________________ [69 &] संस्कृत-प्रवेशिका [6: शब्दरूप कर्तारम् कर्तारी कर्तृन् द्वि. पितरम् पितरौ पितृन् कळ कर्तृभ्माम् कर्तृभिः तृ. पित्रा पितृभ्याम् पितृभिः कत्र कर्तृभ्यः . पित्रे " पितृभ्यः कर्तुः " पं० पितुः " " कोंः कर्तृणाम् प० , पित्रोः पितृणाम् कर्तरि . कर्तृषु सं० पितरि " पितृषु हे कर्तः ! हे कर्तारौ ! हे कर्तारः ! सं० हे पितः ! हे पितरौ ! हे पितरः ! (6) ओकारान्त 'गो' (बैल / 'गाय' और 'वाणी' अर्थ में स्त्रीलिङ्ग); प्र. गौः गावोगावः 50 गोः गोभ्याम् गोभ्यः द्वि० गाम्" गाः गवो गवाम् तृ० गवा गोभ्याम् गोभिः स. गवि गोषु / म. गवे गोभ्यः सं हे गौः! हे गायौ ! हे गावः ! . स्वरान्त (अजन्त ) स्त्रीलिङ्गः संज्ञा शब्द (10) आकारान्त 'लता'२ (बल): (11) इकारान्त 'मति" (बुद्धि): लता लते लताः प्र. मतिः मती मतयः लताम् " द्वि० मतिम मतीः लतया लताभ्याम् लताभिः तृ० मत्या मतिभ्याम् मतिभिः / लताय " लताभ्यः च मत्य, मतये , मतिभ्यः (मनुष्य / इसके षष्ठी बहुवचन में दो कप बनेंगे-नृणाम् नृणाम्)। (ख) 'मातृ' (माता) स्त्रीलिङ्ग के द्वितीया बहुवचन में 'मातृ' बनता है, शेष 'पितृ' की तरह बनेंगे / 1. इसी प्रकार बोकारान्त स्त्रीलिङ्ग 'यो' (आकाश) के भी रूप बनेंगे। 2. इसी प्रकार-रमा (लक्ष्मी), सीता, माला, कन्या, विद्या, गङ्गा, बाला (स्त्री), कथा,. छायालज्जा, चिन्ता, शङ्का, तृष्णा, भाशा, कान्ता (स्त्री), भार्या (पत्नी), अजा (बकरी), अबला, दुर्गा, शोभा, परीक्षा, आशा, सन्ध्या, भिक्षा, वार्ता (खबर), जरा (बुढ़ापा), मक्षिका (मक्खी), ग्रीवा (गर्दन), ललना (स्त्री), कला, राधा, नासिका, निशा (रात्रि), बडवा (घोड़ी), सुमित्रा, घरा (पृथ्वी), सुधा (अमृत), प्रार्थना, दया, करुणा, क्षमा, अम्बा (माता। सम्बोधन में-हे अम्ब! होगा).आदि / / ___3. इसी प्रकार -बुद्धि, मूर्ति, स्तुति, भक्ति, शुद्धि, जाति, रुचि, रीति, कीर्ति वृष्टि, दृष्टि, शक्ति, स्मृति, शान्ति, नीति, धूलि, पंक्ति, गति, श्रुति (वेद), धृति (धैर्य), कान्ति, सृष्टि, भूमि, आकृति, प्रीति, हानि, उन्नति, कृति, प्रकृति, विपत्ति, गीति, भूति (ऐश्वर्य), रात्रि आदि / अजन्त पुं०, स्त्री०] 1. व्याकरण लतायाः लताभ्याम् लताभ्यः पं. मत्याः, मतेः मतिभ्याम् मतिभ्यः " . लतयोः लतानाम् .. . मत्योः मतीनाम् लतायाम् " लतासु स० मत्याम्, मती " . मतिषु हे लते ! हे लते ! हे लताः! सं० हे मते! हे मती! हे मतयः ! (12) ईकारान्त 'नदी" (नदी), (13) ईकारान्त 'श्री' (लक्ष्मी) नदी नद्यो नद्यः प्र.श्रीः श्रियो श्रियः नदीम् " नदीः वि श्रियम् " मद्या नदीभ्याम् नदीभिः 40 थिया श्रीभ्याम् श्रीभिः नद्य नदीभ्यः च० भिय, श्रिये // श्रीभ्यः नद्याः " " पं० श्रियाः, श्रियः // - नद्योः नदीनाम् ष. " " श्रियोः धीणाम्, त्रियाम् नद्याम् नदीषु स० श्रियाम्, श्रियि". श्रीषु हे नदि ! हे नद्यौ! हे नद्यः ! सं० हे श्रीः! हे श्रियो ! हे श्रियः ! (14) उकारान्त 'धेनु" (गाय): (15) अकारान्त 'वधू" (बहू ): धेनुः धेन धेनवः प्र वधूः बध्वी ध्वः घेनुम् " घेनः द्वि० बधूम् वधूः धेन्वा धेनुभ्याम् धेनुभिः तृ० वा वधूभ्याम् वधूभिः घेन्च, धेनवे " धेनुभ्यः . बध्व वधूभ्यः 1. इसी प्रकार-नारी (स्त्री), कुमारी, गौरी, जननी, दासी, पत्नी, नगरी, पृथ्वी, मैत्री, पुत्री, राजी, काली, सखी, वाणी, धात्री (धाय), वल्ली (बेल), वापी (बावड़ी), वीची (लहर), महिषी (पटरानी), जानकी, सावित्री, पार्वती, नटी, कमलिनी, नलिनी, अटवी (जंगल), कौमुदी (चाँदनी), देवी, त्रिलोकी, बिदुषी, भगिनी (बहिन ), द्रौपदी, पंचवटी, कादम्बरी, गायत्री, पहिणी, युवती आदि। 2. इसी प्रकार-भी ( भय ), धी (बुद्धि), ह्री ( लज्जा), सुश्री आदि / 3. इसी प्रकार-रेणु (धूलि----पु. भी है), तनु (शरीर), रज्जु ( रस्सी), नु (ठुड्डी--पु० भी है ) आदि / 4. इसी-प्रकार-चमू (सेना), श्वश्नू (सास), कर्कन्धू (बैर), चम्यू (गद्य-पद्यमय काव्य ), यवागू (लप्सी), जम्बू (जामुन ) आदि।