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________________ सिद्ध-सारस्वत के अभाव में) गृह की मिट्टी में ही खेलता रहा। को मे हु कत्थ कल-सिक्खण रम्म पत्ते जाणेमि णो वि परमत्थ पुणीय विजं / तत्तो वि सो जघ पढेदि तघेव पण्णो धण्णण्ण-धण्ण-धणहीण सुविज सिक्खे।।3 मैं जानता हूँ पर वास्तव में ये सुदर्शन परमार्थ विद्याओं के क्षेत्र में रहे, धन्य-धान्य के अभाव में। वे जहाँ भी विद्या अध्ययन करते वहाँ प्राज्ञ (अग्रणी) रहते। मैं कौन हूँ, मैं कहाँ जाऊँगा, क्या पढूँगा एवं कैसे उत्तम शिक्षा लूँगा, उन्हें उसका बोध नहीं था। सिद्धे हु लाल इणमो अवि सिक्खो वि मादा सरस्सइ-मही-गरिमा गिही हु। गामे हुं मंजल चवालिस सण्ण काले सड्डा-सुभावण-गुणी मह खेत्त खेत्ते / / 4 आप हैं, सिद्धेलाल शिक्षक के पुत्र। सरस्वती माता के लाल जो गरिमामयी गृहिणी थीं, ग्राम मंजुला में 1.4.1944 में जन्म लिया, पर आप प्रत्येक क्षेत्र में प्रतिष्ठित हुए जो इनकी श्रद्धा का सुफल है। आग्गे भवंत-पढणे गह-उच्च-सिक्खं सो सक्किदे ति-णव-बी इच विस्से। उक्किट्ट-संकपमुहो बहुभास-भासी सो सक्किदं पयडि-पागिद अंगलग्गी।।5 आप पढ़ने में अग्रणी उच्च शिक्षा वाले, 39 वर्ष तक बी.एच.यू में संस्कृत में शिक्षण कराते रहे। आप सङ्कायप्रमुख बहुभाषाभाषी प्राकृत, संस्कृत एवं अंग्रेजी में भी अग्रणी रहे हैं। रट्ठिज-रट्ठ-गरिमा जुद-एस पण्णो सम्माण रट्ठवइ-भूसिद-लेहगो वि। सम्पादगो बहुविहे हु समाज मण्णो सोहे रदे हु चदुपञ्च-सुधी-वरेण्णो।।6 आप हैं राष्ट्र के गौरवशाली मनीषी, राष्ट्रपति सम्मान प्राप्त लेखक, सम्पादक एवं समाज के नाना पदों पर रहने वाले प्रज्ञ। आपके निर्देशन में 45 छात्र सुधी पी-एच.डी. प्राप्त करके अनेक पदों पर सुशोभित हैं। अखंगिणी वि विदुसी वि मणोरमा वि सन्दीव संजय-सुओ अहिसेग-सगे हु पुत्ती। पीपुल्समेडि-अजयो भिसगो मणीसा अच्ची अणिस्स-सुधि-संजिय सक्किदीए।।7 आपकी अर्धांगिनी डॉ. मनोरमा तो विदुषी हैं। आपके पुत्र डॉ. सन्दीप, संजय एवं अभिषेक भी पढ़े लिखे हैं। पुत्री डॉ. मनीषा डॉ. अजय (दामाद) पीपुल्स मेडिकल कॉलेज भोपाल में हैं। पौत्रियाँ अर्चिता, संजिता, स्वस्ति, संस्कृति और अनिष्का हैं। साहिच्च-पण्ण मइमंत गुणी गुणण्हु बुंदेलखण्ड-तणयो भरहे पसिहो। सम्माण-पण्ण उदयो पणमेज भूओ पाचत्तरे हु सुद-साहग-पाद-मूले। 18 आप साहित्य प्रज्ञ, मतिमंत, गुणी, गुणज्ञ एवं बुंदेलखंड के तनय/ भारत में प्रसिद्ध हैं। मैं उदय ऐसे प्रज्ञ का सम्मान करता हूँ, उनके 75 वर्ष के गौरवपूर्ण श्रुतसाधक को नमन करता हूँ, क्योंकि उनके पादमूल में रहकर मैं भी प्रज्ञ बना हूँ। माया-उदय-पाचीए पिउ मणीस भावणामे चाहं पवेसो वि पाचहत्तरे हु देसए।। डॉ. उदयचंद जैन सपरिवार पूर्व प्रोफेसर, सुघाडिया विश्वविद्यालय, 29 पार्श्वनाथ कालोनी, उदयपुर (राज.) 83
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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