________________ अपत्य से भिन्न अर्थों में प्रयोग (57)- समूह, देवता, सम्बन्ध, रक्त, जात, विकार, काल, भाव, कर्म, मामत, प्रोक्त, निवास, अधीत / ] पञ्चम अध्याय : स्त्री-प्रत्यय (Eormation of Feminine Bases)54-62 [ 'आ' वर्ग (५८)-टाप, डाप्, चाप् / 'ई' वर्ग (५९)-डीप्, ही डीन् ) / अन्य (६२)-अङ, ति] षष्ठ अध्याय : अव्यय (Indeclinable Words) 62-63 [ अर्थ, अव्ययों के उपसर्ग, निपात आदि भेद] सप्तम अध्याय : कारक और विभक्ति (Case and Case-ending) 64-82 [परिचय (64), कारक-विभक्ति और उपपद-विभक्ति (65), प्रथमा (65), द्वितीया (67), तृतीया (72), चतुर्थी (74), पञ्चमी (76), षष्ठी (79), सप्तमी (81)] अष्टम अध्याय : समास ( Compound) 83-94 [ परिचय तथा भेद (83), अव्ययीभाव (84), तत्पुरुष (86), कर्मधारय (88), द्विगु (90), द्वन्द्व (91), बहुव्रीहि (92)] नवम अध्याय : शब्दरूप ( Declension) 95-115 नोट- एक समान रूप चलने वाले अन्य शब्दों का फुटनोट में यथावसर संकेत जिससे अनेक काब्दरूपों को बनाया जा सके। [परिचय (95), स्वरान्त पुं० (९५)-राम, (पाद, दन्त, निर्जर), विश्वपा, हरि, पति, (सखि), सुधी, गुरु, कर्तृ, पितृ, गो। स्वरान्त स्त्री० १९८)लता, मति, नदी, श्री, धेनु, वधू, स्वसू / स्वरान्त नपुं० (१००)--ज्ञान, वारि, दधि, मधु, कर्तृ। व्यञ्जनान्त पुं० (१०१)-ऋत्विज, भूभृद, भगवत्, धावत्, सुहृद, राजन्, आत्मन, युवन्, करिन्, पचिन्, तादृश, वितुस् / व्यम्जनान्त स्त्री० (१०४)-याच, अप्, गिर, दिव, आशिस् / व्यञ्जनान्त म. (१०५)---अगद, नामन्, कर्मन्, अहन्, मनस्, धनुष / सर्वनाम. (107)- अस्मद, युष्मद, तद्, भन्द, एतद्, इदम्, अदस, ग्द, किम्, सर्व, (कति, उभ, उभय) / संख्यावाचक (१११)--एक से दशन्, विंशति, त्रिंशत्, (पूरणार्थक, एक से परार्ध तक संख्या )] दशम अध्याय : धातुरूप ( Conjugation of Verbs) 116-154 नोट-धातु कोष के लिए देखें परिशिष्ट 1 [ गणादि परिथ (116), 1. भ्वादि (१२१)-भू, पठ्, गम्, चल्, श्रु, दृश, स्था, वद्, गद, णद्, अत्, या, एए, तुतु, कम, नी, विन, यज / 2. अदादि (१३२)-(दुह, रुद्, स्ना, स्वप्, या, शास्, इण् ), अद्, विद्, शीङ, इङ्, बृज्, अस्, हन् / 3. जुहोत्यादि (१३६)-(हा, धा), हु, भी, दा। 4. दिवादि (१३८)-(भ्रम्, युध्, पा, विद्), दिव, जन्, नश्, नृत् / 5. स्वादि (१४०)-धु, चिज, आप, शक्। 6. तुदादि (१४३)-मुच, क्षिप्, मिल्, लिप्), तुद्, षिच्, लिख्, इष्, मृङ, प्रच्छ / 7. रुधादि (१४७)रुधिर, युजिर, भुज् / 8. तनादि (१५०)-तनु, कू।९ क्रयादि (१५२.डुक्री, पू, ज्ञा, ग्रह / 10. चुरादि (१५५)-चुर, गण, कथ् / ] नोट-व्याकरण-सम्बन्धी अन्य विषयों के लिए देखें परिशिष्ट 3 से 7 / भाग: 2: अनुवाद ( Translation) 159-195 नोट-प्रत्येक पाठ तीन भागों में विभक्ति है-उदाहरण वाक्य, नियम और अभ्यास पाठ 1: सामान्य वर्तमानकाल-लट् लकार का प्रयोग पाठ 2: सामान्य वर्तमानकाल-विभक्तियों का सामान्य प्रयोग 160 पाठ 3 : सामान्य वर्तमानकाल-भवत्, च और वा शब्दों का प्रयोग 161 पाठ 4: सामान्य भूतकाल और भविष्यत्काल-लङ् और खुद का प्रयोग 162 पाठ 5: सर्वनाम, विशेषण, क्रियाविशेषण और अव्यय-तीनों कालों का प्रयोग 163 पाठ 6 : आशा, चाहिए, संभावना और आशीर्वाद-लोद और विधिलिड् 166 पाठ 7 : अपूर्ण वर्तमान भूत-भविष्यत्काल -शत-शानच् प्रत्ययों का प्रयोग 168 पाठ 8: 'जाते हुए', 'सुनते हुए' आदि वाक्य-शत-शामन् प्रत्ययों का प्रयोग 169 पाठ 9: वाच्य-परिवर्तन-कर्तृ-कर्म-भाव वाच्यों का प्रयोग 130 पाठ 10: भूतकालिक वाक्य-क्त-क्तवतु प्रत्ययों का प्रयोग . 172 पाठ 11: पूर्ण वर्तमान-भूत-भविष्यत् काल-क्त-क्तवतु प्रत्ययों का प्रयोग 173 पाठ 12 : पूर्णापूर्ण वर्तमान भूत-भविष्यत्काल-शतृ-शानन् प्रत्ययों का प्रयोग 174 पाठ 13 : कर्तृ-कर्म कारक-प्रबमा-द्वितीया विभक्तियों का प्रयोग 175 पाठ 14 : करण कारक-तृतीया विभक्ति का प्रयोग 176 पाठ 15 : सम्प्रदान कारक-चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग 178 पाठ 16 : अपादान कारक-पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग 180 पाठ 17 : सम्बन्धार्थ-पष्ठी विभक्ति का प्रयोग 181 पाठ 18 : अधिकरण कारक-सप्तमी विभक्ति का प्रयोग 183 पाठ 19: पूर्वकालिक 'कर' या 'करके' वाक्प-वा-ल्यप् प्रत्ययों का प्रयोग 184 पाठ 20 : विध्यर्थक 'चाहिए' आदि वाक्य-तव्यत्-अनीयर-यत् प्रस्पयों का० 185 पाठ 21: तुलनात्मक वाक्य-तरप-तमप् प्रत्ययों का प्रयोग 186 पाठ 22: प्रेरणात्मक वाक्य-णिच् प्रत्यय का प्रयोग पाठ 23 : निमित्तार्थक वाक्य-तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग 184 पाठ 24 : हेतुहेतुमद्भावात्मक वाक्य-यदि, चेत् और तहि का प्रयोग 189 पाठ 25 : 'करने वाला' अर्थवाचक शब्द-बुल-तृच प्रत्ययों का प्रयोग पाठ 26 : भाववाचक संज्ञायें-ल्युट्-धम्-क्तिन् प्रत्ययों का प्रयोग 187