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________________ सिद्ध-सारस्वत अभिनन्द करूँ ज्ञान दाता इस विशाल का अभिनन्दन करूँ वाणी भूषण श्री सोरया जी का कराया सम्मान प्रोफेसर सुदर्शन लाल का संरस की शुभकामना है शतः वर्ष जियें ऐसे ही सम्मान होता रहे सदा भाल का।। 3 / / कवि सुरेन्द्र जैन 'सरस' 162 जैन नगर, लालघाटी, भोपाल कर्तव्यनिष्ठ एवं समन्वयवादी विचारक प्रो० सुदर्शनलाल जैन जी ने श्रीस्याद्वाद महाविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करके काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में कला सङ्काय के संस्कृत विभाग में प्रोफेसर एवं अध्यक्षता के साथ कलासङ्काय प्रमुख का दायित्व भी संभाला। आप प्रारम्भ से ही बड़े मेधावी और अनुशासन प्रिय रहे हैं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से सेवानिवृत होने के पश्चात् प्रो० सुदर्शन लाल जी स्याद्वाद महाविद्यालय के प्रबन्धतन्त्र के अध्यक्ष भी रहे तब मुझे प्रबन्धक के रूप में आपके साथ कार्य करने का अवसर मिला आप पहले भी विद्यालय के उपाधिष्ठाता रह चुके हैं। आप बहुत ही निर्भीक, कर्तव्यनिष्ठ एवं समन्वयवादी विचारों के विद्वान् हैं। आपको अपनी विद्यास्थली के विकास करने की भावना सदा रहती है। आपको आपके अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रकाशन पर बहुत-बहुत बधाई एवं भगवान् से प्रार्थना करता हूँ कि आप स्वस्थ रहें, दीर्घायु हों तथा जैन धर्म का प्रचार करते रहें। श्री विमल कुमार जैन प्रबन्धक, स्याद्वाद महाविद्यालय, भदैनी, वाराणसी विद्वद्वरेण्य प्रो. सुदर्शनलालजी जैन के प्रति मेरे अन्तस् भाव काट लेना कठिन-मंजिल का, कुछ मुश्किल नहीं। इक जरा इन्सान में, चलने की आदत चाहिए।।। बहु-आयामी व्यक्तित्व के धनी यशस्वी विद्वान् परम आदरणीय प्रो. सुदर्शनलालजी जैन के बारे में कहां से प्रारम्भ करूँ, कैसे लिखू उनकी सरलता, सहजता और उनकी योग्यता के विषय में। लगभग अठारह माह पूर्व ही मुझे अपने परिवार के साथ जैन नगर में बसने का मौका मिला। इसी बीच श्री नन्दीश्वरद्वीप जिनालय में आपको देखने, मिलने और आपके द्वारा पर्युषण-पर्व आदि में मुखरित प्रवचनों, वाचनाओं एवं मूक-माटी विषय पर आपके द्वारा प्रस्तुत व्याख्यान को विद्ववानों की विचार मन्थन सङ्गोष्ठी में अपनी मीठी आत्मीय आवाज में सुनने और आपके व्यक्तित्व को समझने का सौभाग्य प्राप्त होता रहा है। बड़े ही हर्ष का विषय है कि आपके 75 वें जन्म दिवस पर प्रतिष्ठाचार्य अतुलनीय वाणीभूषण पण्डित श्री विमल कुमार सौंरयाजी के सम्पादकत्व में 'सिद्ध-सारस्वत' अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन हो रहा है। प्रो. सुदर्शनलाल जैन जी के विशिष्ठ व्यक्तित्व एवं जीवनवृत्त को रेखाङ्कित करते हुए, अपनों के बीच छिपे हुए अपने ही एक अनमोल विद्वान् हीरे का पूर्ण परिचय एवं सम्मान करना हमारे आदरणीय पण्डित श्री सौंरयाजी जैसे जौहरी का ही कार्य है। प्रो. सुदर्शनलाल जैन ने बचपन से ही परिस्थितिजन्य प्रतिकूलताओं में पलते-बढ़ते हुये विद्यार्जन की श्रेष्ठतम सीढ़ी तक पहुंच कर देश की प्रसिद्ध संस्था बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में अपनी विधा के शीर्ष पद पर आसीन हुए। आपने अपने सृजनशील व्यक्तित्व से अन्य विद्वानों एवं रचना-धर्मियों को निश्चित ही आकर्षित किया है। भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा आपकी योग्यता एवं क्षमता को ध्यान में रखते हुए सम्मानित किया है। आपके 39 वर्षों के प्रेरक निर्देशन में, 44 शोध छात्रों ने मार्गदर्शक के रूप में आपका नेतृत्व प्राप्त कर अपनी पी-एच.डी. 85
SR No.035323
Book TitleSiddha Saraswat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherAbhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year2019
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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