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________________ - पूर्वकालिका वियर्थक ] 2. अनुवाद [185 पूर्वकालिक क्रिया से 'कर' या 'करके' अर्थ निकलता हो तो पूर्वकालिक क्रिया ('कर' या 'करके' ) में 'परवा' (त्वा) या 'ल्यप्' (य) प्रत्यय जोड़ दिया जाता है। अभ्यास-१९. कौत्स ने अध्ययन समाप्त कर गुरु से दक्षिणा लेने का आग्रह किया। सुरेश बी० ए. परीक्षा पास करके बम्बई में नौकरी करेगा। छात्र गुरु को प्रणाम करके परीक्षा देने जायेंगे / कोमा पानी पीकर उड़ गया। चोरों ने घर में घुसकर चोरी की परन्तु पुलिस ने उन्हें दौड़ाकर पकड़ लिया। राक्षसों को जीतकर श्रीराम सीता के साथ अयोध्या लौटे / प्रतिज्ञा करके कहो कि मैं सत्य बोलंगा। क्या रमेश का पड़ोसी घर के सभी सदस्यों को रोता हुआ छोड़कर सन्यासी हो गया ? 184] संस्कृत-प्रवेशिका [पाठ : 19-20 नियम-५३ निम्न स्थलों में सप्तमी विभक्ति होती है (देखिये, पृ. ५१-५२)(क) अधिकरण कारक में। (ख) समयबोधक शब्दों में / (ग) जिस समुदाय से छोटा जाए। (प) स्निह, अभिलए, अनुरञ् (गनुरक्त होना) आदि प्रेम, आसक्ति विश्वास एवं आदरसूचक क्रियाओं के विषय में। () योग्यता अथवा उपयुक्तता आदि अर्थों वाले शब्दों के आधार में / (च) व्यावृत (किसी काम में लगा हुआ ), आसक्त, व्यग्र ( उतावला ), तत्पर, कुशल, निपुण, साधु, प्रवीण, पद, दक्ष आदि के विषय में। (छ) रहते हए', 'होने पर', 'करने पर इन अर्थों में / (ज) एक क्रिया के हो जाने पर जब दूसरी क्रिया का होना बतलाया जाये ती पहले प्रारम्भ होने वाली क्रिया (कृदन्त क्रिया) और कर्तृवाच्य के कता में गा कर्मवाच्य के कर्म में (यदि ऐसे वाक्यों से अनादर का भाव व्यक्त हो तो षष्ठी भी / जैसे-वाक्य नं०-१)(अ) ज्यों ही, इतने ही में, उसी क्षण इन अर्थों में / (ब) जिस फल के लिए कोई काम किया जाए (यदि प्रयोजन उस क्रिया के कर्म से युक्त हो)। (2) जिसे लक्ष्य करके क्षिप् (फैकना), अस् (फैशना), मुच् (छोड़ना) आदि क्रियाओं का प्रयोग हो। अभ्यास १-कुमुद गृह कला में चतुर है परन्तु पढ़ने में कमजोर है। मनोरमा सभी छात्राओं में दक्ष है / छात्र पुस्तकों में अनुरक्त होंगे / मेरे भोजन करते समय वर्षा हुई। जैसे ही पानी गिरा मैं घर पहुँचा / क्या आपकी मुझ पर पूर्ववत् कृपादृष्टि रहेगी? जिसने बाल्यावस्था में नहीं पढ़ा वह पृतावस्था में क्या पढ़ेगा? जो अध्ययन में निपुण हैं उनका सर्वत्र सत्कार होता है। आप मेरी बीमारी के विषय में चिन्ता न कीजिये / चमड़े के लिए मृग को मारना क्या हिंसा नहीं है ? मैं नहीं जानता क्यों मेरे हृदय में तुम्हारे ऊपर विश्वास है / क्या किरण स्कूल में पढ़ती है ? पाठ 16 : पूर्वकालिक ('कर' या 'करके' ) वाक्य उदाहरण-वाक्य [ 'क्वा' और 'ल्यप् प्रत्ययों का प्रयोग ] 1. हम पुस्तकें पढ़कर चलेंगे = वयं पुस्तकानि पठित्वा पलिष्यामः / 2. वह स्नान करके जाती है = सा स्नानं कृत्वा (स्नात्वा) गच्छति / 3. राम फल खाकर गया-रामः फलं भुक्त्वा गच्छति स्म / 4. योद्धा शत्रुओं को जीतकर और बहुत से उपहार पाकर वापस बाता है - योद्धा शत्रून् विजित्य (जित्वा) बहूनुपहारान् लब्ध्वा च निवर्तते। 5. वे तलवार लेकर युद्धस्थल में गए - ते खङ्गानादाय युद्धभूमिमगच्छन् / नियम-५४. पूर्वकालिक वाक्यों में एक क्रिया के होने पर दूसरी क्रिया का होना पाया जाता है। ऐसे वाक्यों में यदि दोनों क्रियानों का कर्ता एक ही हो और पाठ 20: विध्यर्थक ('चाहिए' आदि) वाक्य उदाहरण-वाक्य [ 'तव्यत्', 'अनीयर' और 'यत्' प्रत्ययों का प्रयोग]१. शिष्य को गुरु की आज्ञा का पालन करना चाहिए (शिष्य गुरु की आज्ञा का पालन करे) = शिष्यः गुरोः आज्ञा पालयेत् (कर्तृ०)। शिष्येण गुरोः पाशा पालनीया (कर्म)। 2. उसे ऐसा वाक्य नहीं बोलना चाहिए = सः एतादृशं वाक्यं न वदेतृ (कर्तृ०)। सेन एतादृशं वाक्यं न वाच्यम् (कर्म)। 3. मुझे गाँव जाना चाहिए = अहं पाम गच्छेयम् / मया ग्रामः गन्तव्यः / 4. मुझे होना चाहिए = अहं भवेयम् ( कर्तृ.) / मया भवितव्यम् (भाव०)। 5. सदा सत्कर्म करना चाहिए - सदा सत्कर्माणि कर्तव्यानि (करणीयानि)। 6. हमें निर्वलों की रक्षा करना चाहिए = अस्माभिः निर्बलाः रक्षणीयाः / .. तुम्हें व्याख्यान देना होगा = त्वया व्याख्यातव्यं भविष्यति / 8. हमारे कर्तव्य कर्म बहुत है - अस्माकं कर्त्तव्यकर्माणि बहूनि सन्ति / 1. मुझे आज आपको क्या देना चाहिए = भवते मया अद्य किं देयम् / 10. यह राजा स्तुति का विषय है = स्तुत्यः खलु असी राजा। नियम--५५. 'चाहिए' अर्थ में कर्तृवाच्य में 'विधिलिङ्' का, कर्मवाच्य और भाववाच्य में 'तव्यत्', 'अनीयर' और 'यत्' प्रत्ययान्त क्रियाओं का प्रयोग होता है। 56. कभी-कभी इनका प्रयोग विशेषण के रूप में भी होता है / (8) 57. 'तव्यत', 'अनीयर' और 'यत्' प्रत्ययान्त क्रियाओं का लिङ्ग और वचन कर्मवाच्य में कर्म के अनुसार तथा भाववाच्य में सदा नपुं० एकवचन में होता है।
SR No.035322
Book TitleSanskrit Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherTara Book Agency
Publication Year2003
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size98 MB
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