________________ 178 ] संस्कृत-प्रवेशिका [पाठ: 15 बतलाई जाये तो काल और दूरी-वाचक शब्दों में। (छ) प्रकृति आदि (नाम', गोत्र आदि ) शब्दों में (यदि उनसे किसी के स्वभाव मादि का ज्ञान ही)। (ज) जिस चिह्न से किसी का बोध हो उस चिह्न में। (झ) कारण-बोधक शब्दों में यदि हेतु शब्द का प्रयोग न हो। (ब) पृथक्, विना और तुल्यार्थक शब्दों के योग में (द्वितीया और पञ्चमी भी)। (4) अलम् (बस, मत), कृतम् (निषेध), किम, कार्यम्, अर्थः, प्रयोजनम् (प्रयोजन भर्य होने पर) के योग में / () जिस गुण या दुर्गुण की दृष्टि से किसी को बढ़कर बतलाया जाये उसमें / (ड) जिसके सदृश बतलाया जाये उसमें / (ढ) शपथ खाने में (जिसकी शपथ खाई जाए)। (ण) जिस मार्ग या दिशा से जाना बतलाया जाए, उसमें / अभ्यास १५-स्वर्णकार सोने से गहने बनाता है। कुली शिर पर सामान ढोता है। राम जानकी के साथ बन जाते हैं। गाय का दूध स्वभाव से मीठा और सुपाच्य होता है / व्यापार के निमित्त से मोहन प्रयाग में रहता है। क्या तुम शपथ खाकर कहते हो कि सुरेश ने चोरी की है ? मूर्ख शिष्य से क्या प्रयोजन ? तुम्हें सज्जनों के साथ रहना चाहिए, दुर्जनों के साथ कभी नहीं / अस्त्र पीड़ितों की रक्षा के लिए होता है, न कि निर्दोषों को पीड़ित करने के लिए। छात्र रेल से कानपुर गये / ऐसे पुत्र के उत्पन्न होने से क्या जो न विद्वान् हो और न धार्मिक ही। वेशभूषा से वह योद्धा प्रतीत होता है / वह आंख से अन्धा है, अतः गिर गया है। केवल मनोरथ से धन प्राप्त नहीं होता है, कुशलता से प्राप्त होता है। सम्प्रदान कारक] 2 : अनुवाद 7. संजय उसे रहस्य की बात कहता है और वह उसे धर्म का उपदेश देता है = संजयः तस्मै रहस्यं कथयति सः च तस्मै धर्म शंसत्ति उपदिशति वा / 6. देवदत्त राम के सौ रुपयों का ऋणी है = देवदत्तः रामाय शतं धारयति / 6. मैं देशरक्षा के लिए प्राणत्याग करूंगा = अहं देशरक्षाय प्राणत्यागं ___ करिष्यामि। 10. शिष्य गुरु को प्रणाम करके पढ़ने के लिए जाता है = शिष्यः गुरुं प्रणम्य पठनाय (पठितुं) याति / 11. वह गुरु से भोजन के लिए निवेदन करता है = सः गुरवे भोजनाय ( भोज नार्थम्, भोजनस्य कृते) निवेदयति / नियम-४६. निम्नोक्त स्थलों में चतुर्थी विभक्ति होती है (देखिए, पृ०७४-७६) (क) सम्प्रदान कारक में। (ख) नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम् (पर्याप्त ) और वषट् इन शब्दों के योग में (जिसे नमस्कार आदि किया जाये)। (ग) आयुष्य, मद्र (हर्ष), भद्र, कुशल, सुख, अर्थ और हित शब्दों के योग में (यदि आशीर्वाद के अर्थ में इनका प्रयोग हो, तो) जिसे आशीर्वाद दिया जाए, उसमें / (घ) स्वागत शब्द के योग में जिसका स्वागत किया जाए, उसमें / (ङ) 'तुमुन्' का अर्थ छिपा रहने पर उसके कर्म में। (च) जिस प्रयोजन के लिए कोई कार्य किया जाए, उसमें। (छ) निम्न धातुओं के योग में-(१) कुष, दूह, ईष्र्ण्य और असूय (जिस पर क्रोधादि किया जाए); (2) स्पृह (जिसे चाहा जाए); (3) रुच् या रुच्यर्थक (जो प्रसन्न हो); (4) कथ्, ख्या, शंस्, चक्ष, नि + विद् (णिजन्त) तथा तदर्थक (जिसको लक्ष्य करके कुछ कहा जाए); (५)[णिजन्त 'धू' ] चारि (जिससे ऋण लिया जाएं) और (६)प्रणिपत, प्रणम् (जिसे प्रणाम किया जाए, उसमें द्वितीया भी)। 50. चतुर्थी के स्थान पर कभी-कभी 'अर्थम्' और 'कृते' का भी प्रयोग होता है। 'अर्थम्' शब्द समस्तरूम में प्रयुक्त होता है और 'कृते' के योग में षष्ठी होती है / (11). अभ्यास १५-विष्णु को भक्ति अच्छी लगती है। विद्यार्थी परीक्षा पास करने के लिए पढ़ते हैं। यह समाचार गुरु जी से निवेदन कर दें / तुम मुझसे क्यों ईर्ष्या करते हो? तुम मेरे पच्चीस रुपयों के ऋणी हो / गुरु जी को प्रसन्न करने के लिए सोहन उन्हें द्रव्य देता है। बालक दूध के लिए रोता था। रोगी को दवा दे दो। सज्जनों का जीवन परोपकार के लिए होता है / मुझे धन की स्पृहा नहीं है, केवल ज्ञान प्राप्त करना मेरा लक्ष्य है। पाठ 15: सम्प्रदान कारक उदाहरण-वाक्य [ चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग - 1. किस शिष्य के लिए ज्ञान देते हो = कस्मै शिष्याय ज्ञानं वितरसि ? 2. राजा को नमस्कार हो = राज्ञे नमः / / 3. देवी का स्वागत है, मेरा कुशल हो और प्रजा का कल्याण हो = स्वागतं देव्यै ( देव्याः), मह्यं (मम) कुशलं भूयात्, प्रजाभ्यः च स्वस्ति / 4. तुम मूर्ख पर क्रोध करते ही और भोगों की स्पृहा = त्वं मूर्खाय क्रुध्यसि भोगेभ्यः स्पृहयसि च / 5. मुले अध्ययन अच्छा लगता है = मह्यम् अध्ययन रोचते / / 6. हरि दैत्यों के लिये और आप शत्रुओं के लिए पर्याप्त हैं = हरिः दैत्येभ्यः ___ अलम् (प्रभुः, समर्थः, शक्तः), भवान् शत्रुभ्यश्च / 1. 'नाम' शब्द के साथ अन्य प्रयोग-अस्ति वाराणसी नाम नगरम् / तत्र घनदत्तो नाम राणा / असी रामनामा बालकः / तस्य भार्यां मनोरमा नाम्नी /