के साथ ई0 1990 में भारतीय दिगम्बर जैन सङ्ग मथुरा द्वारा प्रकाशित है। इसके सम्पादन में मैं सहयोगी रहा हूं। 14. तैत्तरीय प्रातिशाख्य (15) - यह प्रो० वीरेन्द्र कुमार वर्मा द्वारा लिखित हिन्दी अनुवाद के साथ ई0 1993 में संस्कृत स्टडीज एण्ड रिसर्च, संस्कृत विभाग बीएचयू वाराणसी से प्रकाशित है। ग्रन्थमाला सम्पादक के रूप में मैंने सम्पादन किया है। 15. आचारांगसूत्र एक अध्ययन - यह परमेष्ठी दास जैन का पीएच0डी0 का शोधप्रबन्ध है। इसका प्रकाशन ई0 1987 में पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी से हुआ है। इसके सम्पादन में डा0 सागरमल जैन के साथ मेरा भी सहयोग रहा है। 16. भारतीय संस्कृति एवं साहित्य में जैनधर्म का योगदान - इलाहाबाद में आयोजित विद्वत् सङ्गोष्ठी में पठित आलेखों का मैंने सम्पादन किया है। डा0 प्रेमचंद जी इलाहाबाद के सौजन्य से इसका प्रकाशन अ०भा० दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् ने ई0 1996 में किया था। 17. महावीरकालीन समाज, संस्कृति और दर्शन की वर्तमान में प्रासङ्गिकता - यह डा0 नागेन्द्र पाण्डेय का पी एच0डी0 का शोध प्रबन्ध है। इसका मैं ग्रन्थमाला सम्पादक रहा हूं। इसका प्रकाशन ई0 2011 में पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी से हुआ है। 18. कर्मग्रन्थ -शतक (कर्मविपाक भाग 5 )- यह ग्रन्थ श्री देवेन्द्र सूरी द्वारा विरचित है। इसका हिन्दी अनुवाद एवं व्याख्या पं0 कैलाशचंद्र शास्त्री ने की है। ई0 2011 में इसका प्रकाशन पार्श्वनाथ विद्यापीठ से हुआ। मैंने ग्रन्थमाला सम्पादक के रूप में काम किया है। 19. प्राकृत हिन्दी कोश (पाइअसद्दमहण्णवो )-पं0 हरगोविन्ददास त्रिक्रमचंद सेठ विरचित पाइअसद्दमहण्णवो का 153
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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