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________________ सिद्ध-सारस्वत उनका चातुर्मास (ई. 2018) जरूआखेड़ा (सागरजिला) में चल रहा है। (2) मेरे एक भतीजे रजनीश ने प. पू. श्री 108 विद्यासागर आचार्य से मुनि दीक्षा ली और आज उनके सङ्घ में रहकर मोक्षपक्ष पर समरूढ़ हैं। आचार्य श्री का चातुर्मास इस समय (ई. 2018) खजुराहो में हो रहा है। आचार्य श्री ने उनको दीक्षा देकर सम्भवसागर नाम दिया। (3) हमारी भाभी श्रीमती चमेली बाई भी दश प्रतिमाधारी हैं। (4) मेरी सास डॉ. मनोरमा की माता स्व. श्रीमती सोना जैन ने यद्यपि प्रतिमाएं नहीं ली थीं परन्तु प्रतिमाधारियों जैसी ही चर्या करती थीं। त्याग तथा धर्माराधना में लीन रहना उनका स्वभाव बन गया था। जैनधर्म पर अटूट श्रद्धा थी। धर्माचरण पूर्वक उनका मरण हुआ। (5) मेरी छोटी बहिन (श्रीमती ललिता बाई) के ससुर भी स्व. सिङ्घई अमीर चन्द जैन बहुत शान्त-परिणामी और 9-10 प्रतिमाधारी थे। (6) मेरे पिता श्री, पत्नी, बच्चे बगैरह सभी सुसंस्कारित और धार्मिक प्रवृत्ति के हैं। स्वतंत्रता संग्राम में योगदान (1) हमारी छोटी बहिन के पति स्व. श्री देवचन्द जी जैन कांग्रेसी थे तथा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे। उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। (2) मेरे पिताश्री सिद्धेलाल जी चूंकि सरकारी स्कूल में शिक्षक थे जिससे खुलकर तो नहीं आए परन्तु स्वतंत्रता संग्रामियों की मदद करना उनका स्वभाव बन गया था। (3) मेरी पत्नी के बड़े ताऊ स्व. सिं. श्री गुलाबचंद जी भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे तथा जले भी गए थे। (4) मास्टर स्व. श्री रतनचंद जैन लाखाभवन जबलपुर वाले भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे। ये हमारे भानेज श्री नन्दनलाल जैन के ससुर थे। मेरी पत्नी मनोरमा जैन और उनकी माता जी मेरी धर्मपत्नी डॉ. मनोरमा जैन का जन्म ई 6.5.1947, ज्येष्ठ कृ. प्रतिपदा, मङ्गलवार, प्रात: बंडा में नीमा बुआ के घर हुआ था। जन्म के समय अनुराधा नक्षत्र था तथा राशि नाम था नन्नीबाई। स्कूल के अनुसार उनकी जन्म ता. है 10-10-1947 उस समय मनोरमा की माताजी की उम्र 16 वर्ष थी तथा वह दो मास पूर्व (चेत सुदी 13 सन् 1947) विधवा हो चुकी थीं। उस समय दमोह में प्लेग की बीमारी फैली थी और मनोरमा के पिता (स्व. श्रीमती सोना जैन के पति श्री छोटेलाल) दूसरों का इलाज करते-करते स्वयं प्लेग की चपेट में आकर दिवंगत हो गए। सोना जैन के ऊपर इतनी छोटी उम्र में ही कष्टों का पहाड़ ही टूट पड़ने के कारण बेटी के जन्म की खुशी नहीं मना सकी। स्व. सोना जैन महाराजपुर के एक अच्छे सोधिया घराने की पुत्री थीं। जिनका बाल्यकाल सुखों में बीता था। महाराजपुर में कक्षा चार तक ही उन्होंने पढ़ा था और किशोरावस्था में ही दमोह के प्रसिद्ध सिङ्घई राजाराम जैन के सुपुत्र स्व. छोटेलाल के साथ शादी हो जाने से दमोह आ गई। विधवा होने से सोना जैन के देवर स्व. सिं. कपूरचन्द जैन ने उन्हें आरा (बिहार) स्थित विधवा जैन महिलाश्रम में पढ़ने भेज दिया, जिससे वे अपने पैरों पर खड़ी हो सकें और आगे का जीवन निर्वाह कर सकें। महिलाश्रम के कठोर नियमों का पालन करते हुए उन्होंने वहाँ कक्षा पांच से 10 वीं (मध्यमा / हाईस्कूल तक की परीक्षायें) उत्तीर्ण की। यहाँ रहकर उन्होंने जैन धर्मानुसार त्यागी-व्रतों का जीवन जीना सीख लिया। पुत्री मनोरमा को 9 मास की दमोह में छोड़कर आगे पढ़ने चली गई थीं। पुत्री की याद तो आती ही थी। यहाँ पुत्री मनोरमा ने अपने चाचा (सिं. कपूरचंद) के घर रहते हुए कक्षा तीन तक की पढ़ाई कर ली थी। इतने लम्बे समय तक माँ से दूर रहने के कारण मनोरमा अपनी माँ को माँ नहीं काकी जानती थी। इसके बाद सोना जैन नार्मल-ट्रेनिंग करने जबलपुर गई और अपनी बेटी को साथ में ले गई और वहाँ मनोरमा को फूटाताल के सरकारी स्कूल में चैथी में प्रवेश दिला दिया। नार्मल ट्रेनिंग के बाद पुन: दमोह आ गई। जहाँ मनोरमा ने कक्षा सात तक अध्ययन किया। दमोह में चाचा कपूरचंद तथा दद्दा सिं. राजाराम जी मनोरमा का बहुत ध्यान रखते थे। मनोरमा सबकी बहुत सेवा करती थी। दमोह में मनोरमा को पीलिया, सुखण्डी आदि बीमारियों से जूझना पड़ा। इसके बाद सोना जैन देवरी में सरकारी प्रायमरी स्कूल में अध्यापिका नियुक्त हो गई। तब वे मनोरमा को भी देवरी ले आई जहाँ मनोरमा ने 8वीं से 11वीं हायर सैकेण्डरी पढ़ाई की। इसके बाद पुनः दमोह आकर बी.ए. प्रथम वर्ष की परीक्षा दी। इसी मध्य मनोरमा की शादी मेरे साथ 13.5.1965 में हो गई, जिसका कथन में पूर्व में कर चुका हूँ। 146
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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