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________________ सिद्ध-सारस्वत सर्वगुणरूपी रत्नों की खान यह दिगम्बर जैन समाज का परम सौभाग्य का विषय है कि माननीय पण्डित जी के 75 वें वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में अभिननन्द ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है। यह हर्ष का विषय है कि मैं अपने यशस्वी प्रो. सुदर्शन लाल जी जैन के 75 वें जन्मदिवस के शुभ अवसर पर कुछ अन्तरङ्ग भाव व्यक्त करना चाहती हूँ। वैसे तो पण्डित जी से मेरा परिचय मात्र कुछ सालों से ही हुआ है फिर भी उनका व्यक्तित्व उनके हाव-भाव, चेहरे का तेज, सौम्य भाव सरलता अनायास ही आकर्षित करता है। मेरी दृष्टि में आप अवश्य ही सर्वगुण रूपी रत्नों की खान हैं। जब हम आपसे मिले तो आपके विषय में जैसा सोचा था उससे भी अधिक गहन-गम्भीर सागर निकले। आपने उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन, संस्कृत प्रवेशिका, प्राकृत दीपिका आदि अनेक कृतियों का सृजन करके जिस प्रकार साहित्य परम्परा को आगे बढ़ाया है वह साहित्य जगत की अमूल्य व स्थायी धरोहर है। आपकी समाजसेवा, शैक्षणिक सेवा, अनेकानेक उपलब्धियाँ, साहित्य सेवा, सम्पूर्ण जैन समाज को गौरवान्वित करने के लिए पर्याप्त ही नहीं अपितु आपके विशिष्ठ साहित्यक अवदान एवं संस्कृत प्राकृत भाषा के संरक्षणसंवर्धन के लिए किये गये महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिए आपको भारत के महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी द्वारा राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित किया गया है। आप धार्मिक आस्था, सुसंस्कार, भाग्य व पुरुषार्थ के बल पर सर्वोच्च शिखर पर पहुँचे हैं। आप जैन समाज में एक स्तम्भ की भाँति सभी को प्रेरणा के आधार हैं। आपने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उच्च लक्ष्य को दृढ़ ध्येय बनाकर निश्चय से उस लक्ष्य को प्राप्त किया है। आप स्वस्थ, निरोग व शतायु होकर निरन्तर ऐसे ही परिवार, समाज एवं देश की उन्नति में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देकर यह भव और परभव सफल बनायें। मैं विनय, श्रद्धा एवं आदर के साथ आपके प्रति नतमस्तक हूँ तथा अपने परमाराध्य देवाधिदेव भगवान नेमिनाथ जी से यही प्रार्थना करती हूँ कि ऐसी ही सदा अनवरत जिनवाणी की सेवा करते रहें। ऐसी आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि सरस्वती माँ की कृपा आप पर बनी रहे। गुरु की कृपा से जीवन में सादा जीवन उच्च विचार की धारा निरन्तर बहती रहे। इसी भावना के साथ अनेक शुभकामनाएँ। श्रीमती कल्पना जैन जैननगर, भोपाल मेरा सरस्वती पुत्र श्री सुदर्शन लाल जी जैन जगत् के वह मूर्धन्य व्यक्तित्व है जिन्होंने अपने कुल, परिवार, ग्राम, क्षेत्र, देश को ही नहीं अपितु जैन जगत को, जैन दर्शन को महिमा से मंडित किया। जिनाराधना एवं श्रुताराधना को आधार बनाकर सम्पूर्ण जीवन निर्वाह करने वाले श्री सुदर्शन लाल जी की कार्य शैली उनके व्यक्तित्व की परिचायक रही। मेरा इनसे परिचय विद्वत् सङ्गोष्ठी के माध्यम से हुआ, मैंने इन्हें प्रथम बार सुना तो सुनकर मुझे लगा इनके अंदर ज्ञान का असीम भंडार है जो इनकी वाणी से सहजरूप से निःसृत होता है। अनेक विद्याओं के अधिपति आप उदारमना व्यक्तित्व के धनी हैं। आचार्य भगवन् श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य शंका समाधान प्रणेता, श्रमणश्रेष्ठ मुनि श्री प्रमाण सागर जी के दर्शनार्थ चातुर्मास के उत्तरार्द्ध में आप अपनी जीवनसंगिनी श्रीमती मनोरमा जी के साथ अजमेर में पधारे। तब आपसे प.पू.महाराज श्री से चर्चा की। प्रियतम शिष्यों में एक हैं। सुखद बात यह है कि आपने ही गुणायतनप्रणेता गुरुदेव प्रमाणसागर जी के मनमस्तिष्क में गुणायतन के निर्माण की रूपरेखा प्रकट कराई थी। आपने महाराज श्री को एक बार दर्शन के दौरान चर्चा कर उन्हें गुणायतन के निर्माण के लिए उत्प्रेरित किया था और यही कारण है कि आज गुणायतन जैन धर्म के सभी तीर्थों का एक अद्भुत गौरव बनने जा रहा है। जिसका सम्भवतः लोकार्पण 2020 में हो जायेगा। 92
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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