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________________ सिद्ध-सारस्वत का समाधान किया। दिनाँक 23.10.2004 को वहाँ इन्टरनेशनल सर्वधर्म सम्मेलन में दिगम्बर जैन प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया और उपस्थित शंकाओं का समाधान किया। श्री प्रेमचन्द जैन (बोर्ड ऑफ ट्रस्टी) ने सर्वाधिक धनराशि देकर वह जैन मन्दिर बनवाया था। श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों सम्प्रदाय के लोग वहाँ की कार्यकारिणी में थे। श्री अशोक सेठी, श्रीमती रेखा सेठी, श्रीमती मीनाक्षी, श्री अम्बरीश, श्री प्रकाशचन्द्र जैन, श्रीमती सुलोचना जैन, श्री नवनीत जैन आदि दिगम्बर जैन वहाँ की व्यवस्था देखते थे। मेरी पुत्रवधु श्रीमती अर्चना जैन प्रति रविवार हिन्दी पढ़ाया करती थी। वहाँ सनीवेल में भी एक सर्वधर्म मन्दिर है जिसमें दिगम्बर प्रतिमा भी विराजमान है। वहाँ मैं अपने पुत्रों के घर कोपर्टिनो में रुका था, जहाँ से मीलपिटास का जैन मन्दिर करीब 20 कि.मी. दूर है। मैं सपत्नीक रोज अपने पुत्र और पुत्रवधुओं के साथ मन्दिर जाकर पूजा आदि करता था। व्रर्तों के बाद स्थानीय उपरोक्त समाज वालों के घर एक-एक दिन भोजन पर गए। सभी लोग जाते थे और अपने-अपने घर से कुछ न कुछ स्पेशल डिश बनाकर लाते थे और होस्ट के घर मिलकर भोजन बनवाते तथा भोजनोपरान्त बर्तन वगैरह भी साफ करते थे। यह देखकर बहुत प्रभावित हुआ। यह एक अनुकरणीय गेट-टू-गेदर था। इसके बाद दिनाँक 4.210.18 को मैं अपने पूरे परिवार के साथ कार से दर्शनीय स्थानों को देखने निकला। सेनफ्रांसिस्को के समुद्र पर स्थिति विश्वप्रसिद्ध गोल्डन ब्रिज देखा। यहाँ बहुत अधिक ठंड थी और तेज हवाएँ भी चल रही थीं। बहुत सुन्दर दृश्य था, वहीं से मेरा पुत्र संजय हम दोनों को कार से पहाड़ पर स्थित लोम्बर्ड स्ट्रीट घुमाने ले गया। वहाँ जाने का रास्ता बहुत संकरा घुमावदार और चढ़ाई वाला (45 डिग्री वाला) था जिस पर सब कार नहीं चला सकते थे। लोम्बार्ड से समुद्र और शहर बहुत सुन्दर दिखता था, सूर्यास्त भी बहुत सुन्दर दिखता है। वहीं से स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय तथा वर्कली विश्विद्यालय गए और वहाँ का विशाल एवं भव्य पुस्तकालय देखा। दूसरे दिन अपने पुत्र संदीप की सिस्को कम्पनी के आफिस गए। वहाँ की विशाल इलेक्ट्रानिक मशीनों को देखा और उनकी कार्यशैली को थोड़ा समझा। वहाँ से सान्ताक्रुज की पहाड़ी पर स्थित मिस्ट्री प्वाइंट गए जहाँ गुरुत्वाकर्षण से लोग टेढ़े लगते थे तथा वस्तु का वजन बढ़ जाता था। यहाँ बहुत पहाड़ियाँ और घोर जंगल है। वहाँ से लौटकर पश्चिमी अमेरिका की विश्वप्रसिद्ध प्रशान्त महासागर की 'रूट वन ड्राइव' पर कार से गए जो पहाड़ और समुद्र के मध्य स्थित है। बहुत अच्छा लगा। लौटते समय हल्का भूकम्प भी आया, जो वहाँ प्रायः आता रहता है। यहाँ पर संतरे, नीबू, अनार, हरे सेव, खुबानी, आलू बुखारा आदि होते हैं। घर-घर में इनके पेड़ लगे हैं। सब्जी में आलू, लौकी, कुम्हड़ा आदि सब सब्जियाँ बहुत बड़ी-बड़ी होती हैं। कुम्हड़ा की विशालता तो वहाँ का आकर्षण है, जिसकी प्रतियोगिता भी होती है। वहाँ के नियमानुसार प्रत्येक व्यक्ति की (गोदी के बालक की भी) अलग-अलग सीट कार में होती है और प्रत्येक को सेफ्टी बेल्ट लगाना अनिवार्य है। यहाँ की तरह एक भी सवारी अतिरिक्त नहीं बैठ सकती, सद्यः उत्पन्न शिशु भी नहीं। यहाँ कार संचालन दाहिने तरफ होता है तथा रेखाओं के द्वारा स्पीड ब्रेकर या रुकने (विशेषकर स्कूल के पास) का संकेत होता है भारत की तरह नहीं। जगह-जगह सड़कों पर कैमरे लगे हैं। जिससे गलत ड्राइविंग पर घर पर चालान पहुँच जाता है। रास्तों पर स्पीड लिमिट है। (किस रो में कितनी स्पीड हो) के संकेत हैं। आप निश्चित स्थान पर (ट्वायलेट) ही लघुशंका, थूकना, कूड़ा डालना आदि कर सकते हैं। पेट्रोलपंप तथा दुकानों पर भी यह व्यवस्था रहती है। भले ही आप जंगल में क्या न हों। इसके बाद हम लोग दो कारें लेकर दूरवर्ती स्थानों पर घूमने गए। सर्वप्रथम हम सेंडियागो गए वहाँ सी वर्ल्ड देखा, पश्चात् डिजनीलैण्ड मिकी माऊस, लासएंजिलिस, युनिवर्सल स्टूडियो हॉलीवुड आदि स्थानों पर गए। वहाँ कई राइड (यंत्र चालित झांकियाँ) देखीं। सिनेमा (पिक्चरों) की शूटिंग कैसे होती है। कैसे एक ही स्थान पर कई देशों की झलक मिलती है। कैसे पुल टूटता है? ट्रेन में आग कैसे लगती है आदि वहाँ देखीं थ्रीडी पिक्चर भी देखी जिससे पिक्चर की घटनाएं हमें अपने पास महसूस होती थीं। एक सीन में चूहा पैरों के नीचे से गुजरता महसूस हुआ। थ्री डी पिक्चर के लिए स्पेशल चश्मा लगाना पड़ा था। इसके बाद डिजनीलैण्ड गए। वहाँ बहुत मनोरंजन किया। वहाँ कुछ ऐसी राईड्स देखीं जैसे हम स्वर्ग और नरक में हों। इन्हें देखकर मुझे गुणस्थान मन्दिर की कल्पना बनी और इस बात को मैंने प. पू. मुनि श्री प्रमाणसागर से बतलाई। उन्हें मेरे विचार पसन्द आए और उन्होंने शिखरजी में उस कल्पना को मूर्तरूप देना प्रारम्भ कर दिया। यहाँ हमारा चावल (भात) का डिबबा ऐसा बन्द हो गया कि बहुत प्रयत्न करने पर भी खुला ही नहीं। होटल आने पर नल के नीचे रखने पर खुला। सभी को भूख लगी थी। असल में बहू ने गरम भात को रखकर उसे बन्द कर 143
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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