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________________ 176] संस्कृत-प्रवेशिका [ पाठ : 13-14 8. घर के चारों ओर बालक खेलते हैं - गृहमभितः बालकाः क्रीडन्ति / 6. राग के बिना जीवन को धिक्कार है % रामं बिना जीवनं धिक् / 10. गोपाल गाय से दूध दुहता है और श्याम बकरी को गाँव ले जाता है - गोपालः गां पयः दोग्धि श्यामश्च अजां ग्रामं नयति (कर्तृ०)। गोपालेन गौः पयः दुह्यते श्यामेन च अजा ग्रामं नीयते (कर्म)। 11. मैं तुम्हें तिनके के भी बराबर नहीं मानता है % अहं त्वां तृणं न मन्ये / नियम-४६. निम्नोक्त स्थलों में प्रथमा विभक्ति होती है (देखिए, पृ० ६५-६७)(क) कर्तृवाच्य के कर्ता में। (ख) कर्मवाच्य के कर्म में / (ग) वस्तु, ग्रन्थादि का नामनिर्देश करने में / (घ) 'इति' शब्द के योग में / () सम्बोधन में। 47. निम्नोक्त स्थलों में द्वितीया विभक्ति होती है ( देखिए, पृ०६७-६२)(क) कर्तृवाव्य के कर्म में / (ख) क्रिया के लगातार होने पर समय और दूरी वाचक शब्दों में। (ग) जब अनादर दिखाना हो तो 'मन्' धातु के कर्म में / (घ) अधि + शी, अषि + स्था, अधि + आस्, अभि + नि + विश्, उप + बस्, अनु + वस्, अधि + वस् और आ + वस् इन धातुओं के आधार में / (ङ) अभितः, परितः, सर्वतः, उभयतः, समया, निकषा, हा, प्रति, धिक, उपर्युपरि, अधोऽधः, अध्यधि, अन्तरा और अन्तरेण ये अव्यय जिसके साथ आयें, उसमें / (च) गमनार्थक धातुओं के योग होने पर गमन के उद्देश्य में। (छ) विना के योग में / (ज) [कर्तृवाच्य में] दुह, याच आदि द्विकर्मक धातुओं के योग होने पर मुख्य कर्म के साथ-साथ गौण कर्म में (यदि वक्ता की इच्छा हो)। (झ) [ कर्मवाच्य में ] दुहादि 12 धातुओं का गौण कर्म तथा 'नी' आदि 4 धानुओं का मुख्य कर्म प्रथमा में [तदितर द्वितीया में ] होगा। अभ्यास १३-वह मन्दिर गया। आम, घड़ा और फूल यहाँ रखो। हे देवदत! यहाँ गाँव के चारों ओर उपवन हैं। सिंह वन में रहता है और गुफा में सोता है। मुझे विद्यार्थी जानो / कृष्ण के चारों ओर भक्तगण हैं। वे सब बन में विचरण करते हैं / क्या राम की उपासना के बिना भी जीवन है? वह तीन दिन से काम कर रहा है। मैं उसे राजा जानता हूँ। वे सब स्वर्ग गये। पाचक चावलों से भात 'पकाता है। गांव के निकट विद्यालय है। राजा चोर को दण्ड देता है। ज्ञाम के बिना सुख कहाँ ? आपके अलावा और कोन बदला ले सकता है ? विद्यार्थी अध्यापक के चारों ओर खड़े-खड़े बातें कर रहे थे। दोनों पर दया करो। पाठ १४:करण कारक सदाहरण-वाक्य [ तृतीया विभक्ति का प्रयोग ]1. वह बालयों के साथ रथ से आता है = सः रथेन बालकः सह आगच्छति (कर्तृ०) तेन रथेन बालकः सह आगम्यते (कम)। कर्तृ-कर्म-करण कारक] 2: अनुवाद [177 2. आँख से काना और पैर से लंगड़ा देवदत्त गाँव जाता है - नेत्रण काणः पादेन च खजः देवदत्तः ग्रामं गच्छति ( कर्तृ.)। नेत्रेण काणेन पादेन च खगेन देवदत्तेन प्रामो गम्यते (कर्म)। 3. वह होता है = सः भवति ( कर्तृ.) / तेन भूयते (भाव० ) / . 4. वह चक्षु से राम को देखता है % सः चक्षुषा रामं पश्यति / 5. उसने एक मास में ग्रन्थ को पढ़ा- समासेन ग्रन्थम् अधीतवान् / 6. राम स्वभाव से सज्जन है परन्तु वह कष्टपूर्वक जीता है = रामः प्रकृत्या साधुः परन्तु सः कष्टेन जीवति / 7. तुम जटाबों से तपस्वी और शिखा से हिन्दू लगते हो त्वं जटाभिः तापसः शिखया च हिन्दुः प्रतीयसे / 8. बह अध्ययन के लिए काशी में रहती है - सा अध्ययनेन काश्या वसति / 6. बुद्धि विद्या से बढ़ती है - बुद्धिः विद्यया वर्धते / १०.ज्ञान के बिना सब कुछ शून्य है = ज्ञानेन (शान ) विना सर्व शून्यम् / 11. झगड़ा मत करो, दुर्जन से आपको क्या प्रयोजन = अलं विवादेन, दुर्जनेन भवता प्रयोजनं किम् ? 12. वह ऐश्वयं में देवताओं से बढ़कर है = सः ऐश्वर्यण देवान् अतिशेते / 13. महेश रूप में सीता के समान और गुणों में राम के समान है = महेशः रूपेण (आकृत्या ) सीतया समः गुणैश्च रामेण सदृशः / 14. मैं अपने पुत्र की तथा अपने जीवन की कसम खाता है - अहं स्वपुत्रेण स्वजीवितेन च शपामि / 15. यज्ञदत्त किस मार्ग से और किस दिशा से गया है- यशदत्तः केन मार्गण कया दिशा च गतः? 16. मूखों को उपदेश देना केवल उनका क्रोध बढ़ाना है, शान्ति के लिए नहीं = उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये / नियम ४-निम्नोक्त स्थलों में तृतीया विभक्ति होती है (देखिए, पृ०७२-७४)(क) कर्मवाच्य के कर्ता में। (ख) भाववाच्य के कर्ता में। (ग) करण (साधकतम कारण) में। (प) सहार्थक (सह, साधन, साकम, समम् ) शब्दों के योग में जिसका साथ बतलाया जाए, उसमें। (5) जिस विकृत अङ्ग से अङ्गी में विकार मालूम पड़े उस अङ्ग-वाचक शब्द में। (च) जब निश्चित समय में कार्य-सिद्धि 12
SR No.035322
Book TitleSanskrit Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherTara Book Agency
Publication Year2003
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size98 MB
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