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________________ सिद्ध-सारस्वत शिष्याः सदा नमन्तिस्म तान्हि प्रणतमानसा श्रीसुदर्शनलालाख्य विद्वांसः ............. / संस्कृते प्राकृते चापि निष्णाता........... / / 1 / / विश्वविद्यालये चैव काशीस्थे हिन्दुसंज्ञके। दत्तवन्तो निजां सेवा विभागे संस्कृते शुभाम्।। 2 / / सन्मनुष्यस्वरूपेण सदध्यापकरूपिणः / अध्यापने सदा लग्ना जैनसंज्ञा विजतेन्द्रियाः।। 3 / / शिष्याः सदा नमन्तिस्म तान्हि प्रणतमानसा। यशो विस्तारयन्तीह सदा प्रीत्यादयः साम्प्रतम्।। 4 / / एवं हि गुरवः सम्यक् शिक्षां दत्वा मुदा सदा। रञ्जयन्तस्तथा लोकान् मोदन्ते मोदयन्ति च / / 5 / / लाला: सन्ति सुदर्शनाख्यमहिताः श्रीजैनसंज्ञा बुधाः, काश्यामेव निजां प्रकर्षसहितां सेवां मुदाऽपूपुरन्। अद्यत्वे निवसन्ति भोजनगरे मध्यप्रदेशे मुधा जीवन्त्वत्र सदा कुटुम्बसहिताः तच्चेतसा कामये।। 6 / / प्रो. मुरलीमनोहरपाठकः पूर्वसंस्कृत-प्राकृतविभागाध्यक्षः, गोरखपुरविश्वविद्यालयः गगन के प्रखर प्रकाश पुञ्ज पल पल जिये ज्ञान मान सम्मान में जो कहो ऐसे अभिमान को मान + क्या उपाधि पद सम्मान चरन के चेरे देखो ऐसे चरणों का गुणगान करूँ मैं क्या अल्प ज्ञान, अल्प ध्यान प्रज्ञा मेरी अल्पज्ञ वहुमान ऐसे विद्वान का करूँ मैं क्या प्रखर प्रकाश पुञ्ज आप हो गगन के ऐसे दिनमान का बखान में करूँ क्या।। 1 / / महामहिम दिया जिन्हें राष्ट्रपति सम्मान भाल चमकाया धरि रोली चन्दन है ज्ञान पुञ्ज ज्ञान कुंज ज्ञान के सुमेरू हैं जो किन शब्दों में करूँ आपका वंदन है ज्ञान के दिवाकर रत्नाकर प्राभाकर हैं अज्ञ किन आखरों से करूं में नमन है नष्ट किया तम का अज्ञान सुदर्शन ने काव्य का ये दीप धरूं आपके चरन है।। 2 / / करूँ अभिनन्दन सिद्ध सारस्वत ग्रन्थ का मैं अभिनन्दन करूँ इस शारदे के लाल का अनगढ़ पत्थरों को किया शिलालेख जैसे 84
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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