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________________ सिद्ध-सारस्वत बावत अपनी जीवन यात्रा के अन्त में लिखा है। 16. जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में कौन से कदम उठाना चाहिए? उत्तर - (1) विद्वान् और मुनिवर्ग में एकरूपता हो। (2) जैनधर्म का वैज्ञानिक और तुलनात्मक प्रस्तुतिकरण सरल पद्धति से स्याद्वाद पद्धति से दुराग्रह के बिना हो। (3) एक विद्वानों की समिति हो जो जैनधर्म के सिद्धान्तों के ज्ञाताओं तथा तत् तत् विषयक वैज्ञानिकों की परस्पर मन्त्रणा कराकर प्रकाशन किया जाए। अन्य धर्मावलम्बि विद्वानों को भी जोड़ा जाए। (4) विवादात्मक विषयों (स्त्री अभिषेक, पूजापद्धति आदि) का स्याद्वाद रीति से समन्वय हो। (5) कथनी और करनी में एकरूपता हो। (6) क्रियाकाण्डों पर गम्भीरता से विचार हो। (7) आध्यात्मिक और सांसारिक विषयों पर संभाव्य सयुक्तिक समन्वय हो। (8) जिनवाणी के ज्ञाताओं को गृहस्थ मानकर उचित पारिश्रमिक मिले। (9) जैनत्व का चिह्न (रात्रि भोजन त्याग आदि) समाजेतर में दिखलाई देवे। (10) परस्पर सहयोग भावना। (11) आधुनिक शिक्षा-पद्धति, स्वास्थ्य, सेवा केन्द्र, सामान्य लोगों तक व्यापक हो मिशनरियों की तरह (12) आर्थिक सहयोग हो ऋणरूप में, मुफ्त नहीं।। 17. एक सफल गृहस्थ जीवन का दायित्व आपने बखूबी से निभाया और इस सफलता में आपकी धर्मपत्नी का कदम-कदम पर सहयोग रहा। कुछ यादगार पल ? उत्तर - मेरी पत्नी का हर कदम पर सहयोग रहा है। उनमें धार्मिक भावना है और सेवाभाव है। घर की अन्नपूर्णा हैं। 18. आपके पुत्र डॉ. सन्दीप, श्री संजय, पुत्रवधु-श्रीमती अर्चना, डॉ. आरती, पुत्री डॉ. मनीषा डॉ. अजय (दामाद) और बाल गोपाल एक भरा पूरा परिवार है सबके बीच अब और कौनसी कल्पना का आप साकार करना चाहते हैं? उत्तर - जब भरा पूरा परिवार है तो अब क्या चाहिए सिवा आत्मकल्याण के। 19. इस जीवन यात्रा में अनेक लोगों से आप प्रभावित हुए होंगे। स्मृति पटल पर किसे याद करेंगे? उत्तर- इसका उत्तर हम प्रश्न क्रमांक 4 में दे चुके हैं। उनके अलावा मेरी तीनों बहिनें, बुआ आदि को भी जोड़ना चाहूँगा। कुछ नाम अपनी जीवन यात्रा के अन्त में दिये हैं। 20. एक ऐसा कार्य जिसे आज भी आप करना चाह रहे हैं? उत्तर - कार्य तो बहुत बाकी हैं परन्तु आयु के निषेक कम बचे हैं। शरीर भी साथ नहीं देता है फिर भी (1) समाज में एकता। (2) पूजा, विधान की सार्थ और शुद्ध पुस्तक प्रकाशन। (3) गरीब छात्रों और विधवाओं को आर्थिक सहयोग (मुफ्त नहीं) क्योंकि इससे अकर्मण्यता आती है। (4) जैन विद्यालयों का आधुनिकीकरण। (5) जैन सिद्धान्तों का प्रचार आदि। डॉ. श्रीमती ज्योति जैन पत्रकार, खतौली सारस्सद-वरेण्णो पाचत्तरे हु दिस दिव्व मणीसि-पण्णे सारस्सदे सरद-सारद सोम्य- सम्मे। अम्हाण देसग-पबोहग-विज-विजे पण्णा पदे सिरिसुदंसण लाल सोहे।।। हम लोगों के मार्ग दर्शक, प्रबोधक, विद्याओं में पारङ्गत, प्रज्ञापद पर राजित श्री सुदर्शन लाल हमारे आदर्श हैं। उनके 75 वें दिव्य जन्मदिन पर ऐसे प्रज्ञामनीषी, सारस्वत पद विभूषित शरद् ऋतु के सदृश शारदा की सौम्य प्रकृति वाले होकर शोभित हैं। अप्पावए हु दहमाह-अबोह-बालो लालिच्च-सुण्णा जणणीइ सुलाल लालो। माउत्तभाव परिरित्ति पिदुं च अंके कीलेज लीलण-अभाव गिहे हु मिट्टं / / 2 यह अल्पवय बालक दश माह का ही था कि लालित्य से शून्य, जननी से रहित भी सभी का प्यारा था। यह 82
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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