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________________ सिद्ध-सारस्वत आने को कहा। हम आपको भर्ती कर लेंगे और पुन: ऑपरेशन करना पड़ेगा। मैं अगले दिन ड्रेसिंग कराने अस्पताल की इमरजेंसी में गया तो ड्रेसिंग करने वाले को धागा दिखाई दिया जो सम्भवतः होम्योपैथी का प्रभाव था। मैंने उसे निकालकर ड्रेसिंग करने हेतु कहा। इसके बाद मैं बिजनौर आ गया। घाव ठीक हो गया। यहाँ से होम्योपैथी पर विश्वास होने लगा। (ग) इसके बाद वाराणसी में स्कूटर एक्सीडेन्ट में घुटने के लीगामेंट टूट गए। एक बार हाथ की कुहनी में टेनिस एल्बो हो गया। सेवानिवृत्ति के बाद जब मैं इन्दौर वि.वि. (अहिल्याबाई) के कुलपति के चयन पैनल में था, अचानक चिकनगुनिया हम दोनों को हो गया। जिससे महामहिम राज्यपाल से भेंट करने नहीं जा सके और कुलपति का सपना टूट गया। सेवानिवृत्ति के एक साल बाद हस्तिनापुर से लौटने पर पता लगा कि मेरे हृदय की तीन आर्टरी चोक हैं। जिनका तत्काल ऑपरेशन जरूरी है। पुत्र अभिषेक मुझे लेकर भोपाल आया। यहाँ मेरी बेटी और दामाद दोनों डॉक्टर थे। उन्होंने हार्ट स्पेशलिस्ट से बात की और भोपाल में ही 21.4.2007 (भोपाल मेमोरियल में) बायपास ऑपरेशन कराया। ऑपरेशन सफल रहा परन्तु बच्चों ने फिर कोई भी कार्य करने से मना कर दिया। सभी बच्चे अमेरिका से भी आपरेशन पूर्व ही आ गए थे। (घ) इसके बाद दोनों आँखों का मोतियाबिंद का आपरेशन कराया। एक बड़ा झटका तब लगा जब मैं डॉ. जयकुमार जैन वि. प. अध्यक्ष के अभिनन्दन समारोह में दिल्ली जा रहा था। दिल्ली स्टेशन पर उतरते ही मेरे दाहिने पैर के घुटने और कमर में अचानक दर्द हो गया (साईटिका जैसा)। किसी तरह डॉ. पंकज जैन के साथ भोपाल आ सका। उसने बड़ी सेवा की। भोपाल आकर एम.आर.आई. और एक्सरे आदि हुए। एक माह बाद प्रभु कृपा से चलने में समर्थ हो सका। कमर झुक गई थी और मैं पूरी तरह टूट चुका था। पुत्र, पिता जी और सासुजी के आपरेशन कराए मैंने अपने सुपुत्र डॉ. संदीप जैन के पोलियो का इलाज कई स्थानों पर (वाराणसी, लखनऊ, दिल्ली, मुंबई आदि) कराया। मुंबई में एक ऑपरेशन भी कराया। मैंने अपने पिता की दोनों आंखों के (ग्लोकोमा के) ऑपरेशन कराए। अपनी सासुजी के 3-4 आपरेशन (आंखों का हड्डी आदि) करवाए। अपना खून भी दिया। पूजा आदि धार्मिक-क्रियायें(1) मैं बचपन से ही धार्मिक क्रियायें करता था। जब मैं आचार्य (एम.ए.) में पढ़ रहा था तक मैं स्याद्वाद महाविद्यालय के छात्रावास में रहता था। मेरी धार्मिक क्रियाओं में रुचि होने के कारण मुझे धर्म-मंत्री बनाया गया था। दशलक्षण पर्व पर मैं विद्यालय के हॉल में श्रीजी को विराजमान करवाता था। एक बार मुझे तीन दिन का 'सिद्धचक्र विधान' कराने का मन हुआ। मैंने छात्रों के मध्य अपना प्रस्ताव रखा। सभी ने उसे सहर्ष स्वीकार किया और विधिपूर्वक विधान किया गया। रात्रि में हम लोग हॉल में जमीन पर ही सोते थे। बहुत आनन्द आया। स्थानीय समाज का भी सहयोग मिला। (2) कालान्तर में समाज के आग्रह पर भेलूपुर के मन्दिर में सिद्धचक्र विधान कराने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैंने अपने साथ डॉ. कमलेशजी को सहयोगी बनाया। उस समय हम दोनों विश्वविद्यालय में पढ़ाते थे। अतः समय बांटकर नौ दिन तक विधिवत् अनुष्ठान कराया। ध्वजारोहण, घटयात्रा, जाप, हवन आदि सभी क्रियायें की गई। समाज ने बड़े उत्साह से भाग लिया। अन्त में उन्होंने बहुत मना करने पर भी धनराशि भेंट की जिसे हम दोनों ने नरिया स्थित जैन मन्दिर को समस्त धनराशि दान दे दी तथा और पैसे एकत्रित कर नरिया मन्दिर का कार्य कराया। लोहे की ग्रिल लगवाई, पूजाकक्ष बनवाया और वेदी का नयारूप कराके वेदी-प्रतिष्ठा आदि भी विधिपूर्वक कराई। उस समय मैं उस मन्दिर का मंत्री भी था। अगले वर्षों में भेलूपुर के दूसरे दिगम्बर जैन मन्दिर में समाज के आग्रह पर 'सिद्धचक्र विधान' तथा वेदी शुद्धि का कार्य कराना पड़ा। इसके अतिरिक्त भेलूपुर के मन्दिर का कलशारोहण भी कराया। इसके अतिरिक्त मैंने गृहप्रवेश, ग्रहनिर्माणारम्भ, शादी आदि के कई धार्मिक कार्यक्रम कराए। अमेरिका में भी गृहप्रवेश विधान आदि कराए। दशलक्षण पर प्रवचनादि तो कई स्थानों पर किए। परिवार के सदस्यों का मोक्षमार्ग की ओर कदम (1) मेरी वंश-परम्परा में मेरी रहली निवासी भानजी ज्योति (मीना) जैन ई. सन् 2000 में दीपावली के दिन दीक्षा लेकर आर्यिका श्री 105 सम्भवमति माताजी बन गई और श्री 105 अर्यिका विज्ञानमति माता जी के सङ्क में रहते हुए कालान्तर में आर्थिक विज्ञानमति के आदेश से कुछ आर्यिकाओं आदि का सङ्घ बनाकर पृथक् विहार किया। इस समय 145
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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