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________________ सिद्ध-सारस्वत धार्मिक पूजा-विधान में फिल्मी सङ्गीत में अरुचि यह जानकर अत्यन्त हर्ष हुआ कि वीतराग वाणी ट्रस्ट टीकमगढ़ पं. सुदर्शनलाल जी के 75 वें जन्मदिवस पूर्ण होने के उपलक्ष्य में पं. जी को भेंट स्वरूप अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित कर उन्हें सादर भेंट करने जा रहा है। मैं भी संक्षिप्त शब्दों के माध्यम से उनके अभिनन्दन स्वरूप अपने भाव प्रकाशनार्थ यहाँ लिखकर सम्प्रेषित कर रहा हूँ। आप भारत के राष्ट्रपति एवं अन्य अनेकानेक प्रतिष्ठित संस्थानों से पुरस्कृत एवं सम्मानित व्यक्तित्व हैं। सहज सरल राष्ट्रीय स्तर के विद्वान् हैं। ये सम्मान-पुरस्कार विद्वान् की विद्वत्ता के उच्च स्तर को स्वयं ही परिभाषित करते हैं। अत: इस सन्दर्भ में कुछ कहने का प्रथक् से कोई औचित्य नहीं है। मेरा परिचय तभी से है जबसे वे जैननगर में निवास हेतु पधारे। वे अत्यन्त मृदुभाषी, सहज, सरल, निराभिमानी, उत्कृष्ट प्रवचन करने वाले, सरल भाषा में क्लिष्ट से क्लिष्ट विषय को समझाने में पारङ्गत, सहयोगी विद्वान् हैं। वे आगम के सन्दर्भ से जो भी विवेचनायें करते हैं वे पूर्ण तर्क-संगत तथा वैज्ञानिकता पूर्ण दृष्टिकोण लिये हृदयग्राही होती हैं। उनके सभी पुत्रगण, पुत्रवधुयें, पुत्री दामाद सभी उच्च शिक्षित हैं जो सहज ही है। जब पिता तथा माता दोनों मेधावी उच्चशिक्षित हों तो उनकी सन्तति तो उन जैसी होगी ही। आपने अपने कार्यकाल में अर्धशतक के लगभग शोधार्थियों को डॉक्ट्रेट (पी-एच.डी) की उपाधि से विभूषित करवाकर एक कीर्तिमान स्थापित किया है। पं. मदनमोहन मालवीय के हिन्दू विश्वविद्यालय काशी में संस्कृत विभागाध्यक्ष रहना, वह भी इतने लम्बे समय तक यह भी एक अनुपमेय उपलब्धि है। पण्डित जी की एक विशेषता मैंने देखी कि आप धार्मिक आयोजनों जैसे पूजा विधान आदि के संगीतमय कार्यक्रमों में जो फिल्मी धुनों पर बजने वाले गीत आदि होते हैं उन्हें सर्वथा अप्रिय लगते हैं। उनका आग्रह होता है कि मौलिक संगीत पर आधारित संगीतमय प्रस्तुति होना चाहिए। उनका दृष्टिकोण सर्वथा उचित है क्योंकि ऐसे अनुत्कृष्ट धुनों पर बजने वाले गीत-भजन आदि मन को अशांत एवं दूषित ही करते हैं। समाज को इस दृष्टिकोण पर ध्यान देना चाहिए। मैं यही भावना करता हूँ कि वे पूर्ण स्वस्थ तथा दीर्घजीवी रहकर अपने ज्ञान से समाज को लाभान्वित करते रहें। श्री सन्तोष कुमार जैन 23 ओम शिव नगर, लालघाटी, भोपाल जैनागम के गूढ़-रहस्य प्रतिपादक जैनदर्शन, प्राकृत एवं संस्कृत विद्या के मूर्धन्य मनीषी यशस्वी विद्वान् प्रो. सुदर्शनलाल जी जैन अपने 75वें जन्मदिन के सुअवसर पर आत्महित की तीव्र भावना के दीप प्रज्वलित कर शाश्वत सुख-शांति को प्राप्त करें। ऐसी भावना के साथ हम आपका अभिनंदन करते हैं। वर्तमान शासन नायक अंतिम तीर्थंकर श्री महावीर की देशना के गूढ़ रहस्यों को आपने लेखन और वाणी के माध्यम से समाज को चिंतन की एक दिशा प्रदान की है। निज-हितार्थ आप देव-शास्त्र-गुरु की आराधना करते रहें। इसी मङ्गल भावना के साथ हमारे परिवार की ओर से आपको बहुत-बहुत शभकामनाएँ। मानुष भव उत्तम मिला, छोड़ो भव का पन्थ। उर विवेक जाग्रत करो, मार्ग चलो निर्ग्रन्थ।। फूल बाग में हो या जङ्गल में उसकी पहचान स्वयं से है। उसे कोई जाने या न जाने उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आदरणीय प्रो. सुदर्शन लाल जी जैन को मेरी और मेरे परिवार की ओर से बहुत-बहुत बधाई। जिनवाणी पथ पर चलो, धारण करो श्रुतेश। जिनवाणी का श्रद्धान ही, करे सिद्ध सम वेश।। श्रीमती रानी जैन एवं क. अनमोल जैन 200 ओम शिव नगर, लालघाटी, भोपाल 91
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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