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________________ सिद्ध-सारस्वत एक्सपर्ट भी थे। (ख) साईकिल दुर्घटना - एक बार दमोह में बचपन में साईकिल चला रहा था। तालाब के पास ढलान में अचानक आगे का पहिया अलग हो गया। बड़ी दुर्घटना हो सकती थी परन्तु खरौंच भी नहीं आई। लोग देखकर आश्चर्य चकित हो गए। मैंने भी ईश्वर को धन्यवाद कहा। (ग) बस दुर्घटना - बड़े बच्चे संदीप की शादी के बाद हम बहू अर्चना को प्रथम विदाई हेतु वारासिवनी जा रहे थे कि मिनी बस वालाघाट के पास पलट गई। मेरे साथ मेरा भानजा प्रमोद भी था। बस का हैण्डिल पकड़ लेने से मैं बच तो गया परन्तु पैर में चोट आ जाने से चलना कठिन हो गया। किसी तरह बहू के मायके पहुंचे। उन्होंने सेवा की, दवा दी, दो दिन रुककर बहू के साथ वापस वाराणसी आ गए। बच्चे की ससुराल में प्रथम बार ही गया था। क्योंकि शादी आदि के समस्त कार्य जबलपुर और वराणसी से हुए थे। एक बार जब हम सपत्नीक बजरंगगढ़ से रोडवेज की बस से भोपाल आ रहे थे तब रास्ते में बस गोबर के ढेर से टकराकर पलट गई और वह सीधी नहीं हो सकी, फिर हम लोग किसी तरह भोपाल आए, बहुत पानी भी बरस रहा था। परन्तु सुरक्षित बच गए। भक्तामर पढ़ते रहे। झूठे मारपीट के केस में फंसाया - दिनाँक 5.10.1980 को श्री स्याद्वाद महाविद्यालय के प्रबंधक श्री सुमेरचन्द जैन ने मेरे ऊपर तथा डॉ. शीतल चन्द्र जैन के ऊपर मारपीट का झूठा आरोप लगाकर एफ.आई.आर. लिखवा दी। जिससे डॉ. शीतलचंद जैन को एक रात्रि थाने में बन्द रहना पड़ा। पं. दरबारीलाल जी कोठिया जी उन्हें प्रातः छुड़ा लाए। परन्तु मैं बी.एच.यू. में रहता था जिससे वहाँ पुलिस नहीं जा सकती थी बिना प्राक्टर की अनुमति। प्राक्टर के निर्देशानुसार मेंने अपनी बेल (जमानत) कचहरी से करा ली। केस पांच वर्ष तक चला, केस की सुनवाई में प्रायः अगली तरीख पड़ती रहती थीं, मुझे उपस्थित होने की छूट मिल गई थी। दिनाँक 25.7.85 को दोषमुक्त मानकर केस बन्द कर दिया गया। मैं मारपीट के समय बी.एच.यू. अस्पताल में भर्ती था। सीजनल बीमारी के कारण यह बात श्री सुमेरचंद को पता नहीं थी। चूंकि मैं वहाँ का उपाधिष्ठाता रह चुका था और मैं छात्रों के हितों के लिए अध्यापन तथा भोजन की सुव्यवस्था हेतु अधिकारियों से कहता था, उन्होंने इसी कारण केस कर दिया। मेरे कारण सब छूट गए, आरोपकर्ता बहुत पैसे वाले थे जिसके बल पर इतना सब कुछ हुआ। बाद में क्षमावाणी पर मेरे पैर स्पर्श कर क्षमा भी मांगी। (ङ) पुत्र ने डकैतों का सामना किया - एक बार मेरा छोटा पुत्र अभिषेक मुंबई से वाराणसी जा रहा था कि रास्ते में (सतना-इलाहाबाद के मध्य) ट्रेन में डकैत घुस आये और सबका पैसा जेवर आदि छीन लिया। अटेचियाँ काट दीं। कुछ पर औजार से प्रहार भी किया। मेरे पुत्र के पास भी आए (उसने अपनी घड़ी आदि सीट के बीच में फंसा दी थी) तो उसने कह दिया कि मेरे पास अब कुछ नहीं है, आपके भैया लोग सब ले गए उन्होंने छोड़ दिया और वह बच गया। उसकी बुद्धि से ही सहयात्री महिला के जेवर भी बच गए क्योंकि बच्चे के कहने पर उसने पानी की बॉटल में उन्हें डाल दिए थे। जब बेटा घर आया तो उसका चेहरा उतरा हुआ था। पूछने पर उसने घटना बतलाई। मुझे पूर्व में फोन द्वारा नहीं बतलाया था, यह सोचकर कि पापा-मम्मी परेशान हो जायेंगे। (च) पुत्री की ट्रेन रद्द हुई बीच में - एक बार मेरी बेटी मनीषा गर्मी की छुट्टियों के बाद मुंबई जा रही थी कि बहुत बारिश होने से इटारसी में अधिकांश गाड़ियाँ रद्द कर दीं। उसे टिकट के पूरे पैसे वापस मिल गए। कुछ यात्री बसों से मुम्बई जा रहे थे कि अचानक एक ट्रेन को जाने दिया गया। वह अकेली थी। कुली के सहयोग से किसी तरह ट्रेन में बैठ गई और मुंबई पहुँच गई। इधर बनारस में हम सब परेशान थे। लड़की अकेली है कैसे उसके पास जायें जब वह ट्रेन में बैठ गई तो उसने मोबाइल से सूचित किया। तब हम लोगों को कथंचित् सन्तोष मिला। अमेरिका और सिंगापुर यात्रायें मैं सपत्नीक दो बार अमेरिका और सिंगापुर गया। प्रथम बार अमेरिका के मीलपिटास स्थित दिगम्बर जैन मन्दिर के आमंत्रण पर दशलक्षण पर्व पर सिंगापुर एयरलाइन्स से दिनाँक 14.9.2004 में गया। वहाँ का दो मंजिला विशाल एवं भव्य जैन मन्दिर देखकर मंत्रमुग्ध हो गया। पूरा मन्दिर वातानुकूलित था तथा दिगम्बर-श्वेताम्बर का मणिकांचन संयोग था। वहाँ कोई पुजारी नहीं था। श्रावक स्वयं बर्तन, पूजा सामग्री के प्रक्षालन से लेकर चटाई बगैरह स्वयं बिछाते थे और पूजा करने के बाद यथास्थान पूर्ववत् व्यवस्थित रखा करते थे। बहुत अच्छा लगा। भारत में भी ऐसा हो तो कितना अच्छा हो। यहाँ तो हम पुजारी पर निर्भर रहते हैं। दस दिनों तक मैंने वहाँ तत्त्वार्थसूत्र का सार्थ वाचन और उत्तम क्षमादि दस धर्मों पर व्याख्यान दिया। जिज्ञासाओं 142
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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