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________________ 66] संस्कृत-प्रवेशिका [6: शब्दरूप अजन्त पुं०] १:व्याकरण [17 रामम् रामी रामान् द्वि० विश्वपाम विश्वपौ विश्वपः रामेण रामाभ्याम् रामः तृ. विश्वपा विश्वपाम्पाम् विश्वपाभिः रामाय रामाभ्याम् रामेभ्यः च विश्वपे विश्वपाभ्याम् विश्वपाभ्यः रामात् रामाभ्याम् रामेभ्यः पं० विश्वपः विश्वपामाम विश्वपाप: रामस्य रामयोः रामाणाम् प० विश्वपः विश्वपोः विश्वपाम् रामै रामयोः रामेषु स० विश्वपि विश्वपोः विश्वपासु हे राम! हे रामौ! हे रामाः! सं० हे विश्वपाः ! हे विश्वौ! हे विश्वपाः! (3) इकारन्त 'हरि" (विष्णु, बन्दर); (४)इकारान्त पति" (स्वामी, दूल्हा); हरिः हरी हरयः प्र. पतिः पती पतयः हरिम् हरी हरीन् द्वि० पतिम् पती पतीन् / (ख) तादृश (सा), मादृश (मेरे जैसा), भवादृश (आप जैसा), यादृश (जैसा ), त्वादृश (तुम्हारे जैसा), एतादृश (ऐसा) [ये शब अकारान्त और शकारान्त दोनों होते हैं / शकारान्त होने पर देखें रूप क्रमा३२]। (ग) पाद (पैर), दन्त ( दांत) [इनको शस् से सुप तक क्रमशः 'पद' और 'दत्' आदेश होते हैं जिससे वहाँ विकल्प से दो दो रूप बनेंगे-पदः, पादान्; दतः, दन्तान् / (घ) निर्जर ( देव ) [ अजादि विभक्तियों में 'जर' को 'जरस्' आदेश होने से वहाँ विकल्प से दो-दो रूप बनेंगे-निर्जरसः, निर्जरस्य ] / 2. इसी प्रकार अन्य आकारान्त पुं० शब्द-गोपा (ग्वाला), सोमपा (सोमरस पीने वाला), धूम्रपा (धुआँ या सिगरेट आदि पीने वाला), बलदा (बल प्रदान करने वाला), शङ्खमा (शंख बजाने वाला) आदि / [065 का फूटनोट] 1. इसी प्रकार अन्य इकारान्त पुं० शब्द-मुनि, कवि, ऋषि, यति (संयमी), विधि (ब्रह्मा, भाग्य), निधि (खजाना), गिरि (पर्वत), कपि (बन्दर), जलधि (समुद्र), रवि (सूर्य), विरचि (ब्रह्मा), अग्नि, अरि (शत्रु), असि (तलवार), अतिथि, रश्मि (किरण), समाधि, वह्नि (आग), उदधि (समुद्र), पाणि (हाथ ), मरीचि (किरण), व्याधि (रोग), आधि (रोग), सारथि (गाडीवान्), अद्रि (पर्वत), मणि, भूपति (राजा), गृहपति (घर का स्वामी), नरपति (राजा), सुरपति (देवेन्द्र), लोकपति, गजपति, वृहस्पति, अधिपति, पृथिवीपति (राजा) आदि / २.(क) 'पति' शब्द जब समास के अन्त में आता है तो 'हरि' की तरह रूप पलेंगे और जब अकेला होता है तो तृतीया से सप्तमी के एकवचन में अन्सर होता है। 'पति शब्द का स्त्रीलिङ्ग 'पत्नी' होता है जिसके रूप नदी की तरह चलेंगे। हरिणा हास्याम् हरिभिः तृ. पत्या पतिभ्याम् पतिभिः हरये हरिभ्याम् हरिभ्यः प० पत्ये पतिभ्याम् पतिभ्यः . हरेः . हरिभ्याम् हरिभ्यः 60 पत्युः पतिभ्याम् पतिभ्यः हरेः . हयोंः हरीणाम् प. पत्युः पत्योः पतीनाम् हरौ योः हरिषु स० पत्यो . पत्योः पतिषु हे हरे! हे हरी! हे हरयः ! सं० हे पते ! हे पती! हे पतयः ! (5) ईकारान्त 'सुधी (विद्वान्): (6) उकारान्त 'गुरु (शिक्षक); सुधीः सुधियो सुधियः प्र. गुरुः गुरू गुरव सुधियम् सुषियौ सुधियः द्वि० गुरुम् गुरू गुरुन् सुधिया सुधीभ्याम् मुधीभिः तृ गुरुणा गुरुभ्याम् गुरुभिः सुधिये सुधीभ्याम् सुधीभ्यः च गुरवे गुरुभ्याम् गुरुम्बा सुधियः सुधीभ्याम् सुधीभ्यः प. गुरोः गुरुभ्याम् गुरुभ्यः सुधियः सुषियोः सुधियाम् प० गुरोः गुर्वोः गुरूणाम् सुधियि सुधियोः सुधीषु ! स. गुरौ गुर्वोः गुरुष हे सुधीः! हे सुधियो ! हे सुधियः सं० हे गुरो! हे गुरू! हे गुरवः ! (7) ऋकारान्त 'कल (करने वाला); (6) ऋकारान्त 'पितृ"(पिता): कर्ता कर्तारौ कर्तारः प्र. पिता पितरौ पितरः (ख) 'सखि' (मित्र ) शब्द के रूप-सखा सखायौ सखायः / सखायम् सखायौ सखीन् / शेष 'पति' की तरह बनेंगे। 'सखि' शब्द का स्त्रीलिङ्ग 'सखी' होता है और उसके रूप 'नदी' की तरह बनेंगे। 1. इसी प्रकार-शुद्धधी, परभधी, सुश्री आदि / 2. इसी प्रकार-साधु ( सज्जन ), भानु (सूर्य), ऋतु, शिशु, रिपु (शत्रु ), शत्र, विधु ( चन्द्रमा), पशु, प्रभु ( समर्थ), विष्णु, वायु, कृशानु (आगे), कर (जंघा), पांशु (लि), हेतु (कारण), मृत्यु, बाहु, मन्यु (क्रोध), असु (प्राण ), सूनु (पुत्र), इक्ष (गन्ना), बन्धु ( कुटुम्बी), इषु (तीर), तरु (पेड़), सेतु (पुल), वेणु (बांस), जन्तु, शम्भु आदि / 3. इसी प्रकार-(क) दातृ (दाता), धातु ( रचयिता), नेतृ (नेता), योद्ध (योद्धा), जेतृ (विजेता), गोप्त ( रक्षक), वक्तृ (वक्ता ), भर्तृ (पति), होतृ (हवन करने वाला ), श्रोतृ (श्रोता), द्रष्ट्र ( द्रष्टा ), सवितृ (सूर्य), गन्तृ (जाने वाला), पोत (पोता), रक्षित ( रक्षक ) आदि / (ख) 'कर्तृ' शब्द के स्त्रीलिङ्ग के द्वितीया बहुवचन में 'कत':' रूप बनेगा, शेष पु० की तरह। 4. इसी प्रकार क) भ्रातृ (भाई), जामात (जामाता), देव (देवर), न
SR No.035322
Book TitleSanskrit Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherTara Book Agency
Publication Year2003
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size98 MB
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