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________________ सिद्ध-सारस्वत दिया था। यहाँ के बाद सेन्डियागो गए जहाँ डाल्फिन के कर्तव्य देखे। समुद्र में कई तरह के सीन देखे। अमेरिका से भारत वापस आते समय सिंगापुर एयरपोर्ट पर 6 घंटे रुकना पड़ा। वहाँ के प्रशासन की ओर से फी सिंगापुर भ्रमण किया और मुंबई होते हुए वाराणसी आ गए। दूसरी ट्रिप में अपने पुत्र अभिषेक की शादी के बाद (8.12.2009) अपने दूसरे पुत्र संजय के साथ अमेरिका गए। रास्ते में सिंगापुर रुके जहाँ संजय की पत्नी के चाचा श्री शिखरचन्द जी रहते हैं उन्होंने वहाँ पर कई दर्शनीय स्थानों पर घुमाया। इनके घर के एक कमरे में चैत्यालय था, वहीं पूजन की। शहर में भी बड़ा जैन मन्दिर बन रहा था। दो दिन बाद हम अमेरिका पहुँच गए। बहुत सर्दी थी वहाँ। इस बार पुत्र संदीप के नए घर का विधि-विधान पूर्वक गृहप्रवेश कराया और क्रिसमस के बाद एक सप्ताह घूमने गए। प्रथमत: ग्रेण्ड केनियन के नेशनल पार्क गए जहाँ चारों ओर बर्फ ही बर्फ थी। पेड़, मकान, सड़कें, कारें सभी बर्फ की चादर से आच्छदित थे। वहाँ बहुत गहरी खाई में नदी बह रही थी। वह खाई पहाड़ों के कटाव से बनी थी। बहुत सुन्दर स्थान था। वहाँ आदिवासियों के जीवन पर बनाई गई पिक्चर देखी। बहुत सुन्दर पिक्चर थी। वहाँ से लासवेगास गए। पत्नी का रोहिणी व्रत था। वहाँ दूरस्थ सर्वधर्म मन्दिर था जहाँ दिगम्बर-श्वेताम्बर मूर्तियाँ भी थीं। दर्शन करके भोजन किया और हूवर डेम (1935 में बना) गए। यहाँ विद्युत उत्पादन के बड़े-बड़े यन्त्र देखे। वहाँ प्रसिद्ध विशाल कोलोराडो नदी बहती है। ग्रेन्ड केनियन नेशनल पार्क देखा। फिर वहाँ (एरीजोना राज्य) से निवाडा राज्य की ओर गए। नदी पर पुल बना था, पुल के उस पार नेवाडा राज्य की सीमा थी, जहाँ घड़ी में एक घंटा का अन्तर आ गया। यहाँ से लासवेगास गए जहाँ का कसिनो (जुआ घर) बहुत प्रसिद्ध है यहाँ कई शो देखे, जैसे पानी का विभिन्न मुद्राओं में नृत्य, ज्वालामुखी आदि। रेगिस्तानी प्रदेश था केकटस के वृक्ष थे, पहाड़ की मिट्टी कहीं लाल तो कहीं काली थी। जंगली जानवरों का इलाका था, दिखे भी थे, परन्तु कुछ नहीं हुआ। बहुत सुन्दर सूर्यास्त रास्ते में देखा। भ्रमण से लौटने के बाद जैन मन्दिर मील पिटास में लेक्चर भी दिए। एक दिन हम लोग किसी मित्र के घर सायं-भोजन पर गए। वहाँ पहुंचते ही मुझे बड़े जोर का चक्कर आया और मैं घर के अन्दर जाने के पूर्व ही गिर पड़ा। 1015 मिनिट बाद मुझे उठाकर उनके घर के अन्दर किया, जहाँ हम लेट गए। थोड़ा नास्ता किया। पुत्रवधू डॉ. आरती को फोन करके बुलाया तो पता चला कि ब्लड प्रेशर कम हो गया है। बच्चों ने मेरी एअर टिकट की तारीख आगे बढ़वा दी। वहाँ के समाज के आग्रह पर (दिनाँक 21.2.2010) जैन मूर्ति लेकर दिल्ली होते हुए वाराणसी आए और उसे नरिया के जैन मन्दिर में स्थापित किया। बाद में पुनः पंचकल्याणक कराया गया काकन्दी तीर्थ क्षेत्र में और वहीं के मन्दिर में उसे स्थापित करा दिया। क्योंकि उनका उद्देश्य था कि किसी भी दिगम्बर मन्दिर में भारत में कहीं भी स्थापित कर देना। अमेरिका में उसे वेदी पर नहीं रखा जा रहा था जबकि वह प्रतिमा प्रतिष्ठित थी, ऐसा वहाँ के दिगम्बर जैनियों ने बतलाया था। प्रतिष्ठित प्रतिमा वेदी पर न रहे, उसका प्रक्षाल आदि न हो, इसीलिए मैं ले आया। बीमारियाँ (क) बचपन में मुझे मोतीझिरा निकला, उस समय मैं पाटन में छोटी बहिन के घर पर था। इसके बाद वात रोग कमर में हुआ जिसके इलाज हेतु डाक्टर ने एक तेल (सम्भवतः ताड़पीन) दिया जिसमें उससे दूना तिल-तेल मिलाकर लगाना था। परन्तु जल्दी फायदा के चक्कर में तिल का तेल कम मिलाया जिससे वहाँ फफोले आ गए और परेशानियाँ बढ़ गई। घर पर (दमोह में) सिर्फ पिताजी थे, सेवा करने वाला कोई नहीं था। पिताजी स्वयं भोजन बनाते और स्कूल पढ़ाने चले जाते थे। कुछ समय बाद दमोह में ही छोटी-बड़ी माता निकल आई। बड़ी वेदना होती थी। घरेलू उपचार किए गए। यद्यपि बचपन में माता का टीका लगा था फिर भी प्रकोप हुआ। सुखद यह रहा कि धीरे-धीरे सभी निशान मिट गए। (ख) जब मैं बिजनौर में पढ़ाता था तो वहाँ के सरकारी अस्पताल में हाईड्रोसिल का आपरेशन करा लिया। बनारस में यह सामान्य ऑपरेशन माना जाता था। मैं बिजनौर में अकेला रहता था। डॉक्टर की गड़बड़ी से ऑपरेशन का स्थान पक गया और निरन्तर मवाद बहने लगी। बहुत दवा और इंजेक्शन दिए गए परन्तु लाभ नहीं मिला। अन्त में पिताजी के पास संदेश भेजा। पिताजी मेरी पत्नी डॉ. मनोरमा जैन तथा सद्यः प्रसूत पुत्र सन्दीप को लेकर बिजनौर आ गए और बहू को छोड़कर चले गए। इसके बाद मैं सपत्नीक दिल्ली गया। रास्ते में मेरठ अपने मित्र के घर रुक गया। वहाँ मैं होम्योपैथिक डॉक्टर के पास उनके साथ गया। उनसे अपनी समस्या बतलाई तो उन्होंने एक दवा दी (सम्भवत: साईलेसिया)। मैंने उसे खाया और दिल्ली में परिचित डॉ. जैन से चांदनी चैक पर मिला। उन्होंने देखा और परसों (15 अगस्त 1968 के बाद) अस्पताल 144
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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