________________ विषय-सूची संस्कृत-व्याकरण सीखने की प्राचीन और नवीन पद्धतियों का समीकरण करने में डॉ. जैन को अद्भुत सफलता मिली है। इस पुस्तक से संस्कृत व्याकरण का अभ्यास करने वालों की संख्या निरन्तर बढ़ेगी। पूर्व अध्यक्ष, संस्कृत विभाग डॉ० रामजी उपाध्याय सागर विश्वविद्यालय, सागर (संपादक, सागरिका) Although the book is an introduction to sanskrit it contains copious notes and is authenticated with original references at the footnotes, I have therefore no doubt to recommend the book for use by University and Institutions. अध्यक्ष, संस्कृत विभाग Dr. S. Bhattacharya का०हि० वि०वि०, वाराणसी (5-1-1974) उत्तरीतुं परीक्षाब्धि संस्कृतं शिक्षितुं तथा / प्रकामं सेव्यतां छात्रैः संस्कृतपा प्रवेशिका / / सुधिया सुहृदा सम्यग् ग्रंथरत्नमकारि यत् / कण्ठे कृत्वा तु तत् प्रेम्णा सर्वे सन्तु सुदर्शनाः / / अध्यक्ष, संस्कृत विभाग ___डॉ. कपिलदेवपाण्डेयः आर्य महिला डिग्री कालेज, वाराणसी संस्कृत-प्रवेशिका संस्कृत व्याकरण और रचना की अद्वितीय पुस्तक है। प्रोफेसर, संस्कृत विभाग डॉ० वाचस्पति उपाध्याय दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली डॉ. जैन द्वारा लिखित मंस्कृत-प्रवेशिका को मैं बी० ए०, एम० ए०, शास्त्री तथा आचार्य कक्षाओं के लिए संस्तुत करता हूँ। प्रोफेसर, संस्कृत विभाग डॉ० राय अश्विनी कुमार मगध विश्वविद्यालय, बोध गया संस्कृत-प्रवेशिका देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई। इसमें संस्कृत व्याकरण, अनुवाद और निबन्धों को सुबोध शैली में प्रस्तुत किया गया है। प्राध्यापक, डी. ए. बी. कालेज, कानपुर डॉ. शिवबालक द्विवेदी संस्कृत व्याकरण, अनुबाद और निबन्ध के लिए डॉ० जैन की संस्कृत-प्रवेशिका एक आदर्श पुस्तक है। रीडर, संस्कृत विभाग डॉ० उमेशचन्द्र पाण्डेय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर भीर विषय को सरल ढंग से प्रस्तुत करने में डॉ. जैन सिद्धहस्त हैं। संस्कृत प्रवेशिका, प्राकृत दीपिका, तर्कसंग्रह आदि उसके निदर्शन हैं। अध्यक्ष, सस्त विभाग डॉ. प्रभाकर शास्त्री राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर प्राक्कथन शुभाशंसा भाग:१: व्याकरण ( Grammar ) 1-158 प्रथम अध्याय : वर्णमाला ( Alphabet ) [वर्णमाला (1), स्वरों के प्रकार (1) व्यजनों के प्रकार (3), माहेश्वर सूत्र (6), प्रत्याहारविधि (6), वर्गों के उच्चारणस्थान (9) वर्गों के उच्चारण में प्रयत्न (11), सवर्ण-असवर्ष में अन्तर (14), शब्द और पद में अन्तर (15), अभ्यास (15)] द्वितीय अध्याय : सन्धि (Euphonic Combination of Letters) 16-31 [संयोग और सन्धि में अन्तर (16), स्वर सन्धि (१७)-दीर्घ, गुण, वृद्धि, यण, अयादि, पूर्वरूप, पररूप, प्रकृतिभाव / व्यञ्जन सन्धि (२२)---एजुत्व, ष्टुत्व, जश्त्व, चत्वं, छत्व, अनुस्वार, परसवर्ण, मुडागम, सुगागम / विसर्ग सन्धि (२६)-रुत्व, विसन, सत्व, उत्व, यत्व, र लोप, विसर्ग-लोप / अभ्यास (30), विसर्ग-सन्धि बोधक तालिका (31)] तृतीय अध्याय : कृत्-प्रत्यय ( Primary-Sufixes) 32-47 [वर्तमानकालिक (३३)-शतृ, शानच् / भविष्यत्कालिक ( 35)--- शत, शामच / भूतकालिक (३५)-पत, क्तवतु / पूर्वकालिक (२७)वत्वा, ल्यप् / विधि कृदन्त या कृत्य प्रत्यय (३९)-तव्यत्, तव्य, अनीयर्, यत् आदि ( केलिमर, क्यप्, ण्यद)। निमित्तार्थक (४२)-तुमुन् / कर्तृवाचक (४२)--वुल्, तृच्, णिनि आदि ( खच्, ख, 8, क, कञ्, श्विप्, र, ल्यु, बुञ्, इष्णुच्, आलुच, उ, युच्, षाकन् ) / भाववाचक संज्ञायें ४५)-ल्युट्, पञ्, क्तिन् आदि (अच्, अप्, अङ, न, कि, क्विप, युच, अ, घ, खल )] चतुर्थ अध्याय : तद्धित-प्रत्यय ( Secondary Suffixes) 47-57 [कृत् और तद्धित में अन्तर (47) / अपत्यार्थक (४८)-इज, मण, ढा आदि ( यत्, प्य, यञ्, प, ठक, अञ् ) / अतिशयार्थक (५०)-तरप्, तम, ईयसुन्, इष्ठन् / भावार्थक (५२)--स्व, तल, इमनिच् आदि (ध्यन, य, थक, ढक, अण्)। मत्वर्थीय (५३)-मतुप, इनि आदि (ठन्, विनि)। विभक्त्यर्थक (५४)--तसिलू, बल, ह, अत् / कालाद्यर्थक (५५)-दा, हिल, थाल्, थमु। विभिन्नार्थक (५६)-धा, मात्र, वति, चि, तीय, थुक, मट, नयप, अपच, इट्, छ, कर, अग इन् / अण्' का