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________________ 18.] संस्कृत-प्रवेशिका [पाठ:१६-१७ अपादान, सम्बन्ध] 2: नुवाद पाठ 16 : अपादान कारक सदाहरण-वाक्य [पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग - 1. उस महल से बालक गिरा = तस्मात् प्रासादात् बालकः अपतत् / 2. वह सिंह से बालक की रक्षा करती है - सा बालक सिंहाव त्रायते / 2. वह अपने पुत्र को पाप से हटाता है-सः स्वपुत्रं पापान्निवारयति / 4. वह अध्यापक से पढ़ता है- सः अध्यापकात् पठति / 5. हिमालय से गङ्गा निकलती है - हिमालयात् गङ्गा प्रभवति / 6. श्याम से राम चतुर है-श्यामात् रामः पटुतरः। 7. बाल्यावस्था से लेकर आज भी देवदत्त गाँव के बाहर उद्यान के पूर्व में रहता है = आशंशवात् देवदत्तः प्रामावहिरुद्यानात् पूर्वमधितिष्ठति / 5. ज्ञान के विना मोक्ष नहीं मिलता है = ज्ञानाद ऋते न मोक्षः / 1. वह चोर से नहीं डरता है सः चौराद्न बिभेति / 10. देवदत्त पाप से घृणा करता है - देवदत्तः पापाज्जुगुप्सते / 11. वैश्य तिलों से उड़द को बदलता है - वैश्यः तिलेभ्यः माषान् प्रतियच्छति / 12. चोर शासक से छिपता है - चौरः शासकात् निलीयते / 13. यह छात्र अध्ययन से घबड़ाता है परन्तु शत्रुओं को हराता है - अयं छात्रः अध्ययनात् पराजयते परन्तु शत्रून् पराजयते / 14. पर्वत आग वाला है, धूमवाला होने से = पर्वतो वह्निमान् घूमात् / नियम ५१-निम्न स्थलों में पञ्चमी विभक्ति होती है (देखिए, पृ० ७६-७९)(क) अपादान कारक में। (ब) जिससे भय हो या रक्षा की जाए। (ग) जिससे किसी को हटाया जाए। (ब) जिससे नियमपूर्वक विद्या सीखी जाए। (ज) जिससे या जहां से कोई वस्तु पैदा हो। (च) दो वस्तुओं की तुलना में जिससे तुलना की जाए। (छ) तर्क (अनुमान वाक्य) के हेतु में। (ज) जिससे जुगुप्सा (घृणा); विराम (रुकना), प्रमाद (किसी बात से हटना) हो। (स) 'पराजयते' ( असा अर्थ में) के योग में, जो असह्य हो / (ब) 'आ' उपसर्ग ( तक अर्थ में ), प्रभृति, आरभ्य, बहिः, अनन्तरम् , परम्, अवंम् , अन्य, आरात् (दूर और समीप); इतर, ऋते, और दिशावाची (पूर्व, उत्तरः आदि) शब्दों के साथ। (ट) छिपने की क्रिया में जिससे छिपा या बचा जाए। (ठ) 'प्रतियच्छति' (बदलना अर्थ में ) के योग में, जिससे बदला जाए। अभ्यास १६-रमेश को इस स्कूल से पृथक् मत करो। हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक भारत का विस्तार है। एक समान होने पर भी गौ से गवय भिन्न है। क्या अध्यापक से छात्र छुपता है? धन से ज्ञान श्रेष्ठ है। भारतवासी शत्रु से नहीं करते हैं। सेवक बालक को आग से हटाता है। दुष्टों से हमें भय नहीं है। वह पुस्तक के बदले रुपया देता है। क्या तुम पेड़ से नहीं गिरे? सच्चा मित्र वही है जो अपने मित्र को दुष्कर्म से हटाकर सत्कर्म में प्रवृत्त कराये। बीज से अङ्कर पैदा होता है। पूर्व दिशा से सूर्य का उदय होता है / पाठ 17 : सम्बन्धार्थ सदाहरण-वाक्य [ षष्ठी विभक्ति का प्रयोग ]1. यह राम की पुस्तक है और यह उसका विचार है - रामस्य पुस्तकमिदम् अयञ्च तस्य विचारः। 2. क्या राम धन के निमित्त से काशी में रहता है % किं धनस्य हेतोः काश्यां वसति रामः? 3. वह किस निमित्त से पढ़ता है - कस्य हेतोः सः पठति ? 4. कवियों में कालिदास श्रेष्ठ है = कवीनां कविषु वा कालिदासः श्रेष्ठः / 5. तुम्हारे और मेरे में यही अन्तर है = अयमेव आवयोविशेषः / 6. मुझे भी पुण्य करना चाहिए = ममापि ( मयापि ) पुण्यं कर्तव्यम् / 7. गीता आयुष्मती हो% गीतायाः बायुष्यं भूयात् / स, अध्ययन के पश्चात् वह पिता के सामने वृक्ष के नीचे बैठा है: पितुः पुरः सः वृक्षस्याघोऽध्ययनानन्तरं तिष्ठति / 9. गाँव से दूर अथवा वृक्ष के समीप जामो = प्रामस्य दूरं (पूरे) वृक्षस्य निकट वा गच्छ / 10. वह माता को ( दुःखपूर्वक ) स्मरण करता है = मातुः स्मरति सः। 11. वह दिन में तीन बार खाता है = सः दिवसस्य त्रिभुङ्क्ते / 12. तुम्हारे लिए, मैं सब प्रकार का कष्ट सहने को तैयार हूँ तब कृते सर्व विधं कष्टं सोढुमुद्यतोऽस्मि / 13. मेरे सामने ही उसने उसे पीटा = मम समक्षमेव तेन सः ताडितः / 14. संजय देवदत्त के तुल्य है परन्तु अभिषेक की उपमा नहीं है = संजयः देवदत्तस्य (देवदत्तेन) तुल्यः (समः) परन्तु नास्ति उपमा अभिषेकस्य /
SR No.035322
Book TitleSanskrit Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherTara Book Agency
Publication Year2003
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size98 MB
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